डेस्क/न्यूज लेमनचूस
यह तेरा विकास यह मेरा विकास न जाने किस-किस का विकास । विकास की जरूरत सभी को है पिछले 20 – 25 सालों में न जाने कैसे-कैसे विकास हुए और न जाने कितनों ने किस किस तरह के विकास करवाएं ।
अक्सर यह बहस छेड़ दी जाती है कि विकास का स्वरूप क्या है , कोई कहता है यह समाजवाद का विकास है और कुछ लोग कहते हैं विकास बहुजन का हुआ है और कुछ लोगों का मानना है कि विकास भारतीय जनता का हुआ है ।
कितने सालों में विकास ने कितनों को विकसित कर दिया है और शायद कुछ लोग इस विकास से अछूते रह गए हैं । इसलिए कभी-कभी लगता है विकास पगला भी गया है । इस विकास ने न जाने कितनों की जान ली और विकास अपनी गति से अपने पथ पर अग्रसर होता रहा । क्योंकि इस विकास यात्रा में कभी समाजवाद का साथ मिला तो कभी बहुजन का साथ मिला । लेकिन भारतीय जनता को बहुत दिनों तक विकास दिखा ही नहीं । शायद विकास ने ही अपनी परिभाषा ही बदल दी है । राजनीति और ऐसे विकास का गठजोड़ नया नहीं है ।
पिछले कई दशकों से चला आ रहा है पहले यह रूप जनता के सामने आ नहीं पाता था । अब जमाना इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया का है लाख छुपाए छुप नहीं पाता ।एक बड़ी घटना ने शेर की खाल में छुपे भेड़ियों के असली रूप को सामने ला दिया है उन्हें तो सजा मिल जाएगी । लेकिन उनके आकाओं पर कौन हाथ डालेगा उनके और साजिश को कौन सामने ला पाएगा शायद कोई नहीं ?
क्योंकि राजनीति और डेवलपमेंट के खेल में बिना विरोधी के विजेता कौन होगा । इसलिए विरोधी को भी बचाना है । क्योंकि आज तेरी तो कल मेरी बारी होगी और विरोधी नहीं होंगे तो लोकतंत्र कहां बचेगा । इसलिए सत्ता पक्ष और विपक्ष लोकतंत्र को बचाने के लिए एक दूसरे को बचाते हैं । उत्तर प्रदेश में 8 पुलिसकर्मी जो शहीद हुए तो बताया जा रहा है कि काफी पुलिस वाले क्रिमिनल से अच्छी खासी रकम ऐठ कर उन्हें पिछले 20 सालों से बचा रहा था ।यहां तक कि लिखने से भी ये कतराते थे ।
जबकि हत्या अपने ही सहकर्मी की हुई थी पुलिस रिकॉर्ड में ऐसे ढेर सारी घटनाएं हैं ,जहां अपने ही लोगों ने अपने लोगों को क्रिमिनल के हाथों मरवा दिया । कानपुर अकेला जिला नहीं जहां क्रिमिनल क्राइम कर लाए हुए मोटी रकम को महीने बाद अपने ही सहयोगियों में बांटता है । बल्कि देश के प्रत्येक जिले में ऐसे बहुत से क्रिमिनल और व्यापारी जो आर्थिक अपराध करते हैं प्रशासनिक गठजोड़ कर करोड़ों कमा रहे हैं ।
देश के कुछ जिले ऐसे भी हैं जहां आर्थिक अपराधी चुनिंदा अफसरों और न्यायिक पदाधिकारियों के लगातार फोन कांटेक्ट में रहते हैं । और प्रत्येक संडे को शहर से दूर उनके मनोविनोद की व्यवस्था करते हैं अभी हाल ही में बिहार के 1 जिले के न्यायिक पदाधिकारी ऐसे ही अपराध में पकड़े गए थे ।सरकार चाहे तो क्या नहीं कर सकती जिस तरह कॉल रिकॉर्ड से कानपुर कांड से जुड़े लोगों का पर्दाफाश हो रहा है हर एक जिले में आर्थिक अपराध का नेटवर्क चलाने वालों को ऐसे ही पकड़ा जा सकता है ।
लेकिन छोटे इलाके में इन अपराधियों के खिलाफ आवाज उठाने वालों की आवाज या तो प्रशासन ढेर सारे मुकदमे चलाकर दबा देती है या अपराधी हमेशा के लिए उनकी आवाज बंद कर देते हैं ।इसी डर के कारण थाने में हुई बीजेपी मंत्री की हत्या का आरोपी बच निकला । क्योंकि थाने के अंदर के प्रत्यक्षदर्शी भी मुकर गए सरकार है कि अपराधों को बुजुर्ग यानी 60 के पार होने का इंतजार करती है जिससे बुजुर्ग यानी अपराध खुद-ब-खुद चरमरा जाएंगे और नए-नए विकास आगे बढ़ते रहेंगे ।
लेखक कुमार राहुल कई समाचार चैनल में कार्य कर चुके है । ये उनके निजी विचार है ।





























