कोई नहीं है टक्कर में !

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कुमार राहुल


भाग्य का साथ हर वक्त मिलेगा, जरूरी नहीं ।अचानक गुजरात का मुख्यमंत्री बन जाना, 2014 में पहली बार किसी विपक्षी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिल जाना, प्रधानमंत्री मोदी की जिंदगी की कहानी किस्मत से जुड़ी एक असाधारण गाथा है। कहां रेलवे स्टेशन में चाय बेचने वाला आज भारत का नेतृत्व कर रहे हैं । 7 सालों के शासन के बाद अब भारत में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है, मोदी के लिए। आलोचक कहते हैं, बालों की सफेदी के साथ मोदी की बुजुर्ग इमेज का आकर्षण कम हो गया है। विरोधियों पर उनके हमले की धार भी पहले जैसी नहीं रही ।13 देशों में निर्वाचित नेताओं की रेटिंग पर नजर रखने वाली एजेंसी मॉर्निंग कंसलट ने पिछले साल के मुकाबले मोदी की रेटिंग में 20 पॉइंट की गिरावट बताई है ।






लेकिन उन्होंने जून में हुए सर्वे में 66% की उछाल उछाल के साथ बाकी देशों के नेताओं को पीछे छोड़ दिया है ।भारतीय एजेंसी प्रश्नम के सर्वे में कोविड-19 से व्यक्तिगत क्षति उठाने वाले 42 परसेंट लोगों ने मोदी सरकार को दोषी बताया है। और फिर महामारी से पहले ही धीमी पड़ चुकी अर्थव्यवस्था, 31 मार्च को समाप्त वर्ष में 7% सिकुड़ गई। अब पटरी पर आने के बजाय ठहर गई हैं ।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मोदी सरकार की प्रतिष्ठा को आघात लगा है, चीनी सेना ने 1 साल पहले कब्जा की गई भारतीय जमीन से हटने से इनकार कर दिया है। मोदी सरकार को विरोध भी पसंद नहीं है ।84 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी ( जो कि आदिवासियों के लिए काम करते थे )इसके सबसे बड़े उदाहरण है। कि वह इतने बड़े आतंकी थे, कि पार्किंसन और कोरोनावायरस की बिमारी के बावजूद उन्हें सरकार रिहा न करें। और उनकी मृत्यु एक कैदी के रूप में हो। और सुप्रीम कोर्ट भी अचंभित है, कि जिस आईटी कानून 66 A को सुप्रीम कोर्ट ने हीं असंवैधानिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ बताते हुए निरस्त कर दिया था ,और उसी कानून के तहत आज भी सरकार लोगों को गिरफ्तार कर रही हो, तो सरकार की इमेज कैसी रह जाती है, इसकी कल्पना आप खुद ही कर सकते हैं।






आपने अक्सर गौर किया होगा, कि चुनाव के कुछ महीने पहले विपक्ष के नेताओं पर वर्षो पुराने मामले में ईडी/ इनकम टैक्स /सीबीआई के छापे पड़ते हैं ।बराबर हो रहे, ऐसे मामलों से आम जनता भी समझने लगी है, कि सरकार प्रतिशोध लेने के लिए ऐसी कार्रवाई कर रही है। आम जनता की पेट्रोल ,डीजल, खाने के तेल की बढ़ती कीमतों से जान निकली जा रही है ,रही सही जान महामारी से उपजी बेरोजगारी ने निकाल दी है ।लेकिन सरकार है, कि आपदा को अवसर में बदलने मे, चूक नहीं रही है ।और खूब कमा रही है। नीति आयोग की 3 साल पुरानी रिपोर्ट के अनुसार भारत में 60 करोड़ से ज्यादा लोग जल संकट से जूझ रहे हैं। भारत के 21 बड़े महानगरों के अंडर ग्राउंड वाटर खत्म सा हो गया है ।पानी की क्वालिटी के मामले में 122 देशों में भारत 120 वे नंबर पर है। लेकिन 15 लाख करोड़ की रकम से दर्जनों नदियों को जोड़ने वाली बहु प्रचारित प्रोजेक्ट और गेम चेंजर योजना को सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है। जल संरक्षण और सिंचाई की इतनी बड़ी परियोजना परवान नहीं चढ़ सकी, लेकिन 2022 तक कृषि की आमदनी दुगुनी करने का लक्ष्य सरकारी फाइलों में बरकरार है। ऐसे अनेकों लक्ष्यों की वजह से विभिन्न सरकारी विभागों में करोड़ों की संख्या में नौकरी की भ्रामक vacancy भी दिखती है। साथ ही किसान कृषि कानूनों के विरोध में आज भी दिल्ली बॉर्डर में धरना रत हैं। जिसे सरकार सुनने तक को तैयार नहीं है। तमाम नाकामियों के बावजूद मोदी के टक्कर में कोई नहीं है।






क्योंकि मोदी को पता है, कि भारत में चुनाव का मुद्दा कभी बेरोजगारी ,गरीबी ,अशिक्षा रही ही नहीं। इसलिए 2022 मे पांच राज्यों में होने वाले चुनाव को ध्यान में रखते हुए ,मंत्रिमंडल का विस्तार जो किया गया है ,उनमें ओबीसी, एससी ,एसटी, महिलाओं का खास ध्यान रखा गया है। क्योंकि जातीय तुष्टीकरण से ही वोट बैंक मजबूत होता है। ऐसा कहा जा रहा है, कि दलित वोट हवा में तैर रहे हैं ।और इस को लपकने की दावेदारी सबसे अधिक भाजपा की ही है। वोट बैंक और बैंक अकाउंट मजबूत तो सत्ता मजबूत। और अब संघ प्रमुख मुस्लिमों को रिझाने के लिए कैंपेन चला रहे हैं ।हाल ही में श्री भागवत ने कहा है ,कि भारत में हिंदू ,मुसलमान का डीएनए एक है ।साथ ही उन्होंने कहा ,कि गौ रक्षा के बहाने मानव हत्या ,जो लोग कर रहे हैं ,वह हिंदुत्व के विरोधी हैं ।इन दिनों की PEW का सर्वे काफी चर्चा में है। सर्वे के अनुसार लोग ,मोदी के विरोधियों की इसलिए नहीं सुन रहे हैं, क्योंकि उनकी भाषा लोग ना तो पसंद करते हैं, ना समझते हैं ।आप उन्हें धर्मनिरपेक्षता का भाषण पिलाइए ,वह समझेंगे ,कि आप उन्हें कट्टरपंथी मान रहे हैं। आप आर्थिक मोर्चे पर मोदी के कामकाज की आलोचना कीजिए, जवाब मिलेगा ,कि लोग केवल रोटी दाल के लिए ही नहीं जीते हैं। और इन सबसे महत्वपूर्ण है, राम की आस्था ।लंबी लड़ाई के बाद बन रहे राम मंदिर 2024 में बनकर तैयार हो ही जाएगा। भव्य आयोजन भी होगा ,माहौल राममय होगा, और इसी साल आम चुनाव भी है। इन सारी परिस्थितियों के बीच शरद पवार और प्रशांत किशोर की ‘एकजुट विपक्ष ‘की खोज पूरी होगी ?जवाब बहुत कठिन है ।शरद पवार और किशोर की अब तक तीन बैठके हो चुकी है। कुछ हद तक पवार ,किशोर की साझेदारी के पीछे मोदी के प्रभुत्व को 2024 में चुनौती देने का मोदी विरोधी खेमे का उतावलापन नजर आता है ।राजनीतिक आईसीयू से बाहर आने में असमर्थ कांग्रेस को देखते हुए, तीसरे मोर्चे की संभावना मोदी विरोधियों के लिए आकर्षक है। तीसरा मोर्चा अजीब राजनीतिक जानवर है, जो अक्सर धरती खोदकर बाहर आ जाता है ,जब भी लगता है ,कि वह विलुप्त होने वाला है। और जहां तक कांग्रेस की बात है ,जिसने सालों देश को अपनी जागीर के समान चलाया, लेकिन उसी कांग्रेस के राहुल गांधी के नेतृत्व में ,पार्टी के पास मैदानी काम करने और सहयोगियों को एकजुट करने की क्षमता नहीं है ।यानी मोदी हल्की-फुल्की मुश्किल में तो हैं ,लेकिन होड़ में सबसे आगे हैं।






ये लेखक के निजी विचार है ।

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