वह धीर है गंभीर है -हर्ष कुमार की कविता

बेहतर न्यूज अनुभव के लिए एप डाउनलोड करें

किस तरह पुरुष कठोर होकर, अपनो से दूर रहता है, अपनों से दूर होकर भी अपनो के लिए सबकुछ करता है, वो मर्द है और दर्द उसे भी होता है

सफर शुरू होता है उसका जैसे ही,कुछ पढ़ने, कमाने बाहर निकल पड़ता है।सभी की आँखों का तारा अब माँ की याद में सुबक सुबक रो पड़ता है।।


जब भी माँ का फोन हो, झूठी मुस्कान से बस ठीक हूँ कह देता है। हाँ वो मर्द है और दर्द उसे भी होता है…

हर उत्सव में खुश होता है वो,
हर दुख में रो पड़ता है।
वो सख्त ना होकर भी सख्त होने का दिखावा करता है,
किसी की याद में वह पल पल तड़पता रहता है। हरपल देखे लास्ट सीन और फोटो को निहारता रहता है…

वो बेफिक्री से रहने वाला
अब हर वक़्त फिक्र में रहता है।
हाँ वो मर्द है और दर्द उसे भी होता है…

तुम भले ही उसे कुछ भी कहो,
ख़ुशी के पल को चलो छोड़ो,
हर ग़म में तुम्हारे साथ खड़ा मिलता है। दूसरों के दुख में साथ रहकर भी खुद ख़ामोशी के बवंडर लिए फिरता है। जब साँझ को वह घर लौटे, की जब सांझ को वह घर लौटे तो एक कंधे की राह तकता है। हाँ वो मर्द है और दर्द उसे भी होता है…

घर को ही वह घर बनाने,
खुद बेघर सा रहता है, रौशन हो आंगन अपना,तो खुद सूरज सा तपता है। बेपरवाह जो लड़ जाता था, अपनी बात मनाने को,
कर कुर्बान यूं सपने खुद के,
बस खुद को खोने से डरता है।
हाँ वो मर्द है और दर्द उसे भी होता है….

वह धीर है गंभीर है,
अपने कर्तव्य का पालन भी करता है। पग पग पर है संघर्ष कर वो लड़ता और विजय होता है। वह इंद्रजीत होकर भी सुलोचना के आँसुओ से विचलित होता है। हाँ वो मर्द है और दर्द उसे भी होता है..

हर्ष कुमार….………किशनगंज ,बिहार

वह धीर है गंभीर है -हर्ष कुमार की कविता