व्यंग्य : सिस्टम का शिकार – डॉ. सजल प्रसाद

SHARE:


व्यंग्य / डॉ. सजल प्रसाद
•••••••••••••••••••••••••••••••••


” सर ! एक मोटा और तंदुरुस्त शिकार ऑफिस की तरफ ही आ रहा है। ” – चपरासी ने चिंहुँक कर कमरे में अपनी मुंडी घुसेड़ कर आवाज़ लगायी।
यह सुनकर टेबल पर फाइलों के बीच शुतुर्गमुर्ग की तरह अपनी मुंडी घुसाए बैठे छोटा बाबू की जैसे बाँछें खिल गई और अपनी देह में एक फुरफुरी-सी महसूस की। मुँह में पान की गिलौरी दबाए बैठे छोटा बाबू का मुँह चबर-चबर चलने लगा। होली का पर्व सर पर था, लेकिन कोई मुर्गा हलाल होने के लिए ऑफिस की तरफ आ ही नहीं रहा था। अब एक आस जगी।
कोरोना की दूसरी लहर आने की आशंका के कारण पिछले एक महीने से ऑफिस परिसर रेगिस्तान की तरह बियाबान हो गया था।

ऐसे में एक मोटा और तंदुरुस्त शिकार आने की शुभ सूचना पाकर छोटा बाबू अपनी कुर्सी छोड़कर तेजी से बड़ा बाबू की केबिन की तरफ बढ़े और उन्हें शुभ सूचना से अवगत कराया।
सूचना पाकर बड़ा बाबू के चेहरे पर बिजली की तरह खुशी की एक लहर दौड़ गई और उनके मुँह से यही निकला – ” बड़े दिनों के बाद ऐसी खबर दे रहे हो, छोटा बाबू ! “
” जी, सर ! “- जवाब में छोटा बाबू ने लिपिकीय स्वभाव के तहत संक्षिप्त जवाब दिया।
” खैर ! चलिए देखते हैं आगे क्या होता है ! ” – बड़ा बाबू ने जैसे लगाम कसी।


छोटा बाबू के केबिन से निकलते ही बड़ा बाबू अपनी कुर्सी से उठे और साहब के चैम्बर की तरफ बढ़े। लेकिन, चैम्बर के द्वार पर पहुंचते ही उनके कदम ठिठक गए। द्वार के ठीक ऊपर लाल बत्ती जल रही थी। इसका मतलब यही होता था कि साहब अभी मोबाइल पर मशरूफ हैं।
लेकिन, बड़ा बाबू के पेट में भी मरोड़ होने लगा था, इसलिए एक मोटा और तंदुरस्त शिकार आने की शुभ सूचना देकर साहब से अपनी पीठ थपथपावना चाह रहे थे।


उधर, गद्देदार रिवाल्विंग चेयर पर बैठे साहब को भी एक हिचकी सी आयी तो उन्हें लगा कि कोई उन्हें याद कर रहा है। बात भी सच थी। बड़ा बाबू द्वार पर खड़े-खड़े साहब को याद ही कर रहे थे।
साहब अपनी कुर्सी से उठे तो, कुर्सी के अस्थिपंजर को भी जान में जान आयी और चीं ..चीं की आवाज़ हुई। यही सिग्नल होता था बड़ा बाबू के चैम्बर में घुसने की अनुमति का। साहब अपनी उम्र और ओहदे के वजन से दुगुने वजन के स्थूलकाय देह धारक थे। इसलिए कुर्सी भी पनाह मांगती थी। रिवाल्विंग चेयर जरूर थी किन्तु, जब से यह साहब आए थे तब से कुर्सी घूमती ही नहीं थी। 100 किलो वजन वाले साहब को बिठाकर कुर्सी घूमने की स्थिति में नहीं होती थी।


इधर, पर्दा हटाकर जब बड़ा बाबू चैम्बर में जब दाखिल हुए तो खड़े होकर खिड़की से बाहर झाँक रहे साहब की पीठ उनकी तरफ थी। बड़ा बाबू ने अपनी बातों में चाशनी घोलते हुए कहा – ” सर ! एक मोटा और तंदुरुस्त शिकार ऑफिस की तरफ आ रहा है। “
सुनकर साहब अचानक पलटे और थोड़ा आशंकित होकर कहा – ” पिछली बार की तरह तो नहीं होगा ! “
बड़ा बाबू को पिछली घटना याद आ गई। उस आसामी से कुछ हासिल नहीं हो पाया था। इसका कारण यही था कि उससे एडवांस में कुछ नहीं लिया गया था और काम होने के बाद ही एक मुश्त मोटा माल देने का वायदा उसने किया था, लेकिन काम होने के बाद वह आसामी वादे से मुकर गया था।


” नहीं सर ! .. इस बार बतौर पेशगी पहले ही फिफ्टी परसेंट ले लिया जाएगा। ” – बड़ा बाबू भी इस बार कमर कस कर जैसे बोल रहे थे।
” देख लीजिएगा, बड़ा बाबू ! इस बार मैं कोई कैफियत नहीं सुनूँगा। ” – साहब ने अपना फैसला सुनाया।
” फाइल पर दस्तख़त होने के पहले ही सारा हिस्सा मिल जाना चाहिए … कुछ भी गड़बड़ी हुई तो आपको अपने वेतन से देना होगा। ” – अपने फरमान का अगला हिस्सा साहब ने सुनाया।


मरता क्या न करता ! बड़ा बाबू साहब से नज़रें मिलाते हुए केवल यही कह सके – ” जी, बिल्कुल ! इस बार कोई भूल-चूक नहीं होगी … साहब का हिस्सा इस दफे सुरक्षित रहेगा और फाइल के साथ ही टेबल पर पहुँच जाएगा। “
पिछली घटना से सबक लेकर इस बार पूरा ऑफिस सचेत और सतर्क था। जाल बिछाकर शिकार को फांसने की योजना पहले से ही बनी हुई थी। चपरासी, छोटा बाबू, बड़ा बाबू और साहब तक की भूमिका तय हो चुकी थी। सभी अपनी-अपनी भूमिका के अनुसार एक्ट प्ले के लिए एक महीने से रिहर्सल कर रहे थे।


अब फाइनल एक्ट प्ले का वक्त आ गया था। मोटा और तंदुरुस्त शिकार के आने की शुभ सूचना मिलते ही सभी मन ही मन पुलकित थे। सभी आसन्न होली का त्योहार धूमधाम से मनाने का प्लान भी बनाने लगे थे।


आख़िरकार शिकार ऑफिस की सीढियां चढ़ने लगा था। चपरासी दौड़-दौड़ कर छोटा बाबू को आँखों देखा हाल किसी कुशल कमेंटेटर की तरह सुना रहा था और उसी तर्ज पर छोटा बाबू अपने बड़ा बाबू को एवं बड़ा बाबू अपने साहब को कमेंट्री सुना रहे थे।
मलमल का सुनहरा कुर्ता, महीन धागों से बुनी गई सफेद धोती और पाँव में आशा के विपरीत रिबॉक का स्पोर्ट्स जूता धारण करने वाला व्यक्ति कोई पुराना जमींदार लग रहा था। गले में करीब पाँच तोले सोने की माला और दोनों हाथों की दसों उंगलियों में कीमती पुखराज, नीलम आदि पत्थर जड़ित सोने की अँगूठी फब रही थी।


अनुभवी चपरासी की भविष्यवाणी सटीक थी। मालदार आसामी इस बार जाल में फंसने वाला था।
” ठहरिए ! आपको किनसे मिलना है और आपका क्या काम है ? ” चपरासी ने अपना एक्ट प्ले शुरू किया।
यह सुनकर जमींदार की शक्ल ओ’ सूरत वाला वह आदमी रुका और उसने चपरासी को घूरा। फिर एक भारी आवाज़ गूँजी – ” ज़मीन का मामला है … साहब से सीधे मिलना है ।” चपरासी पहले तो सहमा फिर उसे अपना एक्ट प्ले याद आ गया।
” नहीं, आप सीधे नहीं मिल सकते हैं … पहले छोटा बाबू से मिल लीजिए। ” – चपरासी ने किसी तरह आवाज़ रूखी करते हुए कहा।


” ठीक है। ” फिर भारी आवाज़ गूँजी।
“उधर ऑफिस है, छोटा बाबू से मिल लीजिए।” – चपरासी ने उंगली से इशारा करते हुए ऑफिस दिखाया।
अंदर दाख़िल होते ही उस व्यक्ति ने छोटा बाबू के टेबल पर आवेदन के साथ ज़मीन के सारे कागज़ात रख दिए और कहा – ” पूरी ज़मीन मेरे नाम पर करनी होगी … कागज़ में कुछ कमी है तो, वो कमी भी पूरी करनी होगी … पर, पूरी ज़मीन का मालिकाना हक मेरे नाम पर होना चाहिए। “


छोटा बाबू ने कागज़ उलटा-पुलटा कर देखा और माथे पर हाथ रखते हुए कहा – ” पॉवर ऑफ एटर्नी से ज़मीन की बिक्री हो जाने के बाद आपने पॉवर तुड़वाकर ज़मीन खरीदी है … मामला पेचीदा है। “
” आप बड़ा बाबू से मिल लीजिए ” – छोटा बाबू ने केबिन की तरफ इशारा कर दिया।
अपनी फाइल उठाकर वह व्यक्ति बड़ा बाबू की केबिन में दाखिल हुआ। टेबल पर अपनी फाइल रखी और वही बातें दोहराते हुए कहा – ” काम की कीमत बोलिए .. मुँहमाँगी दे सकते हैं। “


यह सुनकर बड़ा बाबू की जैसे बाँछें खिल गईं। उसने बिना कुछ कहे फाइल उठाई और उस रसूखदार आदमी को वहीं बैठने का इशारा करके साहब के चैम्बर में घुसा। साहब भी इंतज़ार में बेसब्र हुए जा रहे थे। बड़ा बाबू द्वारा लाई गई फाइल के कागज़ात उलट-पुलट कर देखे और मौखिक टिप्पणी की – ” यह तो डबल गेम का मामला है, बड़ा बाबू ! “
” जी, सर ! लेकिन ख़रीदगी के कागज़ात तो है ! – बड़ा बाबू ने पासा फेंका।
एक महीने से सुखाड़ भोग रहे साहब ने बड़ा बाबू को सिगनल दिया – ” ठीक है, बैक डेट में आप फाइल बढ़ाइए। “


बड़ा बाबू ने इशारा समझ लिया। पर, मोटा माल मिलने की खुशी में भूल गए कि फिफ्टी परसेंट पेशगी या एडवांस लेना है। बड़ा बाबू ने फाइल बढ़ा दी तो होली में अपनी पत्नी से मिलन के लिए घर जाने का सपना देख रहे साहब भी पुरानी घटना भूलकर हड़बड़ी में फाइल व स्वामित्व के पेपर पर दस्तखत कर दिए।


बड़ा बाबू ने यह हस्ताक्षरित पेपर उस रसूखदार सज्जन को पकड़ाकर मुँहमांगी कीमत की डिमांड रखी – ” चलिए हुजूर ! अब हमारी कीमत दीजिए। “
पहले तो वह रसूखदार और जमींदार जैसी शक्ल ओ’ सूरत वाला व्यक्ति मुस्कुराया और अपने रेशमी कुर्ते की जेब में हाथ डाला। चपरासी और छोटा बाबू के साथ-साथ साहब भी अपने चैम्बर का पर्दा चुपके से उठाकर उचक-उचक कर देख रहे थे कि कितना माल जेब से निकल रहा है।


अपने कुर्ते की दाहिनी जेब से उस शख्स ने अपना हाथ निकाला तो, हाथ में एक कागज था। उसने वह कागज़ बड़ा बाबू के टेबल पर फैला दिया।
सदर अस्पताल से जारी उस कागज़ पर मोटे-मोटे काले अक्षरों में लिखा था – ” कोविड 19 पॉजिटिव … सुपर एक्टिव केस “
यह कागज देखकर बड़ा बाबू वहीं बेहोश होकर गिर पड़े। छोटा बाबू को मूर्छा आ गई। चपरासी चित्त हो गया और साहब की आँखों के आगे अँधेरा छा गया। दूसरे दिन सदर अस्पताल में टेस्ट के बाद ये सभी ‘कोविड पॉजिटिव’ घोषित हुए और इन चारों को ‘एकांतवास’ पर जाना पड़ा।

सम्प्रति :
एसोसिएट प्रोफेसर व
विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग
मारवाड़ी कॉलेज, किशनगंज (बिहार)।

सबसे ज्यादा पड़ गई