धर्म/डेस्क
प्रत्येक वर्ष भाद्रपद की पूर्णिमा से लेकर अश्विन माह की सर्वपितृ अमावस्या तक पितरों को श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध अर्पण करने की पंरपरा है। जिसे हम पितृ पक्ष कहते है । इस साल 2 सितंबर से लेकर 17 सितंबर तक पितृपक्ष रहेगा।
मान्यता है कि इस दौरान पितृलोक से सभी पितर देव धरती पर अपने जीवित परिजनों से मिलने और उनको आशीर्वाद देने के लिए आएंगे। पितृपक्ष में पितरों को तर्पण और पिंडदान करने की परंपरा निभाई जाती है। धर्म ग्रंथों में श्राद्ध के बारे में कई चीजों को विस्तार पूर्वक बताया गया है।
मालूम हो कि हर साल लाखों की संख्या में देश विदेश से लोग बिहार के गया में लगने वाले पितृ पक्ष मेले में पहुंच कर तर्पण और श्राद्ध करते है ।लेकिन इस साल कोरोना की वजह से मेले को स्थगित कर दिया गया है ।जिसकी वजह से लोग घरों में ही तर्पण और श्राद्ध करेंगे ।
पितृ पक्ष में कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए. अक्सर इन बातों को लोग भूल जाते हैं. इस कारण श्राद्ध कर्म का पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं होता है. जीवन में पितरों का आर्शीवाद बहुत जरूरी होता है.
ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष का वर्णन आता है. इसका अर्थ ये होता है कि पितरों की नाराजगी. पूर्वज जब नाराज होते हैं तो व्यक्ति के जीवन में बहुत कष्ट सहन करने पड़ते हैं. धनहानि, रोग, कार्य में बाधा और मान सम्मान में कमी आती है. मानसिक तनाव के कारण व्यक्ति सही फैसले नहीं ले पाता है. इस तरह की दिक्कतें पितृ दोष के कारण जीवन में आती हैं. इसलिए पितृ दोष का निवारण कराने की सलाह दी जाती है.
पितृ पक्ष का महत्व
पितृ पक्ष के दौरान पूर्वज धरती पर आते हैं, ऐसी मान्यता है. इसलिए पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध के साथ दान करने का विधान बताया गया है. मान्यता है कि ऐसा करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और आर्शीवाद प्रदान करते हैं.
पितृ पक्ष में नहीं करने चाहिए ये काम
पितृ पक्ष के दौरान बहुत अनुशासित दिनचर्या का पालन करना चाहिए. पितृ पक्ष में किसी भी बुर्जूग और बड़ों का अपमान नहीं करना चाहिए. हर प्रकार की बुराईयों से बचाना चाहिए. इस दौरान बुरी संगत और बुरे विचारों से दूर रहना चाहिए. दान लेने वालों का खाली हाथ नहीं भेजना चाहिए. मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितर किसी भी रूप में आ सकते हैं. इसलिए इस दौरान किसी के प्रति गलत धारणा नहीं रखनी चाहिए.
ऐसे करें तर्पण
पितृ पक्ष में पूरब दिशा की तरफ मुंह करके चावल से तर्पण करना चाहिए. देव-तर्पण के बाद उत्तर दिशा की ओर मुंह करके कुश के साथ जल में जौ डालकर ऋषि-मनुष्य तर्पण करना चाहिए. अन्त में अपसव्य अवस्था में दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर अपना बायाँ पैर मोड़कर कुश-मोटक के साथ जल में काला तिल डालकर पितर तर्पण करना चाहिए.वहीं जिस तिथि में पूर्वज की मृत्यु हुई है उस दिन श्राद्ध करना चाहिए ।श्राद्ध का विशेष महत्व है । श्राद्ध के लिए बनाए जाने वाले पिंड में आप चावल या फिर खोए का उपयोग कर सकते है साथ ही श्राद्ध में दान का विशेष महत्व है।