दर्द उसे भी होता है !

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प्रस्तुति /हर्ष सिंह

सफर शुरू होता है उसका जैसे ही,
कुछ पढ़ने कुछ कमाने बाहर निकल पड़ता है।
          सभी की आँखों का तारा अब
उनकी याद में सुबक सुबक रो पड़ता है।।
            जब भी माँ का फोन हो,
झूठी मुस्कान से बस ठीक हूँ कह देता है।
           हाँ उसे भी दर्द होता है।।

     हाँ हर उत्सव में खुश होता है वो,
             शोक में रो पड़ता है।
वो सख्त होने का दिखावा भी करता है,
मगर याद में किसी के पल पल तड़पता है।
      पल पल में लास्ट सीन और फोटो 
          जूम कर कर निहारता है।।
         वो बेफिक्री से रहने वाला
      अब हर वक़्त फिक्र में रहता है।
         हाँ उसे भी दर्द होता है।।

      और तुम भले ही कुछ भी कहो,
              ख़ुशी में चलो चोरो,
 हर ग़म में तुम्हारे साथ खड़ा मिलता है।
               वैसे तो वो खुद ही
     ख़ामोशी के बवंडर लिए फिरता है।
         पर साँझ को जब लौटे,
     तो एक कंधे की राह तकता है।
        हाँ उसे भी दर्द होता है।।

       घर को घर बनाने ही वो,
        खुद बेघर सा रहता है,
       रौशन हो आंगन अपना,
     तो खुद सूरज सा तपता है।।
     बेपरवाह जो लड़ जाता था,
        अपनी बात मनाने को,
    कर कुर्बान यूं सपने खुद के,
   बस खुद को खोने से डरता है।
      हाँ दर्द उसे भी होता है।।

               वो धीर है गंभीर है,
वो अथक अपने कर्तव्य का पालन भी करता है।
            पग पग पर है संघर्ष उसे,
         वो लड़ता और जीतता भी है।।
             वो इंद्रजीत होकर भी
सुलोचना के आँसुओ से विचलित होता है।
 हाँ वो मर्द है और दर्द उसे भी होता है।।
                                           हर्ष. 






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