मशरूम – कुमार राहुल

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कुमार राहुल

मशरूम , मशरूम को हिंदी में कुकुरमुत्ता या गोबर छत्ता कहते हैं । कुकुरमुत्ता बारिश और ठंड में कहीं भी आसानी से पैदा हो जाता हैं । उसी तरह पत्रकार हर एक जगह में आसानी से पाए जाते हैं । क्योंकि इसके लिए अब कोई खास क्वालिफिकेशन की जरूरत नहीं है । मशरूम सोशल मीडिया और पत्रकार में काफी समानता है तीनों का विकास कुछ मिलता-जुलता हुआ है ।

दरअसल एक बार एक टीवी न्यूज़ वाले ने एक प्रोग्राम निकाला “आप भी पत्रकार ” हर एक आदमी को खुली ऑफर दे दी अपनी खबर फोटो के साथ भेजिए टीवी में दिखाई जाएगी ।बस क्या था चैनल में खबरों की बाढ़ सी आ गई एक 2 महीने तो चैनल ने ऐसी काफी खबरें चलाई चैनल को अवैतनिक पत्रकारों से फ्री में कंटेंट मिलने लगा पत्रकार भी खुश ।क्योंकि उनकी खबर बड़े चैनल में आ रही है उनकी फोटो भी दिखाई जा रही है । समाज में उनकी धाक और प्रतिष्ठा बढ़ने लगी इस धाक , प्रतिष्ठा पाने की होड़ में सारे भारत में ऐसे पत्रकार कुकुरमुत्ता की तरह पनप गए । न जाने क्या परेशानी हुई कि अचानक उस चैनल ने अपना प्रोग्राम “आप भी पत्रकार बंद कर दिया ” अब तो वह लाखों युवाओं की थोड़े दिनों की प्रतिष्ठा और धाक खत्म हो गई ।

कमल खिलता है पानी में लेकिन पानी सूखने पर नीचे नहीं जाता बल्कि सूख जाता है युवाओं को यह बात कतई पसंद नहीं आई । सब ने पत्रकारिता को हर हाल में जिंदा रखने की ठान ली सबने अलग-अलग तरीके से टीवी न्यूज़ अखबार और सोशल मीडिया में अपने आपको जोड़ दिया उनमें से कई तो पैरवी और जाति सपोर्ट से काफी ऊंचाई में पहुंच गए और कुछ कुछ के टैलेंट ने उन्हें अच्छी तनख्वाह दिला दी यही हाल मशरूम का भी है जैसे ढेर सारी प्रचार प्रजाति पत्रकारों की है उसी तरह मशरूम की सत्रह सौ से ज्यादा प्रजाति है मशरूम की सबसे अच्छी प्रजाति का डिशेज जिसे लैब स्टूडियो में उगाया जाता है बाजार में इसकी कीमत ₹200000 प्रति केजी है जबकि लैब में उगाई जाने वाली एक प्रजाति जिसे कीड़ा मशरूम कहते हैं उसके अपने ही गुण हैं जिसके कारण बाजार वाले इसकी कीमत ₹300000 तक लगाते हैं वही एक मशरूम चिकना , चूपडा,लचीला देखने में खूबसूरत किंग मशरूम कहलाता है ।

इसकी कीमत भी ₹200000 प्रति केजी है लेकिन यह कभी क भार ही बाजार में आता है । शोधकर्ता जो फार्म में एक खास मशरूम उगाते हैं उसे गायनोडर्मा कहते हैं जिस से दवाइयां बनाई जाती है । जिसकी बाजार में कीमत ₹70000 प्रति केजी है मशरूम की एक वैरायटी को डुप्लीकेट मशरूम भी कहा जाता है जैसे शहरों में आपको डुप्लीकेट पत्रकार मिल जाएंगे डुप्लीकेट सिटाके मशरूम देखने में बिल्कुल गायनों डर्मा जैसा होता है । लेकिन बाजार में ₹500 केजी में ही बिक पाता है अब इसे इसी मशरूम की तकदीर कह लीजिए । क्योंकि दिखने में तो एक जैसे लगते हैं लेकिन बिकते काफी कम दाम में हैं पुराने जमाने में इसे गोबर छत्ता के नाम से जाना जाता रहा है । कीड़ा मशरूम या गोबर छत्ता कह लीजिए । वैश्विक स्तर पर इसकी खूब डिमांड है नाम कीड़ा जरूर है । लेकिन काम शेरों वाला करता है यह तो हुए मशरूम जिसे फाइव स्टार श्रेणी में गिना जाता है । लेकिन आम बाजार में उपलब्ध बटन मशरूम या ओयस्टर जिसे आप एक कॉल में किसी दुकान से मंगवा सकते हैं । इस की बाजार में कीमत मात्र ₹200 से ₹400 तक प्रति केजी है ऐसा नहीं की बटन मशरूम और ओयस्टर मशरूम की गुणवत्ता कम है । यह भी बड़े काम के हाई न्यूट्रिशन वैल्यू के होते हैं ।लेकिन इन विचारों को बड़ी कीमत देने वाला कोई नहीं है । क्योंकि मशरूम उगाने के लिए पढ़ाई लिखाई की कोई खास जरूरत नहीं है ।

इसलिए सरकार ने इनके प्रोडक्शन को बढ़ाने के लिए सब्सिडी भी प्रदान की है सरकार यह नहीं सोच रही है की बटन मशरूम और ओयस्टर मशरूम के बहुतायत हो जाने से दोनों मशरूम की बाजार में कीमत घट जाएगी । अब तो आलम यह है कि जिला स्तर में बिजनेस हाउसेस घर में ही पत्रकार और मशरूम दोनों पैदा कर रहे हैं जिससे डिस्टिक एडमिनिस्ट्रेशन तक पहुंच मशरूम के बहाने हो सके ।आज कल जैसे मशरूम की खेती के लिए सरकार बढ़ावा देती है उसी तरह छोटे इलाके में बिजनेस हाउस ने अपने घर के पत्रकार को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है । जिससे कि एडमिनिस्ट्रेशन तक उसकी पहुंच आसानी से हो सके । ऐसे पत्रकारों को पैसे की जरूरत नहीं पड़ती है ।

क्योंकि बिजनेस हाउस उनका खर्चा उठाता है । कई पत्रकार तो कुछ बिजनेस हाउस के मुलाजिम तक है और बिजनेस हाउस अपनी सुविधा के लिए उनका समय समय पर इस्तेमाल करती है । बाकी वैसे अवैतनिक आंचलिक पत्रकार को पैसे कमाने के लिए और अपना घर चलाने के लिए धक्का खाना पड़ता है क्योंकि रीजनल चैनल एवं अखबार अपने पत्रकारों को पैसा नहीं देती है ।

क्योंकि उन्हें पता है कि पत्रकार उगाही कर अपना घर चला लेते हैं कई बार तो खबर छापने वाले एवं टीवी में खबर दिखाने वाले हाउसेस अपने पत्रकारों के माध्यम से उगाही का भी काम करती है लोकल एडमिनिस्ट्रेशन को सब पता रहता है शायद इसीलिए कुछ दिन पहले गाड़ियों में प्रेस लिखने पर पाबंदी लगा दी गई है । लेकिन अपने आप को एक्टिव रखने के लिए कुछ बिजनेसमैन के पत्रकार या यूं कह दीजिए बिजनेसमैन पत्रकार सोशल मीडिया ग्रुप बना रखा है । जिसमें अधिकारियों और नेताओं का चालीसा और पचासा अक्सर देखने को मिल जाता है । मैं तो भूल ही गया था कि मशरूम की एक वैरायटी जिसे
गायनोंडर्मा कहते हैं हिंदी नाम ऋषि मशरूम है मुझे लगता है इस मशरुम का नाम पुजारी मशरूम होता तो अच्छा होता ।

मशरूम की 17 सौ से अधिक प्रजाति में 39 प्रजाति ही खाने लायक होती है । मशरूम की एक प्रजाति खाने लायक भी होती है जो बटन मशरूम जैसा ही दिखता है और सस्ता भी होता है जिसे ब्राउन बटन मशरूम कहते हैं यह मशरुम बिल्कुल कुछ वैसे आंचलिक पत्रकार जैसे होते हैं जिनका रंग ब्राउन चरित्र हार्डी आसानी से नहीं पकने वाला है। इसलिए कम ही लोग इसे पसंद करते हैं मशरूम की एक और प्रजाति जो बरसाती पत्रकार से मेल खाती है इसे बालबेरा कहते हैं बरसात खत्म बालबेरा खत्म कुकुरमुत्ता की 17 सौ से अधिक प्रजातियों में उन 40 को छोड़कर बाकी जहरीली होती है । जिसे खाकर सिर्फ भारत में ही 12 लोग हर साल जान गवा देते हैं दुनिया में ढेरों लोग ऐसे हैं जिन्हें मशरूम की पहचान नहीं है । इसलिए कई बार खाने लायक मशरूम को भी छोड़ देते हैं । लेकिन अवेयरनेस प्रोग्राम द्वारा लोगों को खाने लायक मशरूम और जहरीले मशरूम का अंतर पता चलने लगा है और जो अंतर समझना नहीं चाहते हैं ।उनके लिए तो मैं बस इतना ही कहूंगा सावधानी हटी दुर्घटना घटी ।

4 thoughts on “मशरूम – कुमार राहुल”

  1. घाव आज भी हरे ही दिखे दोस्त ! पत्रकारिता है ही बड़ी ढीठ और कुत्ती … जाती ही नही ! उंगली कर ही देती है।

  2. जैसा की आपने बताया मशरूम सत्रह सौ प्रजातियों में करीब ३९ ही खाने व अन्य उपयोग योग्य हैं, ठीक उसी तरह पत्रकार भी उतने ही अनुपात में पढने और देखने सुनने योग्य रह गए है।
    मशरूम के साथ पत्रकार की तुलना वर्तमान में परिपेक्ष में सर्वथा उचीत व तार्किक है। ?

  3. Very well written and very informative. People really don’t know about mushrooms and their qualities. This is a very well researched article.

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