गलगलिया/दिलशाद
गलगलिया थाना क्षेत्र अंतर्गत बेसरबाटी पंचायत के चुरलीहाट में अवस्थित माँझीथान में मंगलवार को
आदिवासियों का सबसे महान पर्व सोहराय बड़े ही धूमधाम एवं सौहार्दपूर्ण तरीके से मनाया गया। आदिवासी बहुल मांझी परगना संथाल समाज के लोगों ने अपने पूर्वजों को नमन करते हुए पूजा अर्चना की।
इस दौरान आदिवासी समुदाय के लोगों ने परंपरागत आदिवासी नृत्य व गायन कर 6 दिनों अर्थात मकर संक्रांति तक चलने वाले सोहराय पर्व का शुभारंभ किया। इस मौके पर मांझी परगना संथाल समाज के अध्यक्ष एवं सचिव ने बताया कि आदिवासियों का महान पर्व सोहराय पर्व का विशेष महत्व है। सोहराय पर्व में गोधन पूजन पर्व भी माना जाता है।
आदिवासियों में सोहराय पर्व की उत्पत्ति की कथा भी काफी रोचक है। उन्होंने बताया कि जब मंचपुरी अर्थात मृत्युलोक में मानवों की उत्पत्ति होने लगी तो बच्चों के लिए दूध की जरूरत महसूस होने लगी। उस कालखंड में पशुओं का सृजन स्वर्गलोक में होता था। मानव जाति की इस मांग पर मारांगबुरु अर्थात शिवजी स्वर्ग पहुंचे और अयनी गाय बयनी गाय सुगी गाय सावली गाय करी गाय कपिल गाय सिरे रे वरदा बैल से मृत्युलोक में चलने की अपील की।
लेकिन ये नहीं माने। तो शिवजी ने कहा कि मंचपुरी में मानव युगो-युगो तक तुम्हारी पूजा करेगा। तब वे लोग राजी होकर धरती में आए। उसी गाय-बैल की पूजा के साथ सोहराय पर्व की शुरुआत हुई। पर्व में गाय बैल की पूजा आदिवासी समाज काफी उत्साह होकर करते हैं। मुख्य रूप से यह पर्व छह दिनों तक मनाया जाता है। सोहराय पर्व के पहले दिन उम गोड थान पूजा का पूजा किया गया।
इसी क्रम में दूसरे दिन अपने पूर्वजों का पूजन, तीसरे दिन खूंटवा में गौ पूजा, चौथे दिन अपने समाज में आपसी विवादों को सुलझाने हेतु बैठक का आयोजन, पांचवें दिन समुदाय की महिला व पुरूष मिलकर नदी या झील में मछली में मछली पकड़ना तथा छठे दिन अर्थात मकर संक्रांति के दिन अपने परंपरागत हथियारों के साथ शिकार में निकलना व शिकार से लौट केला वृक्ष का पूजा कर निशाना साधने के साथ इस पर्व का समापन किया जाता है।
छः दिनों तक चलने वाले इस पर्व में प्रत्येक दिन अलग-अलग तरह के विधि- विधान अपनाएं जाते है।पर्व के शुभारंभ के दिन से ही आदिवासी समाज के समस्त गांव में पारंपरिक नाच-गान व खुशियों में डूब जाता है। चूंकि कोरोना के बढ़ते कहर को देखते हुए इसे काफी कम संख्या की भीड़ में आयोजित की जा रही हैं। उन्होंने बताया कि सोहराय पर्व भाई-बहन के संबंध को मधुर बनाता है।
वहीं सचिव ने बताया कि यह पर्व सामाजिक संस्कार के साथ-साथ प्रकृति संरक्षण का संदेश देता है। मांझीथान संथाल समाज की धर्म,संस्कृति और रीति- रिवाज की सुरक्षा कवच है। मांझी स्थान में शंकर भगवान, पंच देवता, सूर्य व चन्द्रमा भगवान, मनु व शतरूपा भगवान तथा पार्वती माता की पूजा अर्चना की जाती है।
वहीं इस अवसर पर पुर्व विधायक गोपाल अग्रवाल, अधिवक्त्ता कौशल किशोर यादव, मुखिया अनुपमा देवी, पुर्व सरपंच प्रतिनिधि सुनील सहनी ,अर्जुन हेम्बर्म, सुबोध टुडू , विजय मरांडी, लखी राम मुर्मू , चतुर हसदा, गंगा राम मुर्मू , वीरेन मुर्मू , पटवारी टुडू , रमेश सोरेन, मंगल मुर्मू , विनोद टुडू , अकील मुर्मू , मुकेश हेम्बर्म , संकर मरांडी
तथा महिला नृत्य मंडली की सदस्या मंझली मुर्मू , फुलमनी टुडू, रोशनी सोरेन सहित आदि आदिवासी समुदाय के महिला व पुरूष मौजूद थे।