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चुनिंदा शायरी

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जो महसूस करते हैं वो बयाँ कर देते हैं,
हमसे लफ़्ज़ों की दग़ाबाज़ी नहींं होती।

आहिस्ता आहिस्ता
आहिस्ता आहिस्ता बढ़ रहीं हैं
चेहरे की लकीरें….!!
शायद नादानी और
तजुर्बे में
बंटवारा हो रहा है….!!

दुरियां जब बढ़ी तो,
गलतफैमियां भी बढ़ गई।
फिर उसने वो भी सुना,
जो मैने कहा ही नहीं।

कुछ इस तरह से हमारी
बातें अब कम हो गयी
कैसे हो? से शुरू हुई
मैं भी ठीक हूं पर खत्म हो गयी






आज फिर तुमने किसी और का चश्मा पहना
आज फिर तुमको मुझमे एैब दिखाई देंगे.

जिस शख्स की गलती गलती नहीं लगे,
किताब-ए-इश्क़ में उसे महबूबा कहते हैं।

मेरे अरमानों को मिट्टी में मिला दिया
तुमने कैसे मुझे भुला दिया
कोई कसर नहीं छोड़ा तुम्हें चाहने में
और मेरी चाहत का ये सिला दिया।

???????⚘??????
तेरे इश्क की
आँधीं में जो हादसा हुआ ,
तेरी चाहत की ठंड में ,
काँपता रहा रात भर ।

???????⚘??????

ये इश्क़ जिस तरफ़ निगाह कर गया… झोपड़ी हो या महल तबाह कर गया…??

तेरी मुहब्बत भी किराये के घर की तरह थी।।।।
कितना भी सजाया पर मेरी नहीं हुई।।

तुम नफरत का धरना कयामत तक जारी रखो,
मैं प्यार का इस्तीफा जिंदगी भर नहीं दूंगा…!

तुम्हे पा ना सका हो ये अलग बात है ,तुम्हे छोड़ देने का ख्याल हम आज भी नहीं रखते !

बहुत नशीली तेरी आंखें ,जादू बहुत दिखाती हैं ,
सत्य कहूं तो मान लो गोरी ,मंत्रमुग्ध कर जाती हैं ।

पूरी दुनिया के जज्बात एक तरफ तुझसे वो पहली मुलाकात एक तरफ

ज़ुबां तो खोल नज़र तो मिला जवाब तो दे
मैं कितनी बार लूटा हूँ मुझे हिसाब तो दे .

मैं शिकायत क्यों करूँ, ये तो क़िस्मत की बात है..
तेरी सोच में भी मैं नहीं, मुझे लफ्ज़ लफ्ज़ तू याद है..!!

पता है, तुम्हारी और हमारी
मुस्कान मे फर्क क्या है..,?
तुम खुश होकर मुस्कुराती हो
हम तुम्हे खुश देखकर मुस्कुराते है !

सफ़र ए इश्क़ हो या मयख़ाने का दवाखाना,
दोनों का असर एक है बस होश को गंवाना।…..♥

मुझे तोहफ़े में अपनो का वक्त पसंद है…
लेकिन आजकल इतने मंहगे तोहफ़े देता कौन है…

फ़िक्र तो तेरी आज भी करते है… बस जिक्र करने का हक नही रहा…






नहीं बयां कर सकता किस हद तक जा कर याद करता हूँ मैं तुझे,
मेरे पास वो लफ्ज नहीं जो मेरे दिले दर्द को बयां कर सके!

मैं हूँ भी तो लगता है कि जैसे मैं नहीं हूँ तुम हो भी नहीं और ये लगता है कि तुम हो ।

उसके छुअन की तपिश मुझमें समाती गई ,
ज़माने की तोहमतें लगने लगीं ‌, मुझमें सादगी आती गई !

हां साहब, मै ग़म लिखता हूं
कभी ज्यादा कभी कम लिखता हूं
मुझसे दूर, बहुत दूर ही है वो
फिर भी मै उसे हमदम लिखता हूं !

वो पायल नहीं पहनती पांव में ! बस एक काले धागे से कहर बरसाती है !!

थोड़ा कम तुम भी फासला करते
मिलने जुलने का हौसला करते ।

जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया !

सर पर है सिन्दूरी रेखा ,सुन्दर भाल पर टीका है,
परिधान भी अति सुन्दर ,कहीं न कुछ भी फीका है ।
आंखों मे अपनत्व अधिक है ,अधरों पर मादक मुस्कान ,
अलकों में भी गहन कालिमा ,कहीं से कुछ भी नहीं है म्लान ।
ग्रीवा में कंठहार सुशोभित ,कानों मे भी बाली है ,
चेहरे पर भोलापन तेरे ,पर तू तो नखरेवाली है !!

लगाना दिल किसी से काम ये आसां नहीं लोगों
कि मिलते यार भी अब यूं कि साहूकार हों जैसे ।

महसूस करता हूँ वैसे ही
तुम्हें मैं
जैसे जीवन महसूस करता है
धरती को
जैसे धरती महसूस करती है जल वायु ऊष्मा और आकाश को
नहीं जानता कि जीवन विहीन धरती कैसी होगी
पर धरती के बिना जीवन अकल्पनीय है
जैसे अकल्पनीय है बादल के बिना बरसात
प्रकाश के बिना सूर्य
गुस्से के बिना तुम 🙂
और तुम्हारे बिना मैं और मेरी कवितायें !

तेरी तस्वीर से करता था बातें
मेरे कमरे में आईना नहीं था

“अगर” कभी महोब्बत में दिल टूटे तो मेरे पास चले आना …
मुझे अपने जैसे लोगो से बहुत मोहहबत” है..

मोहब्बत कुछ अलग सी है मेरी तुझसे,
तुम ख्यालों में ही नही दुआओं में भी रहते हो।






सीने में एक तूफान सा है
ना जाने मन आज क्यो परेशान सा है !

मुझे बस हल्की सी फ़िक्र है तुम्हारी …. मैं नहीं जानता प्यार क्या होता है …

कोई रिश्ता जब खामोशी से टूटता है तो। साथ में कोई न कोई एक शख्स भी टूट जाता है…!!

पूछ लेते वो बस मिज़ाज मेरा
कितना आसान था इलाज मेरा ।

ऐसी ही चुनिंदा शायरी को पढ़ने के लिए हमारे हमारे वेबसाइट पर आते रहे ..आप का स्वागत है






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