समोद शर्मा
“आएंगी लौट फिर से खुशियां अपने देश पर”
ना जाने नजर किसकी लगी, खुशियों के देश पर खेल रहे थे खेल सब, अपने ही मेल परचल रही थी जिंदगी, अपने स्वाव परथाम दिए पग बैरी ने, आकर के ताव पर।
ना जाने नजर किसकी………थीं इक तरफ हसरतें, कुछ करने की राह परकर दिए सब खाक ख्वाब, बैरी ने आकर के ताव परबन गया नासूर, दिल के गुलिस्तां जहान परफल रहा है ऐसे, अहि फलता है गरल पर।
ना जाने नजर किसकी……लगा रहा है विष ये, गहरे हरे घाव परबेचैन मन, अनहोनी का डर, रहता है रात भरनिरंकुश ये, अदृश्य बैरी, इठलाता अपनी चाल परघूमता निरंकुश बैरी, निरीह, जग को मारकर।
ना जाने नजर किसकी……छीनी हंसी जग की, जिंदगी दरबदर कीछीने सुहाग इसने, गोद मां की सूनी कीरोकेगा कौन शूरवीर, इसके पांव कोमांगे यही मन्नतें, करके फरियाद को।
ना जाने नजर किसकी……थी तमन्ना ये, वक्त गुजर जाए हंसकरदेख खुशी जमाने की, क्यों जल गया कालचक्रदेखो, कैसे हंस रहा ये पापी, जग को रुलाकरपहुंचेगी जिंदगी, ना जाने किस मुकाम पर।
ना जाने नजर किसकी…….पिंजड़ों में है कैद, घर लगे यूं, दिखावे नाम भरडर रहा है जग का मालिक भी, मानो इसके नाम पर।
ना जाने नजर किसकी……..दूर रहें कैसे हम, बैरी से खुद को बचाकरस्वाभिमानी इतना ये, ना हमको दिखाई देखुद्दार बैरी इतना, बिन बुलाए आए नाबस चूक ढूंढ़ इंसा की, ये खाए चबाकर।
ना जाने नजर किसकी…..संकल्प लें ये मन में,न चूक हो कोईशातिर हो ये कितना, ना भूल हो कोईअदृश्य हो ये कितना भी, न इसको दिखाई देंभयमुक्त रहें सजग, इल्म खुद का जगाकर।आएंगी लौट फिर से खुशियां अपने देश परआएंगी लौट फिर से खुशियां अपने देश पर।
लेखक परिचय समोद शर्मा। शिक्षक, शिक्षा इनिशिएटिव, शिव नादर फाउंडेशन, नोएडा, यूपी