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शायरी : मशहूर शायरो की चुनिंदा शायरी पढ़े

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तिरी आरज़ू से भी क्यूँ नहीं ग़म-ए-ज़िंदगी में कोई कमी

ये सवाल वो है कि जिस का अब कोई इक जवाब नहीं रहा :सहर अंसारी

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कितने मुफ़लिस हो गए कितने तवंगर हो गए

ख़ाक में जब मिल गए दोनों बराबर हो गए :~शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ 

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ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना

ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते :~अख़्तर शीरानी

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कैसे थे लोग जिन की ज़बानों में नूर था

अब तो तमाम झूट है सच्चाइयों में भी :~जमील मलिक 

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पेड़ के नीचे ज़रा सी छाँव जो उस को मिली

सो गया मज़दूर तन पर बोरिया ओढ़े हुए :,~शारिब मौरान्वी 

साभार : रेखता

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