किशनगंज/गलगालिया /चंदन मंडल
दुर्गा माता की पूजा आराधना और नौ दिवसीय का उपासना शारदीय नवरात्रि पर्व शनिवार 17 अक्टूबर को शुरु होने जा रहा है। नवरात्र को लेकर ठाकुरगंज , सीमावर्ती क्षेत्र गलगलिया व सटे बंगाल के इलाकों में तैयारियां जोरों पर रहती है।
पूजा पंडाल विशाल बनने लगते हैं, पंडालों को अधिक से अधिक आकर्षक बनाने के लिए उन्हें देश दुनिया के चर्चित मंदिरों व ऐतिहासिक स्मारकों की तरह भव्य बनाया जाता है । और हर वर्ष गांव से लेकर शहर तक धूमधाम से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है, लेकिन इस वर्ष कोरोना की नजर पहले के त्योहारों की तरह ही दुर्गा पूजा के आयोजन पर भी लग गई है। इसको देखते हुए राज्य की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूजा के आयोजन के लिए आवश्यक गाइड लाइन जारी कर दी है।
इससे इतना तो तय है कि पूजा का आयोजन तो होगा, लेकिन रौनक काफी फीकी रहेगी। जबकि शहर में महीनों पहले ही पूजा की तैयारी शुरू हो जाती है। लोगों में उत्साह और उमंग का वातावरण चारों ओर दिखने लगता है । रथ उत्सव के बाद पूजा की तैयारियां शुरू हो जाती है। परंतु इस वर्ष ऐसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा है। पूजा को लेकर किसी प्रकार की रौनक नहीं दिख रही है।
हांलाकि पहले पूजा आयोजन को लेकर पूजा समितियों जिस असमंजस की स्थिति में थी,वह अब नहीं है। बिहार सरकार ने पूजा के आयोजन को लेकर सरकारी गाइड लाइन जारी कर दी है। जिससे अब पूजा का भावना बनने लगा है। लेकिन गाइडलाइंस के अनुसार पूजा पंडालों में नहीं होंगे सांस्कृतिक कार्यक्रम , मास्क पहना अनिवार्य होगा , पंडालों का सैनिटाइज व शोसल डिस्टेंस का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।
इससे यह तय हो गया है कि पूजा तो अवश्य होगी लेकिन हर वर्ष की तरह किसी विशेष प्रकार का आयोजन नहीं किया जाएगा, न ही किसी थीम को आधार बनाकर पूजा पंडाल बनाया जाएगा । बंगाल में नारी-पूजा की परंपरा प्राचीन समय से प्रचलित है । यहां तक की बंगाल में प्राचीन समय से ही मां दुर्गा का मायका माना जाता है।
मान्यता है कि मां दुर्गा के मायके के आने के साथ ही नवरात्र व्रत शुरु हो जाते हैं। 10 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार के दौरान वहां का पूरा माहौल शक्ति की देवी दुर्गा के रंग का हो जाता है। बंगाली हिंदुओं के लिए दुर्गा और काली की आराधना से बड़ा कोई उत्सव नहीं है। वे देश-विदेश जहां कहीं भी रहें, इस पर्व को खास बनाने में वे कोई कसर नहीं छोड़ते। लेकिन कोरोना के कारण इस बार बंगाल में भी रौनक फीकी पड़ गई है। बंगाल में भी किसी थीम को आधार बनाकर पूजा पंडाल नहीं बनाया जा रहा है।





























