470 सालो से अधिक चले विवाद में कब क्या मोड आया ,पूरे घटना क्रम पर विस्तृत जानकारी
राजेश दुबे
करोड़ों देश वाशियो को जिस समय का बेसब्री से इंतजार था वो समय अब निकट आ चुका है ।अयोध्या में भगवान श्री राम का भव्य मंदिर बने इसके लिए सैकड़ों सालों से लड़ाई लड़ी गई और उसका परिणाम निकला और अब जल्द ही मंदिर निर्माण हेतु कार्य प्रारंभ होगा । नई पीढ़ी उस संघर्ष गाथा से परिचित नहीं है कि कितने कष्ट पूर्वजों के द्वारा सहे गए तब जा कर 5 अगस्त 2020 को यह शुभ दिन आने वाला है जब आधार शिला रखी जाएगी ।
करोड़ों हिन्दुओं के आस्था का प्रतीक भगवान श्री राम का भव्य मंदिर उनके जन्मस्थान पर बने, उसके लिए हिन्दुओं ने कभी अपना दावा कमजोर नहीं होने दिया । सन 1528 में बाबर की अनुमति से मीर बाकी ने मंदिर को तोड़ कर बाबरी मस्जिद बनवाई । लेकिन अयोध्या में रहने वाले हिन्दुओं ने कभी हार नहीं माना तब से ही उन्होंने अपना विरोध जारी रखा । इतिहास कारो के अनुसार सन् 1534 में अयोध्या में पहला दंगा हुआ और कई गुम्बजो को तोड़ दिया गया , उसके बाद मुस्लिम समाज ने यहाँ नमाज अता करनी बंद कर दी .बाबर के बाद औरंगजेब का इस इलाके में मृत्यु पर्यन्त कब्ज़ा बरक़रार रहा ।
विवाद कम नहीं हुआ था ।
1530 से 1556 ईसवी तक हुमायु के शासन काल में दस बार युद्ध यहाँ हुए ,एक महिला रानी जय राज कुमारी तथा स्वामी महेस्वरानंद ने बार बार दुश्मनों से लोहा लिया और हुमायूं के सैनिकों को सबक सिखाया ।
इस लड़ाई में अंतत पहले स्वामी महेस्वरानंद और बाद में रानी साहिबा शहीद हो गई ? क्या इतिहास इनकी सहादत को कभी भुला सकता है ?
1734 इसवी में मुह्हमद सहादत साह गद्दी पर बैठा तब बुरहान उन मुल्क सादत अली खान अवध का गवर्नर बना उसके शासन काल में पुनः हिन्दुओ ने राम जन्म भूमि पर अपना दावा किया । इतिहास कारो के अनुसार यही सबसे पहला मुकदमा ज्ञात हुआ है ।
वहीं 1763 से 1836 तक 5 बार अमेठी के राजा गुरु दत्त सिंह और पिपरा के राजा राज कुमार सिंह के नेतृत्व में मुग़ल सल्तनत को चुनौती दी गई ।तब जा कर मुगलिया सल्तनत ने हार मानते हुए यहाँ पूजा और नमाज दोनों की मंजूरी प्रदान की ,यहाँ पूजा आरम्भ तो करवा दिया गया ।लेकिन
हिन्दुओं की मांग यही रही की मस्जिद को पूरी तरह हटाया जाय और ऐसा उन्होंने किया भी इस दौरान चार बार युद्ध हुए जो की बाबा उद्धव दास और भाटी नरेश के नेतृत्व में लड़े गए ,हार मान कर नबाब वाजिद अली साह द्वारा तीन सदस्यीय कमिटी का गठन किया गया ।
जिसमे एक मुश्लिम और एक हिन्दू और तीसरा ईस्ट इंडिया कंपनी का मुलाजिम थे । जिसमे यह बात सामने आई की मीर बाकी ने मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बनवाई । लेकिन दुर्भाग्य से 1856 में अंग्रेजो का अवध पर कब्ज़ा हो गया और अंग्रेजो ने पुनः दोनों समुदाय को यहाँ पूजा और नमाज की अनुमति दे दी ।
1857 ईसवी जहा स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए भी महत्वपूर्ण तारीख थी और स्वतंत्रता हेतु आवाज बुलंद हो चुकी थी ,वही राम जन्म भूमि भी ऐतिहासिक स्थान रखता है । क्योकि इसी साल बहादुर साह जफ़र और आमिर अली द्वारा राम जन्म भूमि स्थल हिन्दुओं को देने का निर्णय लिया गया और हिन्दुओ ने एक कदम आगे बढ़ते हुए बहादुर साह जफ़र को भारत का सम्राट घोषित कर दिया ।
बहादुर शाह जफर की असमय मृत्यु के बाद अंग्रेज पूरी तरह हिंदुस्तान पर कब्जा कर चुके थे ।इस दौरान देश को जहा स्वतंत्र करवाने के लिए आंदोलन हो रहा था वहीं मंदिर निर्माण हेतु भी साधु संत शांत नहीं बैठे थे ।इन वर्षों में भी समय समय पर साधु संत आंदोलनरत रहे ।
आजादी के बाद 1949 में साधु संतो एवं अयोध्या वासियों ने तथाकथित विवादित स्थल पर मूर्ति स्थापित की । जिसके बाद सरकार ने मंदिर में ताला लगवा लिया । अब 1950 में हिन्दू पक्षकारों ने अदालत की शरण ली और पूजा का अधिकार मांगा ।
जानकारी के अनुसार गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में अपील दायर कर भगवान राम के पूजा कि इजाजत मांगी । महंत रामचंद्र दास ने मस्जिद में हिंदुओं द्वारा पूजा जारी रखने के लिए याचिका लगाई ।इसी दौरान मस्जिद को ‘ढांचा’ के रूप में संबोधित किया गया ।वहीं 1959 में निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वफ्फ बोर्ड ने एक और मुकदमा दायर कर मालिकाना हक मांगा ।
वर्षों बीत जाने के बावजूद भी न्यायालय द्वारा मामले का हल नहीं होने के बाद विश्व हिन्दू परिषद और साधु संतो की अगुआई में 1984 में श्री राम जन्म भूमि मुक्ति समिति का गठन किया गया और देश भर में मंदिर निर्माण हेतु आंदोलन समिति द्वारा चलाया गया ।
जिसकी जानकारी वर्तमान पीढ़ी को है । इसमें सफलता भी मिली फरबरी 1986 में तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट द्वारा मंदिर का ताला खोलने का आदेश दिया गया ।मालूम हो कि उस वक्त केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी और जून 1989 में वीएचपी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण हेतु शिलान्यास किया और मंदिर निर्माण हेतु पूरे देश से ईट एकत्रित किए गए ।
आंदोलन ने गति पकड़ ली थी और भाजपा के वरिष्ट नेता श्री लाल कृष्ण आडवाणी रथ यात्रा निकाल कर पूरे देश में लोगो को कार सेवा हेतु एकजुट कर रहे थे ।फिर आया वो दिन जब 6 दिसंबर 1992 में कोठारी भाईयो ने अपना बलिदान देते हुए बाबरी मस्जिद पर भगवा झंडा लहराया ।
1992 के बाद हिन्दुओं ने समय समय पर आंदोलनों के जरिए मंदिर निर्माण हेतु सरकार से मांग किया । लेकिन केंद्र की कांग्रेस सरकार ने हमेशा इस मामले के जरिए अपनी राजनैतिक रोटी सेकने का कार्य किया, यहां तक कि कांग्रेस नेताओं ने भगवान श्री राम के अस्तित्व को ही नकार दिया ।
2014 में जब केंद्र में पीएम नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभाला उसके बाद हिन्दुओं में आस जगी की अब मंदिर का निर्माण होगा ।प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के पहले कार्यकाल में तो यह संभव नहीं हो सका ।लेकिन दूसरे कार्यकाल में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया श्री रंजन गोगोई ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मंदिर निर्माण के मार्ग को प्रशस्त किया और करोड़ों हिन्दुओं की आस्था से जुड़े इस मामले पर फैसला सुनाते हुए मंदिर निर्माण हेतु ट्रस्ट का गठन कर निर्माण की अनुमति दी गई ।
जिसके बाद अब 5 अगस्त 2020 को प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी मंदिर निर्माण हेतु शिलान्यास करेंगे । 470 सालो से अभी अधिक दिन तक चले इस मामले का 5 अगस्त वो ऐतिहासिक क्षण होगा जब अयोध्या में मंदिर निर्माण हेतु आधारशिला रखी जाएगी ।
नोट :अलग अलग इतिहास करो एवं इलाहााद उच्य न्यायालय में चले मुकदमे के दौरान पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर यह लिखा गया है ।






























