बंगाल : फांसीदेवा में तृणमूल कार्यकर्ताओं ने दीवार लेखन कार्य किया शुरू,कार्यकर्ताओ में चुनाव को लेकर उत्साह

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खोरीबाड़ी /चंदन मंडल

फासीदेवा विधानसभा में तृणमूल कार्यकर्ताओं ने विधानसभा चुनाव की तैयारी को लेकर अपनी कमर कस ली है। तृणमूल कार्यकर्ताओं ने विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जोरशोर से अपनी तैयारियां में जुट गई है. इसके लिए पार्टी ने अब प्रचार भी तेज कर दिया है. फांसीदेवा विधानसभा के तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार छोटन किस्कु ने दीवार लेखन कर इसकी शुरुआत की . इस दिन छोटन किस्कु ने दीवार पर पार्टी का प्रतीक चिन्ह बनाते हुए यह दीवार लेखन शुरू किया. बता दें कि दार्जिलिंग , कालिम्पोंग, जलपाईगुड़ी आदि जिले में पांचवे चरण में 17 अप्रैल को चुनाव होना है।

चुनाव की डुगडुगी बजने के बाद राजनैतिक दलों के माध्यम से दीवारों पर पोस्टर बैनर नहीं दिख रहा है। ऐसा चुनाव आयोग द्वारा आदेश जारी होने के बाद असर दिख रहा है। राजनैतिक दल दीवारों पर पोस्टर बैनर लगाने से परहेज कर रहे है।दार्जीलिंग जिले में पांचवे चरण में आगामी 17 अप्रैल को मतदान होगा, लेकिन खोरीबाड़ी प्रखंड में चुनाव का कोई माहौल नहीं दिख रहा है। कहीं भी तामझाम नहीं है।सिर्फ चाय पान की दुकानों पर चुनावी चर्चा हो रही है।दस वर्ष पूर्व चुनाव की घोषणा होते ही राजनैतिक गर्माहट शुरू हो जाती थी।बाजारों के अलावा ग्रामीण इलाकों में पोस्टर,बैनर से दीवारों को रंग दिया जाता था। बड़े बड़े होडिग को लगाकर प्रचार प्रसार किया जाता था।इसके अलावा दीवारों पर स्लोगन लिखकर पार्टी और प्रत्याशी का प्रचार प्रसार किया जाता था, लेकिन चुनाव आयोग द्वारा खर्च पर सख्ती की वजह से भी राजनैतिक दलों द्वारा पोस्टर,बैनर नहीं लगाया जा रहा है।

चुनाव आयोग ने सार्वजनिक स्थलों पर पोस्टर बैनर लगाने के लिए प्रतिबंध लगा दिया है. वहीं गृहस्वामी के इजाजत पर ही कोई राजनैतिक दल उनके घरों पर पोस्टर बैनर,झंडा लगायेंगे,अन्यथा उनके उपर चुनाव आयोग की पैनी नजर है। आचार संहिता का मामला भी दर्ज होगा. इधर कोरोना के कारण विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता लोगो से दूरी तो बनाये हैं, लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।

सोशल मीडिया के सहारे मतदाताओं को अपनी ओर लुभाने का प्रयास कर रहे हैं । अगर हमलोग करीब दो दशक पीछे जाकर देखें तो चुनावी सीजन में आंखों के सामने कार, बस या ऑटो में लगे झंडे, लाउडस्पीकर से प्रत्याशी को जिताने की अपील के साथ धुआंधार नारेबाजी और छोटे-छोटे प्लास्टिक या कागज के बिल्लों के लिए लपकते बच्चों वाली चुनाव प्रचार की तस्वीर जीवंत हो उठती है,
लेकिन अब यह सीन पूरी तरह बदल चुका है और इसका स्थान छह इंच के मोबाइल फोन के स्क्रीन ने ले लिया है . पिछले एक दशक में तो सोशल मीडिया चुनाव प्रचार अभियान का सशक्त माध्यम बनकर उभरा है.भारत में राजनीतिक दल सोशल मीडिया को प्रचार के प्रमुख साधन के रूप में अपना रहे हैं. शायद ही कोई राजनीतिक दल ऐसा होगा, जो इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल अपनी बात रखने और प्रतिद्वंद्वियों के आरोपों का जवाब देने के लिए न कर रहा हो.आज अधिकांश नेता और उनके समर्थक फेसबुक, वाट्सएप, ट्विटर जैसे माध्यमों से राजनीतिक दलों का अधिकाधिक प्रचार कर रहे है. 

इसके कई कारण हैं. सबसे पहले तो यह कि आज कोई ऐसा घर नहीं है जहां मोबाइल नहीं है, और शायद ही कोई ऐसा स्मार्टफोन हो जिसमें वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब नहीं हो.सोशल मीडिया की पहुंच पर तो किसी को संदेह ही नहीं.इससे सटीक प्रचार माध्यम फिलहाल कुछ नहीं है. दूसरा इस प्रचार तंत्र में सूचनाओं का फ्लो काफी तेजी से होता है.पहल झपकते ही आप लाखों के बीच अपनी बात पहुंचा सकते हैं.तीसरा इस माध्यम से प्रचार करना अपेक्षाकृत सस्ता भी होता है. बस मोबाइल में इंटरनेट होना चाहिए. पोस्ट लिखा, हैशटैग किया और पहुंच गए टारगेट ऑडिएंस के पास.

सबसे ज्यादा पड़ गई