इस जिंदगी में वादे तो सभी किया करते हैं,
लेक़िन साथ कोन है निभाता,
अगर वे बेवफा होकर यादों को भुलाया जाता,
तो फिर मुस्कुरा कर दर्द क्यों छुपाता।
जाने क्यों तेरी याद आने लगती है,
मेरे होठो पे क्यों ये बात आने लगती है,
जो कभी तन्हाइयो में बैठने लगते हैं,
तब वो पहली मुलाकात याद आने लगती है।
अब हम उनसे नही करते है ज्यादा बात,
क्योंकि उनसे मिलके रोक नही पाते है हम अपने जज्बात।
कल नुमाइश में फिर गीत मेरे बिके
और मैं क़ीमतें ले के घर आ गया
कल सलीबों पे फिर प्रीत मेरी चढ़ी
मेरी आँखों पे स्वर्णिम धुआँ छा गया
कल तुम्हारी सु-सुधि में भरी गन्ध फिर
कल तुम्हारे लिए कुछ रचे छन्द फिर
मेरी रोती सिसकती सी आवाज़ में
लोग पाते रहे मौन आनंद फिर
कल तुम्हारे लिए आँख फिर नम हुई
कल अनजाने ही महफ़िल में, मैं छा गया
कल सजा रात आँसू का बाज़ार फिर
कल ग़ज़ल-गीत बनकर ढला प्यार फिर
कल सितारों-सी ऊँचाई पाकर भी मैं
ढूँढता ही रहा एक आधार फिर
कल मैं दुनिया को पाकर भी रोता रहा
आज खो कर स्वयं को तुम्हें पा गया
– डॉ. कुमार विश्वास