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उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो

न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए – बशीर बद्र

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और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा

राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ

आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ -अहमद फ़राज़

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अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे

तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे -वसीम बरेलवी


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उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो

धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है -राहत इंदौरी


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मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का

उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले – मिर्ज़ा ग़ालिब

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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें -अहमद फ़राज़


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अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता

न कुछ मरने का ग़म होता न जीने का मज़ा होता -चकबस्त ब्रिज नारायण


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कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं

नाख़ुदा जिन का नहीं उन का ख़ुदा होता है -अमीर मीनाई


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जो तू है प्यार का बादल तो बार-बार बरस,
न भीग पाउँगा मैं तेरे एक नज़ारे से – क़तील शिफ़ई



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हम अपने इख़्तियार की हद से गुजर गए,
चाहा तुम्हें तो प्यार की हद से गुजर गए,
जागी है अपने दिल में गुलाबों की आरज़ू,
जब मौसम-ए-बहार की हद से गुजर गए।


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खुद-ब-खुद शामिल हो गए तुम मेरी साँसों में,
हम सोच के करते तो फिर मोहब्बत न करते।

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काग़ज़ काग़ज़ हर्फ़ सजाया करता है,
तन्हाई में शहर बसाया करता है,
कैसा पागल शख्स है सारी-सारी रात,
दीवारों को दर्द सुनाया करता है,
रो देता है आप ही अपनी बातों पर,
और फिर खुद को आप हंसाया करता है।


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ढूंढ़ तो लेते अपने प्यार को हम,
शहर में भीड़ इतनी भी न थी,
पर रोक दी तलाश हमने,
क्योंकि वो खोये नहीं बदल गए थे ।


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अपने तजुर्बे की आज़माइश की ज़िद थी,
वर्ना हमको था मालूम कि तुम बेवफा हो जाओगे।

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नज़ारे तो बदलेंगे ही ये तो कुदरत है,
अफ़सोस तो हमें तेरे बदलने का हुआ है।



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तुम सुनो या न सुनो, हाथ बढ़ाओ न बढ़ाओ,
डूबते-डूबते एक बार पुकारेंगे तुम्हें।

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मेरे होने में किसी तौर से शामिल हो जाओ,
तुम मसीहा नहीं होते हो तो क़ातिल हो जाओ।

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ज़मीं छूटी तो भटक जाओगे ख़लाओं में,
तुम उड़ते उड़ते कहीं आसमाँ न छू लेना।

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बड़ी घुटन है, चराग़ों का क्या ख़याल करूँ,
अब इस तरफ कोई मौजे-हवा निकल आये।

~ इरफ़ान सिद्दीक़ी

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साभार :सोशल मीडिया से संकलित

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