कोरोना संकट और
कितना गम्भीर हमारा समाज ?

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सुशील दुबे

बढ़ रहे कोरोना संक्रमितों की संख्या और उसी के साथ बदल रहे कोरोना के नए जेनेटिक म्युटेशन ने समूचे विश्व के सामने अबतक की सबसे विकट परिस्थिति रख दी है।

जहाँ विश्व भर के वैज्ञानिक तमाम कोशिशों के ज़रिए इसके समुचित इलाज जिसमे दवाई तथा वैक्सीन शामिल है उन्हें सार्थक करने के लिए दिन रात एक कर मानवता के सबसे बड़े संकट को रोकने में लगे हुए है, वही देखा जाए तो तमाम देश भी इस संकट के समय जिसकी जिस हद तक सहायता हो सके ,प्रदान कर रहे है।

अपने देश मे विगत एक मास में जितनी वीभत्सता इस बीमारी ने फैलाई है, इसके परिणामस्वरूप डर ,अफवाह एवम कालाबाज़ारी का जो दौर शुरू हुआ है वह फिलहाल थमने का नाम नही ले रहा है।

लोग मायूस है, हतास है क्योंकि इस संकट ने एक नई समस्या उजागर कर दी है।और वह है तरल ऑक्सिजन की,जिसका उपयोग मेडिकल क्षेत्र में बीमार लोगो के किया जाता है।

इस कोरोना संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभाव शरीर में ऑक्सिजन की मात्रा पर पड़ती है।

फेफड़ों के संक्रमण उत्तकों के ऑक्सिजन प्रसंस्करण की प्राकृतिक क्षमता कम कर देती है जिसके साथ ही शरीर मे ऑक्सिजन की मात्रा गिरती जाती है।निरन्तर कम होते ऑक्सीजन के कारण शरीर कई सारी समस्याओं का अनुभव करने लगता है।

जिसमे कुछ प्रभावी लक्षण है, साँसों की कमी से लगना, चक्कर से महसूस होना के साथ ही मतिभ्रम की स्थिति उत्पन्न होना, इत्यादि।

डॉक्टर्स रोगी के लक्षण एवम रिपोर्ट देख कर ही तय कर पाते है कि कितना ऑक्सिजन प्रतिशत गिरा है और उसकी कमी कैसे की जा सकती है।

खतरनाक स्तर तक गिर चुके ऑक्सीजन की मात्रा को डॉक्टर्स कृत्रिम रूप से तरल ऑक्सीजन देकर करते हैं।

चूंकि बीमार लोगो की संख्या इतनी ज्यादा है कि अभी के उपलब्ध संसाधन कम पड़ गए हैं।

कोरोना संकट में इस कमी की पूर्ति करने के लिए तमाम प्रयास किये जा रहे हैं साथ ही देश के वे तमाम उद्योग जहाँ तरल ऑक्सीजन का उपयोग होता है उन्हें फिलहाल मेडिकल उपयोग के लिए मोड़ दिया गया है।

परंतु इनसब संकटो के बीच एक प्रश्न सबसे ज्यादा स्वयं से पूछना भी चाहिए कि एक विकसित सभ्यता होने के नाते हमने स्वयं के सामाजिक दायित्व का कितना प्रतिशत निर्वहन किया ?

जहाँ आज डॉक्टर्स तथा प्रशाशनिक व्यवस्था के तमाम लोग अपने जान को आगे रख सारी व्यवस्था को सुचारू रूप से रखने का भरसक प्रयास कर रहे हैं, वही हमने अपने स्तर पर सामाजिक जीवन में कितनी प्रतिशत उन नियमो का पालन किया जिन्हें करने से हमारा परिवार, हमारा समाज, हमारा देश सुरक्षित रह सके?

प्रश्न सार्वभौमिक है, आज हम और आप उत्तर नही दे सकते तो आनेवाली पीढ़ी को भी देना भारी पड़ सकता है।

आंकड़ो को देखेंगे तो समझेंगे की अभी के अनिश्चितता भरे समय में सावधानी और उचित उपाय न सिर्फ हमें बल्कि उन तमाम लोगो को भी उम्मीद देंगे जो हमारे आपकी खातिर प्रयासरत हैं।

टीम लेमनचूस की अपने पाठकों से यही विनती है कि —
1.मास्क एवम सैनिटाइजर का उपयोग करते रहें।
2.सामाजिक दूरी का पालन करें।
3.भीड़भाड़ वाले जगहों से जितना बच सकते हो बचें।
4.कोशिश करें कि आप नित्य भाप लें, यह फेफड़ो को सुरक्षित रखने में बहुत सहायक है।
5.सबसे बड़ी बात जितना हो सके प्रसन्न रहें, स्वयं को तनाव न होने दें।

कुछ कारण समझ न आये तो बस इतना ही मान कर करे कि आप जो कर रहे हैं वह देश एवम समाज की खातिर आपका योगदान है।

और आपका यही योगदान हमारे देश को समाज को सुरक्षित रखने में सहयोग करेगा।

आप सब के उत्तम स्वास्थ्य की प्रार्थना के साथ सभी पाठकों को प्रणाम।

सबसे ज्यादा पड़ गई