बिहार :ऐतिहासिक बेनूगढ़ में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने हाथो से किया था वृक्षारोपण ,रख रखाव के अभाव में पौधे रहे है सूख

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किशनगंज /विजय कुमार साह

टेढागाछ प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत डाकपोखर पंचायत स्थित बेणुगढ ऐतिहासिक स्थल के प्रांगण में जल जीवन हरियाली योजना व मनरेगा के तरफ से वर्ष 2019-2020 तक पौधा रोपण का कार्य किया गया था। पर्यावरण का उचित संरक्षण के तहत पुरे प्रदेश में अभियान चलाकर प्रदेश के मुखिया नितीश कुमार के नेतृत्व में जल जीवन हरियाली योजना के अन्तर्गत पेड़-पौधों व तलाबों,नलकूपों, झीलों, का सौंदर्यीकरण किया गया हैं। लेकिन जहाँ मुख्यमंत्री नितीश कुमार आकर अपने हाथों से पौधा रोपण किया हो उस स्थल पर उचित देख-रेख के अभाव में पौधे सूख रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी के मंडल अध्यक्ष रवि कुमार दास, उपाध्यक्ष बसंत सिन्हा,मनु रंजन दास,सोमनाथ दास,संतोष यादव, राजीव मंडल,इन्द्र पासवान, रवि हरिजन, दयाल हासदा आदि ग्रामीणों ने बताया कि सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना के तहत पेड़ लगाए गए, पर समय से सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण तथा कम्पोस्ट आदि का प्रयोग मनरेगा कर्मियों के द्वारा नहीं किया गया है। जिसके कारण कीमती औषधीय पौधे सूख गए।फूल-पत्तियों सहित बगीचे उजड़ गए। जो पौधे बचें हैं उन पौधों का समुचित विकास नहीं हो रहा है।

सभी जीवों के लिए पृथ्वी पर जीवित रहने के लिए वायु के बाद पानी दूसरा सबसे जरूरी पदार्थ है। यहाँ पेड़-पौधे, जीव-जंतु, पशु-पंछी को जीने के लिए जल की आवश्यकता होती है, पर आज गढ़ स्थित इन पौधों को जल ही नसीब नहीं हुआ। आज सैकड़ों पौधे सिंचाई व उचित देखभाल के अभाव में सुख रहे है।

किशनगंज जिला मुख्यालय से 37 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम से पांच किलोमीटर की दूरी मे डाकपोखर पंचायत में स्थित बेणुगढ गांव का अपना पौराणिक इतिहास रहा है, जो वर्तमान मे भी अपने स्वरूप को बनाए हुए है। किदवंती कथा के अनुसार पाण्डव अज्ञातवास के दौरान बाबा बेणु महराज की इसी गढ मे रूके थे। पोखर व टीले का अन्य अवशेष अभी भी मौजूद है। कहा जाता है कि टीले मे दो पोखर थे, जिस पोखर मे पाण्डव गुप्तवास के दौरान भोजन ग्रहण किया करते थे उस तालाब के पानी के स्तर में कभी कमी नहीं होती है। इसी तालाब को लेकर यह भी किदवंती कथा है कि जब किसी का शादी-विवाह होता था तो तालाब को सबसे पहले निमंत्रण देकर बर्तन माँगा जाता था।जिसके उपरांत अगले दिन बर्तन दे दिया जाता था।इतिहासकारों का कहना है कि महाभारत काल में यह बेणु महाराज की राजधानी थी।राजा बेणु पांच भाईयों से थे जिसमें राजा बेणु महाराज के द्वारा बेणुगढ, राजा बड़ीजान दूरा बड़ीजान गढ़ एवं राजा असुर द्वारा असुरागढ की स्थापना की गई एवं इनका निर्माण एक हीं रात में किया गया था।इस तीनों गढ़ों का अवशेष आज भी विद्यमान है। लेकिन दो अन्य भाईयों नन्हा व कन्हा द्वारा जो गढ़ बनाए गए उनका अवशेष नहीं मिलता है।

प्रत्येक वर्ष वैशाखी के अवसर पर राजा बेणु के मंदिर में एवं गढ़ के प्रागंण में मेला लगता है जहाँ दोनों संप्रदाय के लोग हिन्दू व मुस्लिम भारी संख्या में शरीक होकर अपनी मनचाही मुराद पुरी होने की मन्नतें माँगते हैं।परंपरा के अनुसार दिन के बारह बजे तक मुस्लिम संप्रदाय के श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में अपनी मन्नतें लेकर दर्शन को आते हैं।उसके बाद हिन्दू समुदाय के श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं।बेणुगढ का एतिहासिक वैशाखी का मेला हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है। पर आज यह ऐतिहासिक स्थल विराण पड़ा।बीच में जब इस स्थल का सौन्दर्यीकरण हुआ तो लोगों में यह आशा जगी थी की इस एतिहासिक स्थल का विकास किया जाएगा ।लोगों की यह आशा अब निराशा में बदल रही है।

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