किशनगंज /प्रतिनिधि
बन कोल गांव किशनगंज में अखिल विश्व गायत्री परिवार द्वारा दिव्य प्रज्ञा आयोजन एवं एकदिवसीय यज्ञ का कार्यक्रम प्रोफेसर लक्ष्मी नारायण केसरी की अध्यक्षता में संपन्न किया गया। प्रज्ञा परिवार हरिश्चंद्र जी की टोली द्वारा प्रज्ञा संगीत एवं चेतनात्मक शक्ति संचार से संबंधित उद्बोधन के साथ वातावरण मधुमय हो उठा।
अगर हम नहीं देश के काम आए धरा क्या कहेगी गगन क्या कहेगा? फिर अपने गांवो को हम स्वर्ग बनाएंगे अपने अंदर सोया देवत्व जगाएंगे आदि प्रज्ञा संगीत के माध्यम से जन-जन में नव चेतना का संदेश दिया गया।

अपार जन जनशक्ति की उपस्थिति में गृहे गृहे कार्यक्रम के अंतर्गत प्रोफेसर लक्ष्मी नारायण ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए युग परिवर्तन की सुनिश्चित संभावनाओं को व्यक्त किया। डॉक्टर श्रेया केसरी ने महिला जागरण पर बोलते हुए कही अगर नारी शक्ति शिक्षित सशक्त और संस्कारी बन जाए तो धरती स्वर्ग बन जाएगा।
गायत्री यज्ञ के माध्यम से विभिन्न प्रकार के संस्कार जैसे दीक्षा संस्कार नामकरण संस्कार आदि संपन्न कराए गए। संस्कारों की महिमा पर प्रज्ञा पुत्र श्यामानंद झा ने विस्तार से चर्चा की।

वरिष्ठ प्रज्ञा पुत्र श्यामानंद झा सेवानिवृत प्रधानाध्यापक राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षाविद ने कहा गायत्री साधना से आत्महीनता की भावना में कमी लाई जा सकती है। यह साधना व्यक्ति के विचारों में सकारात्मक सोच लाती है। इस साधना के फल स्वरुप व्यक्ति अपने आप में श्रेष्ठ क्षमता वान और सद्गुणों से संपन्न होता है।
आगे बोलते हुए उन्होंने कहा परम पूज्य गुरुदेव वेद मूर्ति तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक संरक्षक की गहन चर्चा के बाद उन्होंने कहा युग निर्माण योजना की दिशा धारा का लक्ष्य निर्धारण मनुष्य में देवत्व का उदय धरती पर स्वर्ग का अवतरण स्वस्थ शरीर स्वच्छ मन सभ्य समाज वसुधैव कुटुंबकम जनमानस का भावनात्मक परिष्कार इस जीवन में धारण करते हुए तदनुरूप समाज का निर्माण हमारा लक्ष्य है।
जीवन आधार के रूप में व्यक्ति निर्माण परिवार निर्माण समाज निर्माण नैतिक क्रांति बौद्धिक क्रांति सामाजिक क्रांति से लोक शिक्षण की दिशा में अनवरत कार्य करने की आवश्यकता है। हम बदलेंगे युग बदलेगा हम सुधरेंगे युग सुधरेगा के अंतर्गत उत्कृष्ट चिंतन आदर्श कृतृत्व सहित जीवन निर्माण साधना स्वाध्याय संयम सेवा जीवन के आधार उपासना साधना आराधना प्रगतिशील जीवन के चार चरण समझदारी ईमानदारी जिम्मेदारी एवं बहादुरी संयमशीलता के चार स्तंभ इंद्रिय संयम अर्थ संयम समय संयम एवं विचार संयम के साथ निर्माण की दिशा में कार्य करने की महती आवश्यकता है।
सप्त आंदोलन के प्रति जिम्मेदार होकर जैसे साधना नारी जागरण पर्यावरण संरक्षण स्वावलंबन व्यसन मुक्ति एवं कुरीति उन्मूलन शिक्षा और स्वास्थ्य की दिशा में संपूर्ण समर्पण की आवश्यकता है। अतः हम सबों के लिए समय दान की परंपरा का निर्वाह में कमी लाने की आवश्यकता नहीं है। हमें सतत याद रखना चाहिए कि अहंकार क्षमता का या सौंदर्य का हो शक्ति का हो या भक्ति का धन का हो या धर्म का बड़े-बड़े विश्व विजेता को भी नष्ट कर देता है।
हमें विद्वान होने के साथ-साथ विद्यावान होने की आवश्यकता है जहां हम आदर्श की स्थापना कर सकें।
दिव्य कार्यक्रम की सफलता हेतु प्राणपण से जुटे भावना शील परिजन भाइयों बहनों में डॉक्टर श्रेया केसरी हरिश्चंद्र प्रसाद सिंह सिपटी प्रसाद सिंह साबुलाल सिंह तारा सिंह शकुंतला देवी भी ममता कुमारी विमल कुमार कालीचरण सुंदरलाल टिगनू लाल सिंह प्रवीण कुमार आदि की भूमिका अत्यंत सराहनीय रही।




























