अररिया/अरुण कुमार
दो दिवसीय पर्व जूड़शीतल शनिवार को सतुआइन के साथ शुरू हुआ था। रविवार को बड़े ही धूमधाम के साथ जुड़शीतल पर्व को मनाया गया। अररिया के प्रसिद्ध पंडित श्री ललित नारायण के अनुसार अनुसार यह पर्व ग्रामीण क्षेत्र के लोग इसे आदिकाल से चली आ रही हैं।रविवार को बड़े- बुजुर्गों के द्वारा अपने परिजनों के सिर पर शीतल डाल कर दिया आशीर्वाद दिया।
बुजुर्ग महिला जल भरा घैला जौ आदि दान करने व पुरणी पत्ता पर सत्तू खाने की परंपरा को भी पुरा किया। पंडित श्री झा बताते हैं कि मिथिला में अलग-अलग रूपों में प्रकृति की पूजा की जाती है।जुड़शीतल भी मिथिला की संस्कृति से जुड़ा एक अद्भुत पर्व है,जो विलुप्त होने के कगार पर है।गांव-कस्बों में कमोबेश इसकी झलक मिल भी जाती है, परंतु शहरों में जुड़ शीतल का पर्व विलुप्त होता जा रहा है।जुड़ शीतल पर्व मनाने के पीछे इसकी उपयोगिता व सार्थकता है।
दो दिवसीय इस पर्व के पहले दिन सतुआइन व दूसरे दिन धुरखेल होता है।सतुआइन के दिन सत्तू व बेसन से बने व्यंजनों को खाने कि परंपरा है।गर्मी के मौसम में सत्तू व बेसन से बने व्यंजन के खराब होने की आशंका कम होती है।इसलिए सतुआइन के दिन बना खाना ही लोग अगले दिन खाते हैं।इस दिन अहले सुबह घर के बड़े छोटे के सिर पर पानी डालते हैं, माना जाता है कि इससे पूरे गर्मी के मौसम में सिर ठंडा रहेगा।पेड़ – पौधे की जड़ों में भी पानी डालने की परंपरा है।
