लखीमपुर पर गिद्ध राजनीति

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राजेश दुबे

कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर कथित किसान संगठनों द्वारा जारी आंदोलन अब दिल्ली से उत्तर प्रदेश पहुंच चुका है । ताजा मामला लखीमपुर खीरी का है। जहां रविवार की शाम को कथित किसान संगठनों द्वारा किए जा रहे प्रदर्शन मे 10 लोगों की मौत हो गई है ।हिंसा की शुरुआत में यह खबर आई कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे ने आंदोलन कर रहे किसानों को गाड़ी से कुचल दिया ।लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया परत दर परत सच्चाई अब खुल कर सामने आ रही है। 

सोशल मीडिया पर जारी कई वीडियो इन किसानों की सच्चाई को उजागर कर रहे है ।हाथो में फरसा ,डंडा,तलवार लिए कथित किसान जिस तरह से बीजेपी कार्यकर्ताओं एवं एक ड्राइवर की पिटाई करते देखे जा रहे है ,उससे साफ तौर पर यह समझा जा सकता है कि इनकी मनसा क्या है ।हालाकि 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद ही इनकी मंशा जाहिर हो चुकी थी ।

सोशल मीडिया पर ड्राइवर की पिटाई का वायरल वीडियो इतना वीभत्स है कि किसी का भी रूह इसे देखकर कांप जाए ।पिटाई कर रहे दंगाइयों से व्यक्ति हाथ जोड़ कर रहम की भीख मांग रहा है, लेकिन उससे जबरन यह कबूलवाने के लिए उसकी पिटाई की जा रही है कि बोलो तुम्हे टेनी (केंद्रीय गृह राज्य मंत्री )के बेटे ने हमलोगो पर गाड़ी चढ़ाने के लिए भेजा है ।जबकि बेचारा ड्राइवर रहम की भीख मांग रहा था।ड्राइवर भी किसान का ही बेटा था लेकिन उसपर किसी को दया नहीं आई और उसकी पीट पीट कर हत्या कर दी गई ।






ताज़ा जानकारी के मुताबिक इस हमले में एक पत्रकार रमन कश्यप की भी हत्या कर दी गई है ।जिनका शव आज बरामद किया गया है। वहीं कई पत्रकारों के घायल होने की खबर है, साथ ही आज एक निजी समाचार चैनल के पत्रकार के साथ धक्का मुक्की कर उन्हें कवरेज से रोक दिया गया और मौके से भगा दिया गया। 

दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा मामले को तुल देने की कोशिश में जुटे हुए है ।ताकि आगामी विधान सभा चुनावो में इसका लाभ उठाया जा सके ।सवाल उठता है कि हिंसा में मारे गए किसानों के अगर जान की कीमत है तो क्या उन बीजेपी कार्यकर्ताओ एवं उस ड्राइवर के जान की कोई कीमत नहीं है ।जिस कृषि कानूनों के खिलाफ बीते दस महीनों से कथित किसान आंदोलन कर रहे है, उसमे काला क्या है अभी तक ये बताने में राकेश टिकैत और उनके साथी असफल रहे है। किसानों के नाम पर सियासी प्रदर्शन जारी है और यह आगे भी जारी रहने की संभावना है।

विपक्षी नेताओ के द्वारा लखनऊ से लेकर दिल्ली ,पंजाब तक प्रदर्शन कर इसका सियासी लाभ उठाने की कोशिश की जा रही है ।वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरे मामले पर धैर्य का परिचय दिया है ।

हालाकि कह सकते है कि इस हिंसा को पूर्व में रोका जा सकता था ,कहीं ना कहीं खुफिया एजेंसियों की चूक से यह घटना हुई है ।सरकार ने मृतकों के परिजनों को 45-45 लाख रुपए मुआवजा एवं परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की घोषणा की है।

किसान नेता राकेश टिकैत और एडीजी कानून व्यवस्था श्री प्रशांत कुमार एवं अन्य अधिकारियों के बीच हुई बैठक में यह सहमति बनी है । श्री प्रशांत कुमार ने पत्रकार वार्ता के दौरान कहा कि सेवानिवृत्त हाई कोर्ट के जज की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया जाएगा और पूरे मामले की न्यायिक जांच करवाई जाएगी ।

उन्होंने कहा कि मामले में जो भी दोषी होंगे उन पर कार्रवाई की जाएगी ।वहीं घायलों को दस लाख रुपया मुआवजा देने की भी घोषणा की गई है ।इस पत्रकार वार्ता में राकेश टिकैत भी शामिल रहे और उन्होंने किए गए घोषणा पर अपनी सहमति जाहिर की है ।जिसके बाद उन विपक्षी पार्टियों के मंसूबों पर पानी फिरता दिख रहा है जो इस घटना को लेकर राजनैतिक रोटी सेकने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इन घटनाओं से उत्तर प्रदेश सरकार एवं केन्द्र सरकार को सबक लेने की जरूरत है । कथित किसान आंदोलन से कैसे निपटा जाए उसपर ठोस रणनीति बनाने का समय आ चुका है ।क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों की कमजोरी का नुक़सान आगे भी उपद्रवी तत्व उठाने से नहीं चूकेंगे ऐसा विपक्षी नेताओ के बयान से प्रतीत होता है ।जिसका खामियाजा कोई ना कोई निरीह गरीब ड्राइवर ,पत्रकार को अपनी जान गंवा कर उठाना पड़ेगा ।






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