कोरोना की वजह से इस साल भी नहीं लगेगा किचकवध मेला ,जानिए नेपाल में लगने वाले इस मेले का भारत से क्या है संबंध

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खोरीबाड़ी /चंदन मंडल

महाभारत की कथा से जुड़ा ऐतिहासिक किचकवध धार्मिक मेला का आयोजन इस वर्ष नहीं किया होगा। ऐतिहासिक, धार्मिक तथा पर्यटक स्थल संरक्षण समिति ने कोरोना वायरस (कोविड -19) की महामारी के कारण इस वर्ष किचकवध मेले का आयोजन नहीं करने का निर्णय लिया है। हर वर्ष माघ शुक्ल पूर्णिमा के दिन किचकवध मेला का आयोजन किया जाता है ।लेकिन दो वर्षों से कोरोना की नजर किचकवध मेला पर लगी हुई है ।

बताते चलें कि भारत – नेपाल सीमा से सटे खोरीबाड़ी प्रखंड के डांगुजोत से करीब पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित नेपाल के झापा जिला के कियाबाड़ी (पृथ्वीनगर) गांव में स्थित महाभारत कालीन कीचक वध में पिछले सैकड़ों वर्षो से माघ माह के पूर्णिमा के दिन मेला का आयोजन हो रहा है । हालांकि इस वर्ष कोरोना काल को देखते हुए श्रधालुओ को सिर्फ पूजा अर्चना करने की अनुमति है । इस संबंध में कीचक वध धाम के पुरोहित ढुन्गाना ने बताया महाभारत काल में एक वर्ष अज्ञातवास के दौरान मत्स्य देश के सेनापति कीचक का वध महाराज पांडव पुत्र भीम ने किया था।

यहीं पांडव पुत्र भीम ने महारानी सुदेशना के भाई सेनापति कीचक को काफी लंबी लड़ाई के बाद मार गिराया था। इस खुशी में प्रत्येक वर्ष माघ माह के पूर्णिमा के दिन कीचक वध मेला लगता है जिसमें भारत व नेपाल के लोग मिलजुलकर हिन्दू रीति रिवाज से मनाते हैं। काफी संख्या में श्रधालु पहुंचकर स्थापित मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं । नेपाल की डोन्जो नदी के समीप इस स्थान पर सदियों से कीचक वध का मेला का आयोजन होता आ रहा है। पुरोहित ढुन्गाना ने महाभारत कालीन घटना के संदर्भ में बताया 12 वर्ष के वनवास के बाद पांडवों का एक वर्ष का अज्ञातवास काटना था। वे राजा विराट के दरबार में नाम व वेश बदलकर नौकर का कार्य करने लगे। इसी दरम्यान राजा विराट की पत्‍‌नी महारानी सुदेशना का भाई कीचक ने द्रोपदी से दु‌र्व्यवहार किया जिस पर द्रोपदी द्वारा इसका विरोध किया गया।

इन सारी बातों को द्रोपदी ने अपने पति भीम को दी। जो महल में रसोईयां के रूप में वेश बदलकर कार्य करते थे। इस मामले को लेकर भीम व कीचक के बीच मल्ल – युद्ध हुआ, जिसमें लम्बी लड़ाई के बाद भीम ने कीचक को मार डाला। उक्त स्थान के संदर्भ में बुजुर्गो का कहना है की चार-पांच दशक पहले कीयाबाड़ी मेला स्थल घने जंगल में तब्दील था। साधु-संतों, ऋषि-मुनियों का जंगल में आना – जाना लगा रहता था। बसंत पंचमी -सरस्वती पूजा के दिन से माघ माह के पूर्णिमा तक 10 दिनों तक यहां महाभारत कथा का आयोजन होता है। कीचक वध धाम कमिटी के अध्यक्ष दिल बहादुर थेवे ने बताया कि प्रत्येक वर्ष मेले के दिन माघी पूर्णिमा में बिहार, बंगाल, असम तथा सिक्किम के श्रद्धालु यहां माथा टेकने पहुंचते हैं। जिससे यहां लाखों की भीड़ उमड़ती है। हालांकि इस वर्ष कोरोना काल को देखते हुए श्रधालुओ को सिर्फ पूजा अर्चना करने अनुमति है ।

श्रधालु यहां मन्नतें भी मांगते हैं और मन्नतें पूरा होने पर फल, फूल, बतासा, कबूतर, बकरा आदि का चढ़ावा देते हैं। वहीं मेला परिसर क्षेत्र में स्थित पातालगंगा का भी एक अलग महत्व है । श्री थेवे ने बताया उक्त स्थान में नेपाल पुरातत्व विभाग द्वारा अब तक यहां 7 चरण में उत्खनन हो चुका है, जिसमें तबेला जैसी दिखने वाली 22 मीटर लंबा व 17 मीटर चौड़ा एक मंजिला भवन पाया गया था साथ ही मिट्टी के बर्तन, मिट्टी के ईंट जैसा प्लेट (टायल्स), घोड़ा व हाथी के गले में पहनने वाली कई वस्तु, मिसाइल के आकार के मिट्टी का सामान, पत्थर की थाली, मिट्टी की सुराही, बाण, नाग की मूर्ति एवं लोहे की चाकू इत्यादि पाया गया है।

साथ ही खपरैल के टुकड़े और कुछ हड्डियां भी मिलने की जानकारी मिली है। वहीं खोरीबाड़ी डांगुजोत निवासी अरविंद यादव ने बताया नेपाल स्थित कीचक वध मेला ऐतिहासिक मेला है । मेला में लाखों की भीड़ लगती है जिसमे सर्कस, झूला, वोट आदि लगाया जाता है । कोरोना काल से पूर्व मेला में निजी कंपनी की और से हेलीकॉप्टर की भी व्यवस्था थी जो की निर्धारित रकम लेकर मेला के आस पास के क्षेत्रों में भ्रमण कराया था।

कोरोना की वजह से इस साल भी नहीं लगेगा किचकवध मेला ,जानिए नेपाल में लगने वाले इस मेले का भारत से क्या है संबंध