सुहिया-रेतुआ नदी पर वर्षों से अधूरी पुल की आस — सात दशक बाद भी चचरी पुल से गुजरते हैं हजारों लोग।
टेढ़ागाछ (किशनगंज) विजय कुमार साह
आजादी के सात दशक बाद भी किशनगंज जिले के बहादुरगंज विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत टेढ़ागाछ प्रखंड के चिल्हनियां पंचायत के लोगों की सबसे बड़ी मांग — सुहिया-रेतुआ नदी पर आरसीसी पुल का निर्माण — अब तक अधूरी है। यह नदी यहां के लोगों के लिए जीवन रेखा भी है और संघर्ष की कहानी भी। हर साल बरसात आते ही यह नदी उफान पर आ जाती है, और तब लोगों का जिला मुख्यालय किशनगंज या प्रखंड मुख्यालय टेढ़ागाछ से संपर्क टूट जाता है।
बरसात के दिनों में जब नदी चढ़ाव पर होती है, तो ग्रामीण नाव के सहारे आवागमन करते हैं। वहीं सुखाड़ के दिनों में लकड़ी और बांस से बना अस्थायी चचरी पुल ही जीवन का सहारा बनता है। लेकिन यह पुल हर साल टूटता है, बहता है और फिर ग्रामीण अपने खर्चे और श्रम से उसे जोड़ते हैं। यही कारण है कि लोगों का धैर्य अब जवाब देने लगा है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि पुल निर्माण की मांग आजादी के बाद से ही होती आ रही है। चुनाव के वक्त नेताओं के वादों की बाढ़ आ जाती है, लेकिन नतीजा हर बार निराशाजनक ही रहता है।
चुनावी मंचों से पुल निर्माण की घोषणाएं गूंजती हैं, पर चुनाव खत्म होते ही वादे भी धूल में मिल जाते हैं। चिल्हनियां पंचायत के मुखिया मोफत लाल ऋषिदेव और पूर्व पंचायत समिति सदस्य सीता देवी बताते हैं कि इस समस्या को लेकर पंचायत से लेकर जिला स्तर तक कई बार आवेदन दिए गए हैं। तत्कालीन डीएम तुषार सिंगला और वर्तमान जिलाधिकारी विशाल राज को भी ग्रामीणों ने सामूहिक आवेदन सौंपा, लेकिन अब तक कोई ठोस पहल नहीं हो सकी।
यह नदी न सिर्फ चिल्हनियां पंचायत, बल्कि टेढ़ागाछ, दिघलबैंक, बहादुरगंज, ठाकुरगंज, पोठिया जैसे आधा दर्जन प्रखंडों और दर्जनों पंचायतों के लोगों को जोड़ती है। हर दिन हजारों लोग इसी चचरी पुल के सहारे स्कूल, बाजार, अस्पताल और सरकारी कार्यालयों तक पहुंचते हैं। बरसात में जब नदी उफान पर होती है, तब यह पुल बह जाता है और लोग कई दिनों तक नदी पार नहीं कर पाते। इस दौरान स्कूली बच्चों की पढ़ाई ठप हो जाती है, मरीजों को अस्पताल पहुंचाना मुश्किल हो जाता है और कई बार जान-माल की क्षति भी होती है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि कई बार जन प्रतिनिधियों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों तक गुहार लगाई गई, पर किसी ने स्थायी समाधान की दिशा में कदम नहीं उठाया। ग्रामीण अब कह रहे हैं कि अगर शीघ्र ही पुल निर्माण की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो वे जन आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।
सुहिया-रेतुआ की यह कहानी सिर्फ एक पुल की मांग नहीं है, बल्कि यह बहादुरगंज के ठहरे हुए विकास की तस्वीर पेश करती है। यह वह सच्चाई है जो बताती है कि आज भी सीमांत जिले किशनगंज के कई गांवों में विकास सिर्फ कागजों और भाषणों तक सीमित है। जब तक सुहिया-रेतुआ नदी पर स्थायी पुल नहीं बनता, तब तक यहां के लोगों का संघर्ष और उम्मीद दोनों यूं ही बहते पानी की तरह जारी रहेंगे।




























