नक्सलबाड़ी :विधानसभा चुनाव की तैयारी को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं ने कसी कमर,प्रचार अभियान हुआ तेज

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फांसीदेवा विधानसभा क्षेत्र के चक्करमाड़ी स्थित दीवारों पर पार्टी द्वारा शुरू किया गया वॉल पेंटिंग

खोरीबाड़ी /चंदन मंडल

फासीदेवा विधानसभा में भाजपा कार्यकर्ताओं ने विधानसभा चुनाव की तैयारी को लेकर अपनी कमर कस ली है. भाजपा कार्यकर्ताओं ने विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जोरशोर से अपनी तैयारियां में जुट गए है. इसके लिए पार्टी ने अब प्रचार भी तेज कर दिया है.

सिलीगुड़ी सांगठनिक जिला के भाजपा युवा मोर्चा अध्यक्ष कंचन देवनाथ ने स्वयं फांसीदेवा विधानसभा क्षेत्र के चक्करमाड़ी में दीवार लेखन कर इसकी शुरुआत की . कंचन देवनाथ समेत अन्य कार्यकर्ता ने दीवारों पर लेखन शुरू कर किया है. इस कार्य में कंचन देवनाथ के अलावा रानीगंज – बिन्नाबाड़ी मंडल युवा मोर्चा अध्यक्ष तापस मांझी, महासचिव संतोष राय,सचिव नीरन चंद्र बर्मन , बूथ अध्यक्ष निर्मला महतो, किसान मोर्चा के स-अध्यक्ष सुधीर मंडल, शक्ति प्रमुख गोविंद राय , महिला मोर्चा अध्यक्ष मनीषा सरकार समेत अन्य भाजपा कार्यकर्ता उपस्थित थे. बता दें कि दार्जिलिंग , कालिम्पोंग, जलपाईगुड़ी आदि जिले में पांचवे चरण में 17 अप्रैल को चुनाव होना है.

चुनाव की डुगडुगी बजने के बाद राजनैतिक दलों के द्वारा इस बार चुनाव आयोग की सख्ती के कारण दीवारों पर पोस्टर बैनर नहीं दिख रहा है. राजनैतिक दल दीवारों पर पोस्टर बैनर लगाने से परहेज कर रहे है. दार्जीलिंग जिले में पांचवे चरण में विधानसभा का चुनाव होना है. आगामी 17 अप्रैल को मतदान होगा. लेकिन खोरीबाड़ी प्रखंड में चुनाव का कोई माहौल नहीं दिख रहा है. कहीं भी तामझाम नहीं है. सिर्फ चाय पान की दुकानों पर चुनावी चर्चा हो रही है. दस वर्ष पूर्व चुनाव की घोषणा होते ही राजनैतिक गर्माहट शुरू हो जाती थी.बाजारों के अलावा ग्रामीण इलाकों में पोस्टर,बैनर से दीवारों को रंग दिया जाता था.बड़े बड़े होडिग को लगाकर प्रचार प्रसार किया जाता था. इसके अलावा दीवारों पर स्लोगन लिखकर पार्टी और प्रत्याशी का प्रचार प्रसार किया जाता था, लेकिन चुनाव आयोग द्वारा खर्च पर सख्ती की वजह से भी राजनैतिक दलों द्वारा पोस्टर,बैनर नहीं लगाया जा रहा है. चुनाव आयोग ने सार्वजनिक स्थलों पर पोस्टर बैनर लगाने के लिए प्रतिबंध लगा दिया है. वहीं गृहस्वामी के इजाजत पर ही कोई राजनैतिक दल उनके घरों पर पोस्टर बैनर,झंडा लगायेंगे,अन्यथा उनके उपर चुनाव आयोग की पैनी नजर है. आचार संहिता का मामला भी दर्ज होगा. इधर कोरोना के कारण विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता लोगो से दूरी तो बनाये हैं, लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.

सोशल मीडिया के सहारे मतदाताओं को अपनी ओर लुभाने का प्रयास कर रहे हैं . अगर हमलोग करीब दो दशक पीछे जाकर देखें तो चुनावी सीजन में आंखों के सामने कार, बस या ऑटो में लगे झंडे, लाउडस्पीकर से प्रत्याशी को जिताने की अपील के साथ धुआंधार नारेबाजी और छोटे-छोटे प्लास्टिक या कागज के बिल्लों के लिए लपकते बच्चों वाली चुनाव प्रचार की तस्वीर जीवंत हो उठती है।लेकिन अब यह सीन पूरी तरह बदल चुका है और इसका स्थान छह इंच के मोबाइल फोन के स्क्रीन ने ले लिया है . पिछले एक दशक में तो सोशल मीडिया चुनाव प्रचार अभियान का सशक्त माध्यम बनकर उभरा है.भारत में राजनीतिक दल सोशल मीडिया को प्रचार के प्रमुख साधन के रूप में अपना रहे हैं. शायद ही कोई राजनीतिक दल ऐसा होगा, जो इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल अपनी बात रखने और प्रतिद्वंद्वियों के आरोपों का जवाब देने के लिए न कर रहा हो.

आज अधिकांश नेता और उनके समर्थक फेसबुक, वाट्सएप, ट्विटर जैसे माध्यमों से राजनीतिक दलों का अधिकाधिक प्रचार कर रहे है. इसके कई कारण हैं. सबसे पहले तो यह कि आज कोई ऐसा घर नहीं है जहां मोबाइल नहीं है, और शायद ही कोई ऐसा स्मार्टफोन हो जिसमें वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब नहीं हो.सोशल मीडिया की पहुंच पर तो किसी को संदेह ही नहीं.इससे सटीक प्रचार माध्यम फिलहाल कुछ नहीं है. दूसरा इस प्रचार तंत्र में सूचनाओं का फ्लो काफी तेजी से होता है.पहल झपकते ही आप लाखों के बीच अपनी बात पहुंचा सकते हैं.तीसरा इस माध्यम से प्रचार करना अपेक्षाकृत सस्ता भी होता है. बस मोबाइल में इंटरनेट होना चाहिए. पोस्ट लिखा, हैशटैग किया और पहुंच गए टारगेट ऑडिएंस के पास.

सबसे ज्यादा पड़ गई