बिहार बाल मंच फारबिसगंज के बैनर तले संगोष्ठी का हुआ आयोजन

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अररिया /सुमन ठाकुर

बिहार बाल मंच फारबिसगंज के तत्वाधान एवं पीडब्ल्यूडी के प्रांगण में विश्व पर्यावरण वर्ष 2020-21 के अंतर्गत स्कूली बच्चों के लिए विनोद कुमार तिवारी के संयोजन में वन पर्यावरण जागरूकता के उद्देश्य से एक संगोष्ठी – पैड़ पौधों का धार्मिक महत्त्व का आयोजन हुआ ।


संगोष्ठी को संबोधित करते हुए श्री विनोद कुमार तिवारी एवं पर्यावरण प्रेमी अरविंद ठाकुर ने कहा कि – प्राचीन काल में वृक्षों की पूजा खूब की जाती थी अब लोग वृक्ष पूजन कम करने लगें हैं जल वर्षण के अघात से शिशिर मैं तुषारपात और ग्रीष्म में सूर्य ताप से वृक्षों को उसी प्रकार बचाया जाता था जिस प्रकार माता पिता अपने बच्चों को बचाते थे।


आज भी देवता की भॉंति पीपल के वृक्ष की पूजा-अर्चना होती है स्त्री पुरुष सभी द्वारा व्रत रखकर इनकी परिक्रमा की जाती है और जलार्पण करती हैं । केले का वृक्ष का पूजन भी शास्त्रों में उल्लेखित हैं। तुलसी के पौधे की पूजा उतना ही महत्व रखती है जितना कि भगवदाराधन । बेल के वृक्ष के पत्तों की इतनी महिमा कि यह भगवान शिव के मस्तक पर चढ़ाए जाते हैं “सर्वरोगहरो निम्ब:”कह कर नीम के वृक्ष को प्रणाम किया जाता है संध्या के उपरांत किसी वृक्ष का पत्ता तोड़ना निषेध है क्योंकि वृक्ष भी सोते हैं मान्यता है ऐसी और हरे वृक्ष का काटना पाप माना जाता है।


कदंब वृक्ष को भगवान कृष्ण का प्रिय समझ कर लोग उसे श्रद्धा से प्रणाम करते हैं। अशोक का वृक्ष शुभ और मंगल दायक समझा जाता है तभी तो माता सीता ने तनु ‘अशोक मम करहु अशोका’ कह कर अशोक पेड़ के नीचे प्रार्थना की थी। यह है भारत का प्राचीन सभ्यता और संस्कृति में हमारी वन संपदा का महत्त्व। इस तरह आँवला, आम, महूआ के पेड़ों का भी धार्मिक महत्व बताया गया ।


दसवीं एवं बीसवीं शताब्दी के मध्य तक वृक्ष काटने वाले मनुष्य को अपराधी समझा जाता था और दंडनीय होता था।

इस अवसर पर बच्चों- राज कुमार, आयुष, झीम्मी, प्रीति, संध्या, अंकित, मनाई, कृष्णा, जागृति, मोहित, सत्यम, अर्चना, कुशाल, रौनक ने हाथों में पौधे लेकर संकल्प लिया कि वे सभी हर साल अपने जन्मदिन एवं मह्त्वपूर्ण अवसरों पर खाली स्थानों में पौधारोपण करेंगे, जल सिंचन करेंगे और वृक्षों की रक्षा कर पर्यावरण प्रहरी बनेंगे |

बिहार बाल मंच फारबिसगंज के बैनर तले संगोष्ठी का हुआ आयोजन