गलगलिया/दिलशाद
सूर्य आराधना के महापर्व चैती छठ के पावन अवसर पर
महापर्व के तीसरे दिन रविवार को गलगलिया में छठव्रतियों ने अस्ताचलगामी भगवान भुवन भास्कर को पहला अर्घ्य दिया। सोमवार की सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर चैती छठ पर्व संपन्न हो जायेगा। अर्घ्यदान को ले कुछ व्रतियों ने अपने घर में ही जल का संचय कर छठ घाट बना बड़े ही श्रद्धा के साथ भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित किया।
वहीं कुछ व्रती तालाब, नदियों में जाकर भगवान भास्कर को अर्घ्य देते हुए दिखे। बता दें कि धीरे-धीरे चैती छठ का स्वरूप भी बड़ा होता जा रहा है। लोग इस पर्व को भी उतनी ही आस्था के साथ मनाते हैं जैसा कार्तिक माह में मनाया जाता है। गलगलिया के पुराना बस स्टैंड के समीप बहती नदी में घाट बना कर छठव्रतियों ने आस्था के साथ डुबकी लगायी। आस्था के महापर्व पर श्रद्धालुओं ने अस्तगामी सूर्य देवता को अर्घ्य दिया।
बच्चें पटाखे फोड़ने में काफी मशगूल रहे तो वहीं महिलायें छठ मइया का गीत गाती रही। वहीं छठ वर्ती घंटों पानी में खड़े होकर सूर्य देवता की ध्यान करती रहीं। वहीं छठ घाट पर मौजूद कुछ छठव्रतियों ने बताया कि मूलरूप सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है।
पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं। छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये, तब श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उनकी मनोकामना पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिला। लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी।