- रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करते हैं टीके
- जानलेवा एवं संक्रमक बीमारियों से बचाव के लगाये जाते हैं टीके
किशनगंज :जिले के शहरी क्षेत्र में नवपदस्थापित एएनएम को नियमित टीकाकरण के समय प्रतिवेदनों को संधारित करने संबंधी जानकारी देने के लिये सोमवार को सदर अस्पताल सभागार में टीकाकरण संबंधी दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की गयी। इस प्रशिक्षण में नवपदस्थापित एएनएम को नियमित टीकाकरण के दौरान बच्चों को विभिन्न प्रकार की जानलेवा बीमारियों से बचाव के लिए दिये जाने वाले टीकों के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया। साथ ही इन टीकों को दिये जाने की विधि भी बतायी गई। जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डा. देवेन्द्र कुमार के द्वारा नवपदस्थापित एएनएम को दिये जा रहे इस प्रशिक्षण के दौरान कार्य क्षेत्र में टीकाकरण के समय होने वाली कठिनाइयों से अवगत कराने के लिए स्वास्थ्य विभाग के सहयोगी संस्था यूनिसेफ के एसएमसी एजाज अहमद , जिला अनुश्रवन सह मूल्याङ्कन पदाधिकारी शशि भूषण , कार्य क्षेत्र में टीकों को सुरक्षित रखने संबंधी जानकारी देने के लिए यूएनडीपी के वैक्सीन कोल्ड चेन प्रबंधक, जिला कार्यक्रम प्रबंधक डॉ मुनाजिम , अस्पताल उपाधीक्षक डॉ अनवर आलम, केयर इंडिया के डीटीएल प्रशंजित प्रामाणिक, सीफार के जिला समन्वयक सहित अन्य मौजूद थे।
रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करते हैं टीके-
टीकाकरण के संबंध में जानकारी देते हुए सिविल सर्जन डॉ कौशल किशोर ने बताया टीकाकरण वह प्रक्रिया है जिसमें रोग विशेष की रोकथाम के लिए विकसित टीका देने के बाद संबंधित बीमारी से बचने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। टीकाकारण आम तौर पर खतरनाक बीमारियों के नियंत्रण और उन्मूलन करने के लिए किया जाता है। एक अनुमान के तौर पर देखें तो पायेंगे कि नियमित टीकाकरण के माध्यम से सरकार एक बड़ी संख्या में मौतों को रोकने में कामयाब रही है। यह सबसे अधिक किफायती एवं सरल स्वास्थ्य निवेशों में से एक है।
बच्चों के लिए ये वैक्सीन लगवाना आवश्यक है :
जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ देवेन्द्र कुमार ने बताया कि निम्नलिखित वैक्सीन लगवाना आवश्यक है
बी.सी.जी वैक्सीन: टीबी से फेफड़ों, दिमाग और शरीर के अंग प्रभावित होते हैं। यह रोग पीड़ित व्यक्ति के खांसने या छींकने से फैलती है। बीसीजी टीका के जरिये बच्चे को टीबी की बीमारी से बचाया जा सकता है। बच्चों के जन्म लेने के तुरंत बाद उन्हें बैसिले कैल्मेट गुरिन (बीसीजी) के टीके लगाये जाते हैं। यह बच्चों के भविष्य में क्षयरोग, टीबी मेनिनजाइटिस आदि रोगों के संक्रमण की संभावना को कम करता है।
हेपेटाइटिस ए: हेपेटाइटिस ए विषाणु जनित रोग है, जो लिवर को प्रभावित करता है। दूषित भोजन, पानी या संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने की वजह से यह रोग फैलता है। बच्चों में यह रोग ज्यादा होता है। बुखार, उल्टी और जांडिस जैसे रोगों से बच्चा प्रभावित होता है। हेपीटाइटिस ए वैक्सीन का पहला टीका बच्चों को जन्म के 1 साल बाद लगाया जाता और दूसरा टीका पहली डोज के 6 महीने बाद लगाया जाता है।
हेपेटाइटिस बी: हेपेटाइटिस बी रोग से बच्चों के लिवर में जलन और सूजन हो जाती है। नवजात शिशुओं को जन्म के बाद पहली डोज, 4 हफ्ते बाद दूसरी डोज और 8 हफ्ते के बाद हेपेटाइटिस बी की तीसरी डोज दी जाती है।
डीटीपी: बच्चों को डिप्थीरिया, टेटनस, काली खांसी जैसी गंभीर बीमारियों की रोकथाम के लिए डीटीपी का टीकाकरण किया जाता है। बच्चों को जन्म के 6 हफ्ते बाद डीटीपी का पहला टीका लगाया जाता है। 4 हफ्ते बाद दूसरा, बाद में 4 हफ्ते के अंतराल पर तीसरा और चौथा टीका 18 महीने और पांचवा टीका 4 साल के बाद लगवाया जाता है।
रोटा वायरस वैक्सीन: रोटा वायरस तीन माह से लेकर दो साल की उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है। इस वायरस से संक्रमित बच्चों को बुखार, पेट में दर्द के साथ उल्टी और पतले दस्त होते हैं।
टायफॉइड वैक्सीन: टायफाइड दूषित भोजन, पानी और पेय पदार्थ के सेवन से होता है। बच्चों में होने वाली डायरिया बीमारी दूषित भोजन व पानी के कारण ही होता है। नवजात के लिए मां द्वारा नियमित स्तनपान बच्चों को डायरिया से बचाता है। बच्चों को वैक्सीन का पहला टीका जन्म के 9 महीने बाद और दूसरा टीका इसके 15 महीने बाद लगता है।