हृदय विदारक तस्वीरों की हो रही नीलामी
8 से 20 हजार है मजदूरों के आंसुओ वाली तस्वीर की कीमत
राजेश दुबे
देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है बड़े पैमाने पर श्रमिक वर्ग पैदल ही अपने गांव की और निकल पड़े है ।श्रमिकों का दर्द समझा जा सकता है की जिन्होंने अपने मजबूत कंधो से शहरों को शहर बनाया वो आज दर दर की ठोकरें खाने को मजबुर है ।लेकिन इसी समय एक ऐसा वर्ग है जो अपनी दुकानदारी चमकाने में लगा हुआ है और किसी भी स्थिति में दर्द बेच कर अपनी झोली भरना चाहता है ।मजदूरों की हृदय विदारक तस्वीरों को , मजदूरों की फटी चप्पल और फटा बैग हजारों में बिक रहा है , इन मजदूरों को पता भी नहीं होगा कि कैसे उनके दर्द कि नीलामी हो रही है ।देश के नामी मीडिया समूह द्वारा इसकी नीलामी हो रही है ।दर्द में भी कैसे अपनी झोली भरी जा सकती है कोई इन मीडिया समूहों से सीखे माना कि इनका भी धंधा है ।लेकिन ये धंधा इतना गन्दा क्यो है जहा आंसुओ की नीलामी हो ।





























