बिहार :सुपौल में बाबा मेहरबान तो गधा पहलवान

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करोड़पति बनने की गारंटी…!

प्रवीण गोविन्द / अतिथि संपादक

  • सुपौल : बहुत पुरानी कहावत है – किस्मत मेहरबान तो गधा पहलवान । लेकिन यहां; बाबा मेहरबान तो खांटी करोड़पति बनने की गारंटी है। सो बाबा से अच्छा सम्बन्ध रखिए तकदीर बदल जाएगी। प्रत्यक्ष के आगे प्रमाण की क्या जरूरत, बाबा से ताल्लुक रखने वाले लोगों का जीवन स्तर बढ़ा है । कल तक एक साइकिल के लिए दूसरों का मुंह ताकने वाले आज लखदक गाड़ियों में ठसक के साथ चलते हुए आसानी से देखा जा सकता है (जांच का विषय)। ऐसे लोग बाबा से संबंध को अपनी शान समझते हैं । वर्तमान में भी कई लोग ऐसे हैं जो बाबा की कृपा से करोड़ों में खेल रहे हैं। सुशासन के सूरमा हैं बाबा

आप बाबा के आदमी हैं तो सब चलेगा। आप सरकारी योजनाओं में खुलेआम दो नंबर के बालू का प्रयोग कर सकते हैं, ईंट के बदले टुकड़ों का भी सरेआम इस्तेमाल। जिला मुख्यालय स्थित वार्ड नंबर- 7 (चकला निर्मली, न्यू कॉलोनी) में हाल के दिनों में बनी सड़क व नाले इसकी पुष्टि करती है।

खैर, बाबा सुशासन के सूरमा हैं। प्रायः कहा करते हैं कि सड़कों के निर्माण में किसी को लूट की छूट नहीं दी जाएगी। लेकिन वस्तु-स्थिति के अवलोकन के बाद हम तो यहीं कहेंगे कि बाबा की बाते सरजमीं पर दम तोड़ देती है। मतलब, खाने के दांत अलग और दिखाने के अलग हैं। हां, आप बाबा के आदमी हैं तो आपको छेड़ने की जहमत प्रायः अधिकारी भी नहीं उठाएंगे।

भगवान भला करे या न करें , रजनीगंधा जरूर भला करेगा

अब इन्हें ही लीजिए, बाबा की कृपा से नेता मालदार हो गया है , छातापुर से चुनाव लड़ने का सपना भी देखने लगा है, पिपरा पर भी नजर है। बाबा की कृपा से ठेकेदारी तो कर ही रहा है , जात-पात के नाम पर नेतागिरी अलग से ।

अब भला उन्हें कौन समझाए कि छातापुर से चुनाव लड़ने पर उसे ” कोठी ” में मुंह देकर रोना पड़ेगा । कारण विप चुनाव में सुपौल , सहरसा व मधेपुरा के तीन – तीन दिग्गज एक साथ मिलकर छातापुर विधायक का कुछ भी नहीं कबाड़ पाए, अंतत : नीरज
बबलू की अर्धांगिनी ने ही जीत का परचम लहराया । सो बाबू सपना देखना छोड़कर इसी तरह दुकान से बाबा का रजनीगंधा ( गुटका खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है) लाते रहिए ।

भगवान भला करे या न करें , रजनीगंधा जरूर भला करेगा। ज्यादा लोभ मत कीजिए, ठेकेदारी के नाम पर लूट की छूट तो है ही। संतोष कीजिए, पहले का दिन याद कीजिए, वैसे भी अधिक उम्र होने के बाद मोह-माया बढ़ता है। बाबा को भी घर है, परिवार है, बाल-बच्चे हैं। थोड़ा रहम कीजिए, बाबा के किसी परिजन को हाउस जाने दीजिए, चर्चा के साथ-साथ बाबा की भी दिली इच्छा यही है।

भगवान से तो डरिए

अब इनको देखिए , कल तक बस स्टेंड पर उठक – बैठक किया करते थे, बाबा की नजर क्या पड़ी नगर परिषद को ही पॉकेट में रखने लगे। यहां तक तो ठीक है , लेकिन आज – कल वे खुद को ही बाबा समझने लगे हैं। किसी को कुछ समझता ही नहीं । लगता है कि इन्हीं का ही पूरा सुपौल हो । भगवान से तो डरिए , एक जन्म के पाप का फल लोगों की नजर के सामने है , समझा कीजिए।


समझा कीजिए भाई, गलतफहमी में मत रहिए।मुर्गा अगर बांग नहीं देगा तो क्या सूरज नहीं निकलेगा? लोग नहीं जागेंगे? .ये मुर्गे की गलतफहमी है, मुर्गा मत बनिए। अब भला क्या कीजिएगा इंसान है गलत फहमी हो जाती है। बहरहाल, नामों की लंबी फेहरिस्त है, फिर कभी।

सबसे ज्यादा पड़ गई