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कविता :आज के अविरल कवि

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मधुबाला मौर्या

सोच रही हु किसपे लिखू
कवि पर या कविता पर
व्याकुल मन अधीर हो बैठा
खोजने चली जब दिनकर को ,

एक समय था
आज की नहीं बीते हुए कल की,
एक महादेवी देवी वर्मा थी दूजे
हरिवंशराय बच्चन जी ,

समय समय के अविरल कवि
तब के कविता मे ,रस –
संगीत -लय और ताल थी,
जीवन जीने की सीख थी ,

अब के कवि मिलते है
हर घर ,गली,और चौपाल पर
किराने की दूकान पर
कविता कम हास्यास्पद ज़्यादा ,

माइक पर चिल्लाना
दर्शकों को हँसाना
आज के कवियों का
बस यही हैं फ़साना

अब तो न कविता होती है न कविता मे रस होता है
न लय होती हैं न ताल
न कृष्णा होते हैं न गोपिया होती है
बासुरी बजती है पर गईया नहीं होती है।

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कविता :आज के अविरल कवि

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