हमारे अतिथि संपादक प्रवीण गोविन्द की रिपोर्ट।
- उत्तर बिहार के जंगलों से भी हो रही है इसकी तस्करी
- जिम्मेदारों को भनक तक नहीं मुख्य बातें
- तस्करों की जिंदगी ही रंगीन बना देती है गीको नामक छिपकली
- कीमत 40 लाख से एक करोड़ रुपए तक
- दुर्लभ छिपकली है गीको , इसके अंदर छिपे हैं गुणों की भरमार ये भी जानें
दक्षिण पूर्व देशों में डायबिटीज एड्स व कैंसर की परंपरागत दवाई बनाने में इसका किया जाता है प्रयोग
- मर्दानगी को बढ़ाने के लिए होता है इसका इस्तेमाल
- दवाई बनाने में काम आते हैं
अंडे छनकर मिली जानकारी - असाध्य बीमारियों में इसके इस्तेमाल होने से इसकी कीमत भी है काफी अधिक
- मामूली कीमत में छिपकली खरीदते हैं तस्कर, नेपाल के रास्ते पहुंचा देते हैं देश के बाहर
- पूर्व में उत्तर बिहार से हो चुकी है तस्करों की गिरफ्तारी
पटना (बिहार) : छिपकली एक ऐसी जीव होती है जो परिस्थिति के अनुकूल अपना रंग बदलती है, लेकिन कोशी-सीमांचल के जंगलों में पाई जाने वाली छिपकली तो तस्करों की जिंदगी ही रंगीन बना देती है। बता दें कि गीको नामक एक छिपकली की कीमत 40 लाख से एक करोड़ रुपए तक है। यह एक दुर्लभ छिपकली है, इसके अंदर छिपे गुणों की भरमार है। जानकर बताते हैं कि हाल के वर्षों में कोशी-सीमांचल के जंगलों से भी इसकी तस्करी हो रही है। ताज्जुब नहीं कि इस बात की भनक तक जिम्मेदारों को नहीं है। हालांकि जिम्मेदार कहते हैं कि मामले की पड़ताल की जाएगी।
छनकर मिली जानकारी
छनकर मिली जानकारी के मुताबिक, दक्षिण पूर्व देशों में डायबिटीज एड्स व कैंसर की परंपरागत दवाई बनाने में इसका प्रयोग किया जाता है। मर्दानगी को बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल होता है सो अलग। जानकर बताते हैं कि छिपकली तो छिपकली, इसके अंडे भी दवाई बनाने में काम आते हैं। असाध्य बीमारियों में इसके इस्तेमाल होने से इसकी कीमत भी काफी अधिक है। यही कारण है कि आज कल के दिग्भर्मित वैसे युवा जो रातों-रात करोड़पति बनने का ख्वाब पाले हुए हैं, कोशी-सीमांचल के जंगलों में खाक छानते नजर आते हैं। बताया जाता है कि यह छिपकली टॉक के शब्द की आवाज निकालती है, फलस्वरूप इसे टॉके नाम से भी जाना जाता है। चीन में इसे ट्रेडिशनल मेडिसन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। जानकार बताते हैं कि इंटरनेशनल ब्लैक मार्केट में इसकी काफी मांग है। सूत्र बताते हैं कि एक छिपकली की कीमत 40 लाख से एक करोड़ तक है।
कोशी-सीमांचल के जंगलों में है गीको
बताया जाता है कि यह छिपकली दक्षिण-पूर्व एशिया, बिहार, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, पूर्वोत्तर भारत, फिलीपींस तथा नेपाल में पाई जाती है। वैसे तो जंगलों की लगातार कटाई के कारण उक्त छिपकली आज की तारीख में खत्म होने की कगार पर है। लेकिन जानकार बताते हैं कि कोशी व सीमांचल के जंगलों में यह छिपकिली आज की तारीख में भी मौजूद है।
भारतीय तस्करों में इस छिपकली की भारी डिमांड है। बताया यह भी जाता है कि गीको का प्रयोग विशेष तांत्रिक क्रिया के लिए भी किया जाता है। ब्लैक मार्केट में इस छिपकली की कीमत उसकी साइज़ और वजन के अनुसार तय होती है। सूत्रों की माने तो
तस्कर मामूली कीमत में छिपकली खरीदते हैं और उसे नेपाल के रास्ते देश के बाहर पहुंचा देते हैं।
इन्हें भी जानें
वर्ष 2016 में एसएसबी 41वीं बटालियन के जवानों ने पश्चिम बंगाल सीमावर्ती किशनगंज में 4.5 करोड़ की ऐसी पांच छिपकलियों के साथ एक तस्कर को गिरफ्तार किया था। बता दें कि एसएसबी 41वीं बटालियन के जवानों ने छापेमारी कर 4.5 करोड़ की पांच टोके छिपकलियों के साथ एक तस्कर अमर सरकार को गिरफ्तार किया था। एसएसबी ने यह कार्रवाई किशनगंज सीमा से सटे पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में की थी। तस्करी की छिपकलियों को चीन भेजा जाने वाला था।
इसी तरह 2018 में भी भारत-नेपाल सीमा पर अवस्थित गलगलिया सीमा से सटे चक्करमारी बस पड़ाव से एसएसबी 19वीं वाहिनी के जवानों ने प्रतिबंधित टोके(गीको) छिपकली के साथ चार तस्करों को रंगेहाथ धर-दबोचा। तस्कर बंगाल के डुवार्स के जंगलों से प्रतिबंधित गीको छिपकली लेकर ठाकुरगंज में डिलिवरी करने आए थे। डिलिवरी के दौरान ही चारों तस्करों को गिरफ्तार कर लिया गया।
बहरहाल, स्थिति काफी दुःखद है। आज छिपकली की यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई है। निश्चित तौर पर जिम्मेदारों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे इस दिशा में सकारात्मक पहल करें।