ठाकुरगंज/प्रतिनिधि
लोकआस्था के महापर्व छठ पूजा के अवसर पर ठाकुरगंज पूरी तरह से भक्ति और आस्था के रंग में रंगा नजर आया। विभिन्न घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। भातडाला घाट, सागढाला घाट, बशीरनगर घाट, चेंगा घाट तथा महानंदा नदी घाट सहित अन्य प्रमुख स्थानों पर हजारों व्रतियों ने भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित कर अपने परिवार और समाज की सुख-समृद्धि की कामना की।
घाटों पर ‘छठ मईया’ के गीतों की गूंज और भक्ति संगीत से पूरा वातावरण अध्यात्म और लोकसंस्कृति की अद्भुत छटा बिखेर रहा था। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सजधज कर सूप-दऊरा में ठेकुआ, फल, नारियल, और फलों से भरे अर्घ्य सामग्री लेकर घाटों की ओर रवाना हुईं। श्रद्धालुओं ने पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित किया और छठ मइया से परिवार की कुशलता की प्रार्थना की।
भातडाला घाट पर आकर्षण का केंद्र बनी भगवान सूर्य की भव्य प्रतिमा को देखने के लिए श्रद्धालु और आमजन बड़ी संख्या में पहुंचे। घाटों को दुल्हन की तरह सजाया गया था — हर ओर रंग-बिरंगी झालरों, दीपों और फूलों से सजे पंडालों ने अद्भुत दृश्य प्रस्तुत किया। पूरा ठाकुरगंज मानो प्रकाश और श्रद्धा के संगम में डूबा हुआ था।
प्रशासनिक स्तर पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे। थाना पुलिस, होमगार्ड और वॉलंटियर्स लगातार गश्त पर थे। महिला सुरक्षा के मद्देनजर महिला पुलिसकर्मियों की भी तैनाती की गई थी। नगर पंचायत द्वारा घाटों पर साफ-सफाई, प्रकाश व्यवस्था पहले से ही सुनिश्चित की गई थी।
पूजा समितियों ने भी सक्रिय भूमिका निभाई। स्थानीय युवाओं और स्वयंसेवी संगठनों ने श्रद्धालुओं को सहयोग किया। घाटों पर मेडिकल कैंप और सहायता केंद्र स्थापित किए गए, ताकि किसी भी आपात स्थिति में मदद उपलब्ध कराई जा सके।
जनप्रतिनिधि और राजनीतिक नेताओं की उपस्थिति ने आयोजन में विशेष रंग भरा। एनडीए प्रत्याशी गोपाल अग्रवाल, मुख्य पार्षद सिकंदर पटेल सहित कई जनप्रतिनिधि विभिन्न घाटों का दौरा कर श्रद्धालुओं से मिले और व्यवस्था का जायजा लिया। उन्होंने पूजा समितियों के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि ठाकुरगंज की जनता ने मिलकर लोक आस्था के इस पर्व को भव्यता प्रदान की है।
लोक आस्था का यह पर्व सामाजिक एकता और पारिवारिक सौहार्द का प्रतीक बन गया। सभी धर्म, वर्ग और समुदाय के लोग इस आयोजन में सम्मिलित होकर सामाजिक सद्भाव की मिसाल पेश कर रहे थे।
भक्ति, अनुशासन, स्वच्छता और जनसहभागिता का यह समन्वय देखकर कहा जा सकता है कि छठ केवल पर्व नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने वाला एक जीवंत उत्सव है, जिसकी गूंज ठाकुरगंज की गलियों से लेकर महानंदा नदी के तट तक सुनाई दी।




























