संपादकीय/डेस्क
हाउस अरेस्ट यानी नजरबंद एक और लॉकडाउन इसे हाउस अरेस्ट नजरबंद ही तो कहेंगे । इस बार का लॉकडाउन अधिक मानसिक तनाव देने वाला है ।लगभग 4 महीने बंदी झेलने के बाद 15 दिन और यह सोचकर ही रूप कांप जाती है । कोरोनावायरस ने जीवन जीने की शैली को बदल डाला है । हम लोग ऐसी जिंदगी जीने के आदी नहीं है । कंधे में हाथ डाल कर चलना हाथ मिलाना ,एक स्कूटर में पांच पांच लोगों की सवारी करना , ट्रेन के डिब्बे में सुई रखने की भी जगह ना बची हो , वहां भी अपने आप को एडजस्ट कर लेना , घंटों झुंड में मुंह में मुंह डालकर बतियाना , यह सब कुछ हमारी सभ्यता और आदतों में सुमार रहा है ।
वुहान वायरस ने एक झटके में हमारी सभ्यता और जीने के तरीके को बदल डाला है । बुजुर्ग तो यूं ही घर में रहने को आदि होते हैं । वायरस के डर से
वे घरों में दुबके पड़े हैं । बच्चों को मां-बाप ने कैद में रखा हुआ है और युवा नौकरी ,पेशा ,भविष्य सब खत्म होते देख मानसिक तनाव में पहले से ही गुजर रहे हैं ।
लॉकडाउन ,कोरोना संकट ऊपर से अतिवृष्टि और बाढ़ की आफत छोटे इलाके में नष्ट होते कारोबार ,अतिवृष्टि से नष्ट होती फसलें बर्बाद होती अर्थव्यवस्था , ऐसे में कोई भी मानसिक संतुलन खो देगा । अब सवाल यह है कि कोरोना काल में क्या ऐसी जिंदगी को हमने खुद चुना है या यह स्थिति प्रकृति की देन है या ऐसी जिंदगी जबरदस्ती थोपी गई है । खासकर बिहार यूपी सहित कई अन्य पिछड़े राज्यों को पहला लॉक डाउन लागू करने से पहले प्लानिंग की चूक का ही नतीजा था कि प्रदेश में रहने वाले मजदूरों की भगदड़ को संभालने में राज्य सरकारें नाकाम रही ।
इस सारे सिचुएशन में सबसे दूरदर्शी नेता बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहे जो शुरू से कह रहे थे जो व्यक्ति जहां है वहीं रहे । लेकिन ज्यों ही कुछ राज्यों ने अपने लोगों को एवं छात्रों को अपने खर्च पर घर वापसी कराई राजनीतिक एवं सामाजिक रुप से नीतीश कुमार को विलेन प्रस्तुत किया जाने लगा ।
अंततः नीतीश कुमार को भी मजदूरों और छात्रों को वापस लाना पड़ा यह जानकर आश्चर्य होगा कि अधिकतर राज्यों से मूल प्रदेशों में आए मजदूरों में से 60 परसेंट से अधिक मजदूर काम पर लौट गए ।
क्योंकि बड़े किसानों और फैक्टरी वालों ने गांव और शहरों में बसे भेजकर ट्रेन की कोच रिजर्व कर परिवार वालों को एडवांस पैसा दे उन्हें ले गए ।अब सवाल यह है कि मुंबई, दिल्ली ,पंजाब, हरियाणा से पैदल आ रहे मजदूरों के पास काम की कमी थी, पैसे की कमी थी या कोरोनावायरस से मारे जाने का डर था ? अब सवाल ये है कि जब कोरोनावायरस प्रसार की गति काफी कम थी, तब सारे प्रवासी मजदूर भाग गए और जब कोरोनावायरस अपनी चरम की ओर आने लगा तो फिर वही लौट गए यानी कोरोनावायरस समस्या नहीं थी ।
तब फिर दिन-रात टीवी में प्रसारित खाली जेब भूखे मजदूरों की समस्या क्या सही थी शायद नहीं बिजनेस मैनेजमेंट में पढ़ाया जाने वाला लेबर लॉ का रिसर्च बताता है कि लेबर झुंड में चलना पसंद करते हैं । झुंड में चलने वाले सभी लेबर फीयर साइकोसिस के शिकार होते हैं बिहार ,यूपी, एमपी तथा अन्य राज्यों के श्रमिक की घर वापसी और वापस फिर काम में लौट जाने के पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों ही नतीजे तुरंत सामने आ गए ।
लेबर घर आए और कोरोनावायरस दूध में जोरन लगा कर वापस चले गए । नतीजा यह है कि बिहार, यूपी में अब तेजी से कोरोनावायरस संक्रमित राज्यों की दौड़ में शामिल हो गया नीतीश कुमार मना कर रहे थे ।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपील की लोगों से 2 गज की दूरी बनाए रखने को कहा था और यह भी कहा था कि हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं है कि कम्युनिटी संक्रमण को संभाल सके । लेकिन पॉलीटिकल प्रेशर और सोशल प्रेशर ने इन राज्यों को ऐसे हालत में पहुंचा दिया कि अनलॉक टू में भी लॉक डाउन करना पड़ रहा है । उन्हें पता है कि बारिश के वक्त बिहार के अस्पताल डूब जाते हैं । मरीजों की मुश्किलों का तो बखान करना मुश्किल है ।
डॉक्टरों को भी ठेले में अस्पताल जाना पड़ता है ।
जहां अस्पतालों की हालत अच्छी है वहां डॉक्टर बेड खाली रहते हुए भी इलाज करने को तैयार नहीं है ।जैसा कि पटना एम्स में आज दिखा मजदूरों के काम में लौट जाने का नतीजा है कि प्रोडक्शन इंडेक्स 57.7% ऊपर है । जो कि जो कि मई 2020 में 24.1% रहा था पीएम आई इंडेक्स 47.2% तक पहुंच गया है जो आमतौर पर 50% के करीब रहता है जो बिना लेबर के संभव नहीं है । साथ ही साथ न्यू आर्डर इंडेक्स 56.4% रजिस्टर किया गया है ।
2020 से अब तक 31.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज हुई है । देश के अधिकतर उद्योगों का उत्पादन बढ़ गया मजदूर काम में आ गए । इधर राज्य सरकारें रोज नए आंकड़े जारी कर रही है कि मनरेगा और अन्य उद्योगों में लाखों मजदूरों को काम राज्य में ही मिल गया । अब सवाल यह है कि बड़े शहरों के उत्पादन बढ़ाने वाले मजदूर क्या दिन में अपने राज्य में काम करते हैं और फ्लाइट से दूसरे राज्य जाकर फैक्ट्री में काम करते हैं ।
खबरिया और कागजी जादूगरी जांच का विषय है ।
लेकिन वर्तमान हालात से इतना तो स्पष्ट है कि कम से कम बिहार में सामुदायिक संक्रमण हो चुका है । बेकाबू कोरोना संक्रमण को रोकना राज्य सरकार के लिए काफी मुश्किल दिख रहा है । शुरुआती लॉकडाउन में तो मृत्यु दर काफी कम थी साथ ही रिकवरी रेट भी ज्यादा थी । अब मृत्यु दर भी बढ़ने लगी है और रिकवरी रेट भी घटने लगी है ऐसे में लोग हाउस अरेस्ट रहकर मन मसोस कर वैक्सीन निकलने तक अगर संयम रख लें तो खुद को बचा पाएंगे । वरना कोरोना वायरस महज 2 गज की दूरी के बाहर ही खड़ी है ।






























