उफनती नदियां और सहमी सहमी सी है जिंदगी, विनाशकारी बाढ़ ने दी एक बार फिर से दस्तक

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किशनगंज/रणविजय

बिहार सीमांचल के किशनगंज जिले में वर्ष 2017 में आयी प्रलयंकारी बाढ़ की भयावह तस्वीरें हर एक व्यक्ति के जेहन में आज फिर से उभरने लगी है।लोगों में इस बात को लेकर आशंका हो रही है कि कहीं फिर वो मंजर मेरे सामने ना आ जाए जिसे ताउम्र ना देखने की ऊपर वाले से दुआ मांगी थी।कभी बाढ़ की विनाशकारी लीला से तबाह व बर्बाद हो चुके हजारों विस्थापित परिवार आज फिर से आसमान की ओर टकटकी लगाए शायद अपने रब से यही पूछ रहे होंगे कि क्या अब भी कोई कसर बाकी रह गया है ?

क्या अब भी रहम की भींख नही दोगे हम बदनसीबों को ? जी हां, कुछ ऐसे ही हालात बनते जा रहे हैं इनदिनों सम्पूर्ण जिले में।पिछले तीन दिनों से हो रही लगातार भारी बारिश के चलते नेपाल-भारत सीमा से सटे किशनगंज जिले की महानन्दा,डोंक,मेंची, कनकई,बूढी कनकई,कौल इत्यादि नदियों के जलस्तर में आयी उफान ने एक बार फिर तटबंध वाले गाँवो में अपना डेरा जमा लिया है।गांव-गांव पानी पानी हो चूका है।

जिले में ठाकुरगंज, दिघलबैंक,टेढ़ागाछ,पोठिया,बहादुरगंज जैसे प्रखंडों के दर्जनों गांव जलमग्न हो चुके हैं।सोशल मीडिया में गांव गांव की तस्वीरें वायरल हो रही है,कहीं किसी गांव में कमर भर पानी तो कहीं ग्रामीण सड़को,पुल-पुलियों पर पानी का भारी दवाब और कटान जैसे सभी तरह की तस्वीरें वायरल हो रही है।

लोगों के सामने जलप्रलय आफत बनकर दस्तक दे चुकी है ऐसे में इस महा मुश्किल घड़ी में लोग खुद को संभाले तो संभाले कैसे क्योंकि,अभी हाल ही वर्ष 2017 के जलप्रलय में सब कुछ लुटाकर अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करने वाले लोग बेचारे वर्तमान समय में वैश्विक कोरोना महामारी का दंश झेलने को मजबूर हैं उसपर बाढ़ के आतंक का खतरा दोनों ही महासंकट को एक साथ झेल पाना किसी भी व्यक्ति के लिए मुमकिन भला कैसे हो सकता है।

इसलिए इस विकट स्थिति से हमें लड़ने के लिए धैर्य और साहस की आवश्यकता तो है ही, लेकिन उससे भी ज्यादा यह कि वर्ष 2017 के हालात जिले में पैदा नही होने पाए,इसके लिए व्यापक स्तर पर प्रशासनिक तैयारियों की आवश्यकता है।लोगों के जानोमाल का कम से कम नुकसान हो इसके लिए भी जरूरी एहतियात के साधन-संसाधनों की उपलब्धता पर जोर देना पड़ेगा।खाद्य राहत सामग्रियों की समय पूर्व व्यवस्था की व्यापक तैयारियां,विस्थापित परिवारों को रहने,खाने पीने,दवाई आदि इंतजाम की तैयारियों को लेकर मैराथन पहल की आवश्यकताएं होंगी।

प्रशासन को ऊँचे और सुरक्षित स्थानों को चिन्हित करने का काम तेजी से करने की आवश्यकता है ताकि जरूरत के मुताबिक जलमग्न गांव के लोगों को तत्काल चिन्हित सुरक्षित स्थानों पर रखा जा सके। माइकिंग आदि के जरिए भी तटबंध वाले इलाके के लोगों में बाढ़ के सम्भावित खतरे और उनसे बचाव के तरीकों के प्रचार-प्रसार भी कराए जाने की आवश्यकता है।

उफनती नदियां और सहमी सहमी सी है जिंदगी, विनाशकारी बाढ़ ने दी एक बार फिर से दस्तक