मधुबाला मौर्या
अंत और आरम्भ
एक ही डोर के दो छोर
चलते है साथ-साथ
रहते है एकसाथ
आरम्भ सीखता जाता है
अंत सिखला जाता है
क्षण भर में, जीव का अंत
या निर्जीव -जीव हो जाता
आरम्भ है तभी तो अंत है
गर अंत नहीं तो आरम्भ कहाँ?
आरम्भ में, मैं – मैं ही हूं
अंत में, मैं – तुम हूं ।।

Author: News Lemonchoose
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