किसान आंदोलन की आड़ में घटिया राजनीति कब तक

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राजेश दुबे

दिल्ली में बीते दो महीनों से भी अधिक समय से जारी किसान आंदोलन को अब देश की विपक्षी पार्टियां सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए पूरी तरह से खुल कर सामने आ चुकी है । किसान संगठनों और सरकार के बीच हुई 11 दौर की वार्ता विफल रही । देश की सर्वोच्च न्यायलय ने भी कमेटी का गठन कर तत्काल कृषि कानूनों को स्थगित कर दिया । इन सबके बावजूद किसान संगठनों ने  ना तो सरकार की बात को कोई अहमियत दिया और ना ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी के सामने ही प्रस्तुत हुए ।

गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली की सड़कों पर किसान का भेष धरे उपद्रवियों ने नंगा नाच किया ताकि पुलिस गोली चलाए और उसका फायदा उठाते हुए ये पूरे देश में अराजक स्थिति पैदा करे ।दिल्ली में जो हुआ वो लोकतांत्रिक देश के ऊपर किसी काले धब्बे से कम नहीं था ।लाल किला में खुलेआम तिरंगा का अपमान किया गया और उपद्रवियों द्वारा सीधे सीधे केंद्र सरकार को चुनौती दी गई ।केंद्र सरकार और पुलिस कर्मियों ने धैर्य का परिचय दिया ,ताकि किसी निर्दोष की जान हिंसा में ना जाए ।

गणतंत्र दिवस हिंसा और लाल किला में तिरंगा के अपमान के बाद देश की तमाम विपक्षी पार्टियों ने पुलिस और सरकार की नाकामी पर सवाल उठाया और इसे भी  केंद्र की सोची समझी साजिश बताया ।जबकि सच्चाई यह थी कि निर्धारित समय से पूर्व ही किसान नेताओ द्वारा ट्रैक्टर रैली निकाली गई और जिन स्थानों पर पुलिस ने ट्रैक्टर रोकने की कोशिश की वहा पर उपद्रवियों ने बेरीकेट तोड़ दिया और पुलिस के ऊपर हमला करते हुए जिन रास्तों का परमीशन पुलिस ने नहीं दिया था उन रास्तों पर पहुंच गए , और अब वही विपक्षी पार्टियां जिनमे कांग्रेस प्रमुख है उन उपद्रवियों का मुकदमा लडने जा रही है , तो इसे क्या कहेंगे ?

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह जो किसान आंदोलन के शुरू होने के बाद से ही यह कह रहे थे कि किसान आंदोलन की आड़ में पाकिस्तान और अन्य देश विरोधी ताकते फायदा उठा कर पंजाब में आतंकी घटनाओं को अंजाम दे सकते है, वहीं अमरेन्द्र सिंह अब दिल्ली हिंसा में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए उपद्रवियों का मुकदमा लडने के लिए अधिवक्ताओं की टीम खड़ी करने वाले है और इसके लिए 70 अधिवक्ताओं का पैनल भी उन्होने तैयार कर लिया है।

खैर ये तो बात हुई कांग्रेस पार्टी की लेकिन शिव सेना भी कहा पीछे रहने वाली थी ।शिवसेना सांसद संजय राउत भी किसान संयुक्त मोर्चा के नेताओ से मिलने पहुंच गए और उन्होंने भी खुल कर,इस आंदोलन का समर्थन किया है । आम आदमी पार्टी तो पहले दिन से ही आंदोलन का समर्थन कर रही थी यही नहीं इस पार्टी ने तो 26 जनवरी में हिंसा होगी ,शायद इसकी जानकारी पहले से थी तभी तो पंजाब से दर्जनों एंबुलेस बुला कर खड़े कर दिए गए थे ।और ये सब सिर्फ आगामी चुनाव में मतदाताओं को लुभाने के लिए हो रहा है ।उत्तर प्रदेश ,पंजाब ,बंगाल सहित अन्य राज्यो में होने वाले चुनाव में फायदे को देखते हुए आज देश के कई राजनैतिक दल तिरंगा जिसके लिए लाखो लोगों ने अपनी शहादत दी उसका अपमान करने वालो के साथ खड़े है ।

आगामी 6 फरवरी को किसान नेताओं ने पूरे देश में चक्का जाम की घोषणा की है ,और उसके प्रश्चात एक के बाद एक नेता खुल कर सामने आ रहे है और आंदोलनकारी नेताओ का समर्थन कर रहे है ।सवाल उठता है कि आखिर यह कैसी राजनीति है कि विपक्षी पार्टियां सिर्फ चंद वोट की वजह से देश को आग के हवाले करना चाहती है ।देश में 50 वर्षों से भी अधिक समय तक कांग्रेस ने शासन किया ।कांग्रेस पार्टी ने अपने शासन काल में किसान हित में क्या कार्य किया यह देश के नागरिक जानते है ।

लेकिन आज जब केंद्र सरकार किसानों के हित में उनकी आय को बढ़ाने के लिए नया कानून लाई है तो वोट की राजनीति के लिए इन नेताओ द्वारा देश को गुमराह करने की कोशिश की जा रही है । देर सबेर किसान आंदोलन समाप्त हो जाएगा ,लेकिन अभी भी वक्त है कि विपक्षी पार्टियां देश को गुमराह करने से बचे ताकि उनकी स्वीकार्यता कुछ हद तक बरकरार रहे ।आंदोलन कारी किसानों को भी जिद छोड़ कर टेबल पर आकर वार्ता करनी चाहिए ना की देश की संपत्ति का नुकसान कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारनी चाहिए ।बातचीत से बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान निकल सकता है यदि आप निकालना चाहते है तो अन्यथा आज पुलिस ने धरना स्थल के आसपास तारबंदी और नुकीले कील लगाए है कल इससे एक कदम और आगे बढ़ कर धरना समाप्ति के लिए बल का प्रयोग कर सकती है ,तब शायद आज जो राजनैतिक दल साथ खड़े रहने का ढोंग कर रहे है वो भी ना हो और खाली हाथ ही वापस लौटना पड़े ।






सबसे ज्यादा पड़ गई