धर्म /डेस्क
?महाभारत युद्ध समाप्त होने पर धृतराष्ट्र ने श्रीकृष्ण से पूछा- मैं अंधा पैदा हुआ, सौ पुत्र मारे गए । भगवन मैंने ऐसा कौन सा पाप किया है, जिसकी सजा मिल रही है।
श्रीकृष्ण ने बताना शुरू किया- पिछले जन्म में आप एक राजा थे. आपके राज्य में एक तपस्वी ब्राह्मण थे। उनके पास हंसों का एक जोड़ा था जिसके चार बच्चे थे।
ब्राह्मण को तीर्थयात्रा पर जाना था लेकिन हंसों की चिंता में वह जा नहीं पा रहे थे। उसने अपनी चिंता एक साधु को बताई। साधु ने कहा- तीर्थ में हंसों को बाधक बताकर हंसों का अगला जन्म खराब क्यों करते हो। राजा प्रजापालक होता है। तुम और तुम्हारे हंस दोनों उसकी प्रजा हो। हंसों को राजा के संरक्षण में रखकर तीर्थ को जाओ।
ब्राह्मण हंस और उसके बच्चे आपके पास रखकर तीर्थ को गए। आपको एक दिन मांस खाने की इच्छा हुई। आपने सोचा सभी जीवों का मांस खाया है पर हंस का मांस नहीं खाया। आपने हंस के दो बच्चे भूनकर खा लिए। आपको हंस के मांस का स्वाद लग गया। हंस के एक-एक कर सौ बच्चे हुए और आप सबको खाते गए। अंततः हंस का जोड़ा मर गया।
कई साल बाद वह ब्राह्मण लौटा और हंसों के बारे में पूछा तो आपने कह दिया कि हंस बीमार होकर मर गए। आपने तीर्थयात्रा पर गए उस व्यक्ति के साथ विश्वासघात किया जिसने आप पर अंधविश्वास किया था। आपने प्रजा की धरोहर में डाका डालकर राजधर्म भी नहीं निभाया।
जिह्वा के लालच में पड़कर हंस के सौ बच्चे भूनकर खाने के पाप से आपके सौ पुत्र हुए जो लालच में पड़कर मारे गए। आप पर आंख मूंदकर भरोसा करने वाले से झूठ बोलने और राजधर्म का पालन नहीं करने के कारण आप अंधे और राजकाज में विफल व्यक्ति हो गए।
श्रीकृष्ण ने कहा- सबसे बड़ा छल होता है विश्वासघात. आप उसी पाप का फल भोग रहे हैं।
।। श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,हे नाथ नारायण वासुदेवा।।
साभार :सोशल मीडिया





























