सुपौल।सोनू कुमार भगत
प्रकृति की उपासना और सूर्योपासना का महापर्व चैती छठ सोमवार को उगते हुये सूर्य को अर्ध्य प्रदान करने के साथ भक्तिमय माहौल में प्रात काल में संपन्न हो गया | इससे पूर्व रविवार की संध्या को आस्थावान श्रद्धालु नर नारियों ने डूबते हुए भगवान भाष्कर को अर्ध्य देकर जीवन मंगल की कामना किया |

भक्तिमय माहौल में संपन्न चार दिवसीय इस अनुष्ठान को लेकर प्रखण्ड क्षेत्र में व्यापक उत्साह व्याप्त था | सदर पंचायत समेत तिलाठी , मोहनपुर, मधुबनी, चुन्नी, डहरिया, गिरिधर पट्टी, सोह्टा, माधोपुर, उधमपुर, भीमपुर, हरिहरपुर, रामपुर, राजेश्वरी पश्चिमी,राजेश्वरी पूर्वी
बलुआ, मधुबनी आदि पंचायतों में आस्थावान श्रधालुओं के द्वारा अपने घर आंगन में वैकल्पिक नदी तालाब और पोखर का निर्माण कर आकर्षक साज सज्जा के साथ छठ व्रत किया गया |
छातापुर मुख्यालय पंचायत में धर्मेंद्र मुखिया, जगदीश भगत, जय कुमार, उपेंद्र कुमार, शंकर ठाकुर, अशोक भगत, शम्भू प्रसाद भगत समेत अन्य लोंगो के यहाँ भी छत और दरवाजे पर पोखर निर्माण कर आकर्षक साज सज्जा के साथ सूर्योपासना का पर्व मनाया गया | छठ व्रती समेत उनके परिजन छठी मैया की आराधना कर सुख समृद्धि की कामना की। मौके पर विभिन्न पूजा स्थलों पर छठी मैया के गीत गूंज रहे थे। इस अवसर पर बाबी मुखिया, हिमांशु कुमार, रवि रौशन, पूजा, स्नेहा , निशी देवी आदि समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालु नर नारी थी|
प्रकृति की आराधना है छठ महापर्व…
प्रकृति की आराधना तथा धरती की उपासना का इस पर्व का खास महत्व है। पर्व को लेकर जहां व्रती उत्साह और श्रद्धा के साथ छठ पर्व मनाने में जुटी हुई है। वही व्रती के परिजनों में भी खासा उत्साह चैती छठ महापर्व को लेकर देखी जा रही है। व्रतियों का कहना है कि छठ पर्व की महिमा अपरंपार है । अमीर गरीब सभी छठ व्रत करते है । छठ व्रत भीख मांगकर भी किया जाता है । शुक्रवार से नहाए खाय के साथ शुरू हुई इस पर्व को लेकर माहौल भक्तिमय बना हुआ है। इस बाबत पुजारी श्याम नारायण गिरी ने बताया की छठ पर्व की महिमा से जुडी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है । कहा जाता है कि माता सीता ने भी की थी सूर्यदेव की पूजा: एक मान्यता के अनुसार, जब राम-सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। इससे सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
कब से हुई थी लोक आस्था का महापर्व छठ की शुरुआत
महाभारत काल से हुई थी छठ पर्व की शुरुआत:-हिंदू मान्यता के मुताबिक, कथा प्रचलित है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था। कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।