फूड प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित कर दी जाए तो अमरूद की खेती किसानों के लिए साबित होगी वरदान
गलगलिया /चंदन मंडल
दुनिया में बहुत फल ऐसे हैं जो 12 महीने फलते हैं. इनमें से ही एक है खाजा प्रजाति के अमरूद. इस प्रकार की अमरूद की खेती कर इनदिनों कई किसान मालामाल हो रहे हैं. देश के विभिन्न हिस्सों के बाद अब सिलीगुड़ी के भी ग्रामीण इलाकों में अमरूद की खेती बड़े पैमान पर शुरू हो गई है. सिलीगुड़ी सब डिवीजन के भारत – नेपाल व बिहार सीमांत के खोरीबाड़ी प्रखंड के रंगमुनी इलाके के किसान अमरूद की खेती जोर-शोर से कर रहे हैं.
खोरीबाड़ी इलाके में दिन पर दिन इस फल की खेती बढ़ती जा रही है.स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार परंपरागत खेती में अब नुकसान होने लगा है. इसलिए खेती के दूसरे विकल्पों की तलाश की जा रही है। इस इलाके में स्ट्रॉबेरी,ड्रेगन फल आदि की भी खेती की जा रही है. अब शुरू हुई है खाजा प्रजाति के अमरूद की खेती. यहां के लोगों का कहना है कि आजकल किसान आम तौर पर पारंपरिक खेती से हटकर अधिक लाभ देने वाले व्यावसायिक कृषि की ओर ध्यान दे रहे हैं। ऐसे में अमरूद की खेती भी एक बेहतर और लाभकारी विकल्प है. अमरूद की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी पर आसानी से की जा सकती है. चिकित्सकों का भी कहना है कि अमरूद स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक फल है इसमें विटामिन सी की भरपूर मात्रा पाई जाती है। विटामिन ए तथा बी भी अमरूद में है. जिसके कारण यह फल डाइबिटीज की बीमारी के साथ ही हृदय रोग, आख और ब्रेन के लिए काफी लाभदायक है.इस बारे में एक किसान शंकु विश्वास ने बताया कि खाजा नामक अमरूद की खेती पूरे साल की जा सकती है.

हर महीने इसका फल होता है. इस प्रकार की अमरूद की खेती के तरीके भी कुछ अलग हैं. फल तोड़ने के बाद किसान प्रत्येक पौधे के हर एक शाखा की मालिश करते हैं। डालियों को नीचे की ओर मोड़ा जाता है. उसके बाद उन्हीं डालियों पर नई शाखाएं उगती है. उसी में फिर नया फल आता है. अमरूद के पौधे को कतार में रोपा जाता है। एक एकड़ में करीब 360 पौधे लगते हैं. पौधे लगने की छह महीने बाद प्रत्येक पौधे से 5 से 10 किलो फल आप तोड़ सकते हैं.पेंड़ पुराना होने पर फल के उत्पादन में और बढ़ोत्तरी होती है. आम तौर पर एक अमरूद के पेंड़ की उम्र 9 से 10 वर्ष तक ही है.उसके बाद या तो पेंड़ सुखने लगता है या फलन में पूरी तरह से गिरावट आ जाती है।
उन्होंने बताया कि इस अमरूद की खेती में जैविक खादों का उपयोग बहुत लाभदायक है. निश्चित रूप से पारंपरिक खेती से यह अधिक लाभप्रद खेती है.अमरूद में लाभ को देखते हुए खोरीबाड़ी प्रखंड के कई किसान अमरूद की खेती करने लगे हैं.ऐसे किसानों को बाजार लेकर थोड़ी परेशानी अवश्य है.उनका कहना है कि यदि बाजार मिले तो मुनाफे की रकम में और बढ़ोत्तरी हो सकती है.अभी अमरूद बेचने के लिए सिलीगुड़ी अथा इस्लामपुर के बाजारों पर निर्भर रहना पड़ता है.
दूसरे स्थानों पर भी अमरूद बेचने की व्यवस्था हो इसके लिए सरकार को आगे आना चाहिए.हांलाकि इसका भी एक विकल्प है. खोरीबाड़ी इलाके में अमरूद जूस (फूड प्रोसेसिंग यूनिट) बनाने की फैक्ट्री लगनी चाहिए. अमरूद की खेती के विशेषज्ञ प्रभात सिंह कहते हैं जिस रफ्तार से अमरूद की खेती दिन पर दिन बढ़ती जा रही है,उससे आने वाले दिनों में बाजार की समस्या और बढ़ेगी.अभी से ही सरकार को इस समस्या पर गौर करना चाहिए.अमरूद जूस तैयार करने का उद्योग स्थापित कर दी जाए तो लोगों को समस्या सामने आएगी ही नहीं. अमरूद की खेती किसानों के लिए एक वरदान की तरह साबित होगा.
