मधुबाला मौर्या
तेरे बचपन की खिलखिलाती हँसीं देखती हूं
निःशब्द उसमें विचरण करती हूं,
तेरी बचकानी हरकतों में
अपना बचपन देखती हूं ।
तेरी जिद्द, अहंकार देखती हूं
न भुल पाने वाला व्यक्तित्व देखती हूं,
हर दूसरे को डांटने का खोजना बहाना
खाना छोड़ के रूठ जाना
कुण्डी लगा के हर बात मनवा लेना,
तेरे बचकानी हरकतों में अपना बचपन देखती हूं ।
एक दिन मैं भी वृद्ध हो जाउंगी
तब शायद स्मरण -विस्मरण भी कर न पाऊँगी,
तब मैं भी अपने माँ के जैसे
आस लगाए बैठूँगी
बिटिया मेरी आएगी
झुर्रियाँ पड़ी इन हँडिया पर
अपने कोमल हाथों से,
धीरे से सहलाएगी
माँ -माँ करके मुझको
सीने से लिपट जाएगी,
कहे कवयित्री मधुबाला
छोड़ गयी जो तन्हा माँ को
वृद्ध अबला को अंत समय में
कंठ प्यासे ही रह जाएंगे
प्राण पखेरू उड़ जायेंगे
बस दो बूँद पानी को II
Post Views: 234