बाबुल सुप्रियो : छोड़ चले बाबुल की गली

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सुशील दुबे

राजनीति में पथ और पंथ परिवर्तन के तमाम किस्से मशहूर है, उन्ही किस्सों में एक और नया किस्सा तब जुड़ गया जब बंगाल भाजपा के खास रहे बाबुल सुप्रियो वर्षो के चोली दामन का साथ त्याग कर नई राजनीति पारी खेलने उतर चुके हैं।

बाबुल सुप्रियो, प्रसिद्ध गायक रह चुके हैं, उनकी गायकी के अंदाज को लोग किशोर कुमार और कुमार सानू सरीखे कलाकर से भी जोड़ देते हैं।

सुप्रियो बराल , जो कि इनका असल नाम था, संगीत जगत में आने के साथ यह बाबुल सुप्रियो बन गए।

हिन्दी, बंगाली एवम उड़िया भाषा मे कई ख्याति प्राप्त गायकी से इन्होंने लोगो के दिलो में अच्छी खासी जगह बनाई।

इनकी राजनीतिक पारी में दस्तक साल 2014 में हुई।

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी को अपनी राजनीति का प्रेरणा श्रोत मानते हुए वे भाजपा के टिकट पर आसनसोल से उठ खड़े हुए।

भाजपा बंगाल में जनाधार की मार झेल रही थी और अपने मृत प्रायः संगठन को एक बल देना चाहती थी, वैसे समय मे बाबुल सुप्रियो ने अपने दिग्गज राजनीति प्रतिद्वंद्वी डोला सेन को अच्छे मार्जिन से हरा दिया था।

डोला सेन तृणमूल कांग्रेस के ट्रेड यूनियन इकाई की प्रमुख थी, और ऐसे में उनकी हार की बात कोई मानने को तैयार ही नही था, पर बाबुल सुप्रियो का जादू चल चुका था, और जनता उन्हें अपना मत देने को तैयार थी।

बाबुल के जीत का सिलसिला कुछ यूं था कि, उन्हें पार्टी ने विजयी होने पर उन्हें “यूनियन मिनिस्टर ऑफ स्टेट”, शहरी विकास मंत्रालय और साथ ही कई और अच्छे पोर्टफोलियो उनकी झोली में डाल दिये गए।

इसी राजनीतिक पारी में और मोदी लहर के साथ वर्ष 2019 के चुनाव में इन्होंने पुनः विजय हासिल करते हुए अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी जो कि बंगाल का जाना माना चेहरा हुआ करती थी -श्रीमती मून मून सेन जी को 1लाख 97 हजार वोटो के अंतर से हराया था।

पार्टी जीत की खुशियां मना रही थी, बाबुल सुप्रियो अपने राजनीतिक जीवन की लंबी और खुशहाल पारी खेलने में मस्त थे।

पर परिवर्तित होते समय के साथ और बदलते पथ पंथ की राजनीति में इनके ऊपर कई सवालिया निशान उठ रहे थे।

समय आ चुका था बंगाल के चुनावों का , वर्ष 2021।

भाजपा अपने जीत के पूर्ण आश्वासन के साथ जोड़ तोड़ के साथ कई राजनीतिक समीकरण बिठा रही थी।

भाजपा के कई नामी चेहरे अपने दम खम के साथ चुनाव में कूद चुके थे, बाबुल सुप्रियो भी अपने 10 वर्षीय राजनीतिक जमा पूंजी को भुनाने में कोई कसर नही छोड़ना चाहते थे।

पर अंततः सारे पत्ते लगभग फैल हो गए और बंगाल में पुनः ममता बनर्जी के जीत का बिगुल बज चुका था।

इस राजनीतिक उठापटक के बाद बंगाल में उठे राजनीतिक हत्याओं और हिंसा के बाद भाजपा पर अपने कार्यकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित न कर पाने से नाराज कई लोगों ने पुनः तृणमूल का ही दामन थाम लिया।

अकर्मण्य नेताओ के लाचारी और उसके बाद जनता के रोष का खामियाजा यह हुआ कि पार्टी ने कई नीतिगत परिवर्तन पर ध्यान दिया।
इसी क्रम में मंत्रालयों के पुनर्गठन में कई दिग्गजों के मंत्रालय का पदभार किसी और को सौंपा जाने लगा।

कई किस्सों और सुगबुगाहट के बीच बाबुल सुप्रियो का भी मंत्री पद कैबिनेट विस्तार के क्रम में छीन गया।

इसी के बीच बाबुल ने बयान दिया कि अब वे राजनीति पारी से सन्यास ले रहे हैं और वे अपने लोगो के बीच बस एक सामान्य व्यक्ति बन कर ही रहेंगें।

पर शायद सत्ता सुख और पद की आकांक्षा और लालसा , मति एवम हृदय परिवर्तन करने में पूर्ण सक्षम है।

और शायद ऐसा ही परिवर्तन तब दिखा जब अचानक ही बाबुल सुप्रियो 18 सितंबर 2021 को तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए।

वहीं राजनीतिक विश्लेषको की माने तो 30 सितंबर को होने वाले भवानीपुर सीट के उपनिर्वाचन से पहले बीजेपी को ममता बनर्जी बड़ा झटका देना चाहती थी ,जिस वजह से बाबुल को आनन फानन में टीएमसी में शामिल किया गया है ।

ऐसे में बंगाल भाजपा का जाना माना चेहरा रह चुके बाबुल सुप्रियो के राजनीतिक हृदय परिवर्तन ने भाजपा को अच्छा खासा चोट दिया है ।






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