कविता :समझ जाती हैं हम लड़कियां

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निधि चौधरी

समझ जाती हैं हम लड़कियां
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समझ जाती हैं हम लड़कियां,
हर व्यवहार तुम्हारे।
मन मे पलने वाले,
विचार तुम्हारे।

समझ जाती हैं हम लड़कियां,
यूँ भीड़ में जानबूझ कर,
तुम्हारा हमसे से टकरा जाना।

समझ जाती है हम लड़कियां
कुछ ढूंढती हुई,
उन गन्दी नज़रों को…..
जिन्हें देख सम्हालने लगते है हम,
अपनी चुनरी अपने दुपट्टे को।
और फिर रास्ता बदल कर चल देतें हैं
हम नज़रंदाज़ कर के तुम्हारी गन्दी नज़रों को।

समझ जाती हैं हम लड़कियां,
अजनबी जगह पर,
हमें घूरती हुई उन आंखों को।
जो यह सोच लेते है कि……
अकेली लड़कियां खुली तिजोरी होती है।

हम लड़कियां समझ जाती हैं,
तुम्हारे हर एक कमेंट को,
हमे सड़क पर जाता देख,
तुम तिरछी आंखों से,
हम पर करते हो।

डर जाती हैं हम लड़कियां
अकेले आखरी बस या ट्रेन से
सफ़र करते हुए।

हम लड़कियां सहम जाती हैं
सूरज डूबने के बाद,
और सांझ ढलने से पहले,
दौड़ परते हैं सुरक्षित होने के लिए,
अपने पिता, भाई, पति और बेटे के छावं में……

फिर याद आता है,
यूँ जान बूझकर
टकरा जाने वाले,
वो चील जैसे नज़रों से घूरने वाले,
हम लड़कियों पर गंदे कमेंट करने वाले।
वो भी तो होंगे ,
किसी बहन के भाई….
किसी माँ का बेटा….
या फिर किसी बेटी का पिता….
Nidhi Choudhary

कविता :समझ जाती हैं हम लड़कियां