व्यंग्य :बिहारी -बंगाली -डॉ सजल प्रसाद

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बिहारी-बंगाली
व्यंग्य / डॉ. सजल प्रसाद
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किसी भी बॉर्डर पर रहने वाले लोगों की मनःस्थिति सरहद से दूर रहने वाली जनता से भिन्न होती है। सरहदी लोग प्रायः उभयलिंगी हो जाते हैं। यानी इस पार भी और उस पार भी। अब ये बॉर्डर दो राज्यों का हो या दो जिलों का अथवा दो थाना क्षेत्रों का ! दोनों ओर के लोग एक-दूसरे के मामले में कभी मनचाहा और कभी अनचाहा घुसपैठ करने से बाज नहीं आते।
ऐसे ही एक दिन बिहार-बंगाल बॉर्डर पर एक बिहारो बाबू और एक बंगाली बाबू की मुलाकात हुई तो, खैनी मलते हुए बिहारी बाबू ने पूछा – ” ए हो बंगाली बाबू ! बड्ड दिनों के बाद तोहरा से भेंट भइल .. ढ़ेर दिनों से एगो सवाल हमारे दिमाग में कीड़े की तरह कुलबुला रहा है। “
” देखुन बिहारी बाबू ! आमरा भोद्रो लोकेर लोग .. प्रोश्नो टा खूब भेबे आर खूब भालो भाबे कोरबेन ! ” – अपना चश्मा ठीक करते हुए बंगाली बाबू ने कहा।
” हाँ.. हाँ ! बंगाली बाबू ! हम जानते हैं कि बंगाल जो आज सोचता-करता है, वो शेष भारत बीस साल बाद सोचता-करता है … बंगाल ‘भद्र लोक’ है और वहां के लोग खूब शिक्षित और ज्ञानी होते हैं। “- बिहारी बाबू ने मस्का लगाया तो, बंगाली बाबू ने इस बार अपनी धोती ठीक की।


“अच्छा ई बताइए कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना तंबू-डंडा पहले कोलकाता में क्यों गाड़ा था ? … और, गाड़ा ही था तो, आप सभी भद्रलोक मिलकर काहे नहीं तंबू उखाड़ दिए थे ? – बिहारी बाबू ने जानबूझकर चुटकी लेते हुए पूछा।
हत्थे से उखड़ गए बंगाली बाबू – ” आपलोग कोभी इतिहास-भूगोल पोढता ही नहीं है तो, क्या जानिएगा .. खाली खैनी-भांग उड़ाइएगा और ऊलजलूल प्रश्न कोरिएगा। ” एकदम पूर्व राष्ट्रपति प्रणब दा की तरह बांग्ला टोन में हिंदी बोल रहे थे बंगाली बाबू।
” गुस्सा नहीं होइए बंगाली बाबू ! हमरा दिमाग में जो सवाल कुलबुला रहा है, वो दूसरा है। “
” ओटा ही प्रोश्नो कोरेन ना ! ” – उकताए बंगाली बाबू बोले।


बिहारी बाबू ने बेफिक्री से चुटकी से खैनी उठाकर अपने होठों के नीचे दबाया और हथेली पर रखे खैनी के बुरादे को झाड़ते हुए कहा – ” ई बताइए कि हर पाँच साल में लोकसभा अउर विधानसभा के चुनाव काहे होता है ?” “
” आपनी आबार फालतू प्रोश्नो कोरलेन। “- बंगाली बाबू कहकर जाने लगे।
पर, बिहारी बाबू ने भर-पांजर बंगाली बाबू को पकड़ लिया और एक तरह से जबरदस्ती उन्हें एक कुर्सी पर बैठा दिया। फिर, खुद दूसरी कुर्सी पर बैठ गया। इस पकड़ से बंगाली बाबू का चेहरा तमतमा गया।
लेकिन, इससे बेखबर बिहारी बाबू ने स्वयं मुलायम लहजे में कहना शुरू किया – ” देखिए बंगाली बाबू ! ये चुनाव नहीं वस्तुतः त्रेता युग से शुरू स्वयंवर का दूसरा रूप है। इस डेमोक्रेसी में जनता हर पांच साल पर दुल्हन बना दी जाती है और जबरदस्ती स्वयंवर रचने के लिए मजबूर की जाती है। “


“कुछ भी ..! एई कोथा आर सुनबो ना .. ! “
पर, लगता था कि बिहारी आज पहले से शिव जी का प्रसाद भी चढ़इले था, इसलिए बिना ब्रेक के वह बोलता जा रहा था – ” ऐसा नहीं होना चाहिए .. परमानेंट काम होना चाहिए .. ऐसे भी अब लोकतंत्र की आड़ में राजतंत्र ही चल रहा है … तो, बार-बार नाटक करने से क्या फायदा ! .. एक बार जनता जिसे पीएम-सीएम चुन ले, वही ताउम्र राज करे, विरासत में गद्दी उसी पार्टी या पार्टी सुप्रीमो की संतानें राज करती रहें ! .. हर पाँच साल में होने वाले चुनाव के बाद जो भी राजा बनता है, उसका मन-मिजाज एक जैसा ही रहता है .. सब निष्ठुर की तरह शोषण ही करते हैं तो, बार-बार चुनाव क्यो हो ! “
” तुम बिहारी भाई लोग अनपढ़ ही रहेगा .. बेकार का सोब कोथा बोल रहा है … देखो ! हमारा बंगाल में .. दोस साल से दीदी का राज था और थर्ड टाइम भी बंगाल में दीदी ही जीता है …दीदी का हैट्रिक हुआ है ! ” – बंगाली बाबू ने ज्ञान बघारा।


इस बार चिलम में गांजा सुलगाकर बिहारी बाबू ने एक लंबी सांस में कश लिया और किसी अघोरी की तरह आँखें लाल करके कहने लगा – ” आप बथुवा जानते हैं बंगाली बाबू ! .. दीदी के पीछे किसका राज चल रहा है सब जानते हैं … सुनिए ! हम जो कह रहे हैं ..ध्यान से सुनिए .. आपका बंगाल में जो खेला हुआ है उसका अंदाज़ा आपको नहीं है … कांग्रेस और लेफ्ट गठबंधन को ठिकाने लगाने के लिए खेला हुआ है … बंगाल में जेतना हिंसा होगा, उतना फायदा लेने का प्लान है … 2024 में थर्ड टर्म पक्का करने का खेला हुआ है ! “
यह सुनकर बंगाली बाबू चौंके। अपने चश्मे का शीशा धोती के पल्लू से साफ किया और फिर आँखों में चश्मा डालकर बिहारी बाबू का चेहरा पढ़ने की कोशिश करने लगे। पर, बिहारी बाबू आज जैसे बॉर्डर पार की सियासत समझाने के मूड में आ गए थे।
वे अपने ही अंदाज़ में चालू थे – ” देखिए बंगाली बाबू ! एगो स्टेट में सीएम नही हुआ तो क्या हुआ .. दूर की कौड़ी फ़ेंकले है ई सब, आप नहीं बुझिएगा .. ! अच्छा ई बताइए ! ईवीएम का खेला केवल नंदीग्राम में काहे हुआ .. ! काहे नहीं दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में हुआ .. ! जितला के बाद से जेतना हिंसा हो रहा है .. उसका डायरी तैयार हो रहा है … ! संविधान के दायरे में रहने का हिदायत दिया जा रहा है… जिन संवैधानिक प्रमुखों को वर्ष 2014 के पहले रबड़ स्टाम्प कहा जाता था अब वो भी बंगाल में सुपर एक्टिव हैं ! “





” बूझते पेरे छी ! प्रेसिडेंट रूल इम्पोज कोरने का प्लान चोल रहा है किंतु, भेबे राखबेन आपनारा .. दुग्गा-काली सोब आमादेर बंगाले थाके। ” – बंगाली बाबू ने अपने दोनों हाथों की आस्तीनें चढ़ाते हुए कहा।
बिहारी बाबू को चिढ़ाने में मजा आने लगा था। उसने फिर बैटिंग शुरू की – ” अच्छा बंगाली बाबू ! ई सब पॉलिटिक्स छोड़िए … ई बताइए कि बंगाल की महिलाएं इतनी सुन्दर और प्रतिभाशालिनी क्यों होती है ? .. और, ये भी बताइए कि बिहार के मर्द इतने मेहनतकश, गठीले और सुदर्शन क्यों होते हैं ?
इस तरह के बाउंसर सवाल पूछे जाने का अनुमान भी बंगाली बाबू को नहीं था। इसलिए वे अन्यमनस्क हो गए। एकबार अपनी कद-काठी मन ही मन नापी और पॉकेट से सिगरेट की डिब्बी निकाली। डिब्बी से एक सिगरेट निकाल कर सुलगायी और होंठो से लगाकर जैसे दार्शनिक की तरह इस बाउंसर सवाल का जवाब तलाशने लगे।
” सुनिए बंगाली बाबू ! ई सवाल आईएएस व आईपीएस बनाने वाले यूपीएससी के इंटरव्यू में पूछा गया था .. कहिए ! है न यह लाख टके का सवाल ” – बिहारी बाबू ने फेंका। फिर कहने लगा – ” अब लाख टके का कहाँ ! अब तो करोड़ टका का सवाल होता जा रहा है … सटीक जवाब देकर आईएएस-आईपीएस बनने वाले बिहारियों को देहरादून पहुंचने से पहले ही छेक लिया जाता है। ” बिहारी बाबू ने एक नया राज पर्दाफाश किया था। जिसे समझने में बंगाली बाबू को थोड़ा वक़्त लगा। पर, वो समझ गए।


” किन्तु, बिहारी बाबू ! बंगाली महिला और बिहारी पृरुष वाला प्रोश्नो का क्या उत्तर होगा ? ” – बंगाली बाबू की जिज्ञासा बनी हुई थी, इसलिए वे मूल सवाल पर लौट आए।
बिहारी बाबू ने पहले अंगड़ाई ली, फिर अपनी मूंछें उमेठते हुए बंगाली बाबू की आँखों में आँखें डालकर कहना शुरू किया – ” देखिए बंगाली बाबू ! दरअसल बंगाल में देवी पूजा जैसे दुर्गा पूजा, लक्ष्मी पूजा, काली पूजा की प्रधानता है, इसलिए बंगाल की महिलाएं सुन्दर एवं प्रतिभासम्पन्न होती हैं। ” यह कहकर वे चुप हो गए।
” किन्तु, बिहारी पृरुष क्यों मेहनतकश और गठीला होता है … ? ” – बंगाली बाबू इसका उत्तर जानने को उत्सुक हुए जा रहे थे।
बिहारी बाबू मुस्काए .. हंसने लगे और बंगाली बाबू के कांधे पर हाथ रखकर कहा – ” बिहार में देव पूजा अर्थात शिव जी और हनुमान जी की पूजा की प्रधानता है, इनके अलावा श्रीराम और श्रीकृष्ण की भी पूजा-आराधना होती है, इसलिए बिहारी मर्द मेहनतकश, गठीले और सुदर्शन होते हैं। ” बिहारी बाबू के इस तर्कपूर्ण उत्तर को बंगाली बाबू काट नहीं सके थे।

सम्प्रति :
एसोसिएट प्रोफेसर व
विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग
मारवाड़ी कॉलेज, किशनगंज (बिहार)।






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