डाकिया

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माया गोविंद

डाकिये ने द्वार खटखटाया
अनबाँचा पत्र लौट आया |
साँझ थी और हाथ में था सांझ का दिया
डाकिये ने द्वार तभी खटखटा दिया
मेरा अहि लिखा पत्र हाथ में दिया
डाकिया तो चल दिया बुझा दिया दिया |
ये दिया बुझा तो बुझा आस का दिया
अब तो कोई ज़िन्दगी का दिल बुझा दिया
इंतज़ार भी थका, थका मेरा जिया
फिर ना कहना मैंने इंतज़ार ना किया
जब दिए ने ही दिया बुझाया
अनबाँचा पत्र लौट आया |

डाकिये ने द्वार खटखटाया
अनबाँचा पत्र लौट आया |

याद फिर से आयी उस घर की दहलीज़
अस्त व्यस्त कमरा और बिखरी हर चीज़
ननदी की हलचल और सासू की खीज़
तुलसी का बिरवा और वो कजरी तीज
धुली धुली चादर पे सेहमल के बीज
बिछिया और पायल की छेड़ बद्तमीज़
फिर मुझको याद आया प्रेम का मरीज़
चोरे चोरे नैना बिन बटन की कमीज
याद ने अतीत को चुराया
अनबाँचा पत्र लौट आया |

डाकिये ने द्वार खटखटाया
अनबाँचा पत्र लौट आया |

जीवन का कागज़ है , कलम ये सफ़र
स्याही के जैसा है रात का प्रहर
प्यास है सम्बोधन , आँसू हैं सिताक्षर
गगन के लिफ़ाफ़े पर चाँद की मुहर
प्रेम ही पता है, अनजान है नगर
दुनिया डाकघर, गायब पोस्टमास्टर
जीव डाकिये ने, डाक बांटी उम्र भर
फिर भी एक खत ना मिला सही पते पर
उत्तर की जगह प्रश्न पाया
अनबाँचा पत्र लौट आया |

डाकिये ने द्वार खटखटाया
अनबाँचा पत्र लौट आया |

माया गोविंद . फेसबुक वॉल से

डाकिया