Search
Close this search box.

ग़ज़ल :काटते क्यू नही बगावत का सर जो ये उठ रहा हिमाकत का

बेहतर न्यूज अनुभव के लिए एप डाउनलोड करें


काटते क्यू नही बगावत का सर जो ये उठ रहा हिमाकत का

आज भी घूमते फिरे शातिर बंद है दरवाजा अदालत का

जोश जाने कहां चला जाता काम कुछ भी ना हो शराफत का

शर्म आती नहीं हैवा बनकर रंग बस दिख रहा सियासत का

मांगते अब तो बस खुदा से ये माजरा थम जाए हिकारत का

“श्रेया” को कुछ समझ न आता है रंग जो बेतुका ये नफरत का !

साभार :श्रेयसी वैष्णव के फेसबुक वॉल से






आज की अन्य खबरें पढ़े :




ग़ज़ल :काटते क्यू नही बगावत का सर जो ये उठ रहा हिमाकत का

× How can I help you?