गिरवी के पत्थर ।

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एक बार गुरु नानक बगदाद गए हुए थे । वहां का शासक बड़ा ही अत्याचारी एवं अन्याय था । वह जनता को कष्ट देकर उनकी संपत्ति को लूट कर अपने खजाने में जमा किया करता था । उसे जब मालूम हुआ कि हिंदुस्तान से कोई साधु पुरुष आया है तो वह नानक जी से मिलने उनके पास गया कुशल समाचार पूछने के उपरांत नानक जी ने उससे एक सौ पत्थर गिरवी रखने की विनती की । शासक बोला पत्थर को गिरवी रखने में कोई आपत्ति नहीं । किंतु आप उन्हें लेकर जाएंगे आपके पूर्व ही मेरी मृत्यु होगी मेरे मरणोपरांत इस संसार में आप की जीवन यात्रा समाप्त होने पर जब आप मुझसे मिलेंगे तब इन पत्थरों को मुझे दे दीजिएगा  नानक जी बोले । आप भी कैसी बातें करते हैं महाराज भला इन पत्थरों को लेकर मैं वहां कैसे जा सकता हूं । तो फिर जनता को चूस चूस कर आप जो अपने खजाने में वृद्धि किए जा रहे हैं । क्या वह सब यही छोड़ेंगे या उसे भी अपने साथ ही ले जाएंगे बस साथ में मेरे इन पत्थरों को भी लेते आइएगा । उस दुराचारी की आंखें खुल गई नानक जी के चरणों पर गिरकर उनसे क्षमा मांगी और प्रजा को कष्ट ना देने का वचन दिया।

गिरवी के पत्थर ।