परवीन शाकिर की तीन बेहतरीन रचनाएं

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(१) उलझन

रात भी तन्हाई की पहली दहलीज़ पे है
और मेरी जानिब अपने हाथ बढ़ाती है
सोच रही हूं
उनको थामूं
ज़ीना-ज़ीना सन्नाटों के तहख़ानों में उतरूं
या अपने कमरे में ठहरूं
चांद मेरी खिड़की पर दस्तक देता है

(२)बारिश

बारिश में क्या तन्हा भीगना लड़की!
उसे बुला जिसकी चाहत में
तेरा तन-मन भीगा है
प्यार की बारिश से बढ़कर क्या बारिश होगी!
और जब इस बारिश के बाद
हिज्र की पहली धूप खिलेगी
तुझ पर रंग के इस्म खुलेंगे।

(३) हमारे दरमियान

हमारे दरमियाँ ऐसा कोई रिश्ता नहीं था 
तेरे शानों पे कोई छत नहीं थी 
मेरे ज़िम्मे कोई आँगन नहीं था 
कोई वादा तेरी ज़ंज़ीर-ए-पा बनने नहीं पाया 
किसी इक़रार ने मेरी कलाई को नहीं थामा 
हवा-ए-दश्त की मानिन्द 
तू आज़ाद था 
रास्ते तेरी मर्ज़ी के तबे थे 
मुझे भी अपनी तन्हाई पे 
देखा जाये तो 
पूरा तसर्रुफ़ था 
मगर जब आज तू ने 
रास्ता बदला 
तो कुछ ऐसा लगा मुझ को 
के जैसे तूने मुझ से बेवफ़ाई की

सबसे ज्यादा पड़ गई