ये जूनून ये इश़्क बना रहे मेरा,दिल तुझ पर
ही फ़िदा रहे मेरा।
ना हो फ़िक्र किसी की न जहान में,
ना इस ज़ेहन में रहे तेरे सिवा कोई मेरा
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मुकम्मल कहाँ हुई जिन्दगी किसी की..
आदमी कुछ खोता ही रहा कुछ पाने के लिए..!!
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कि अपनी नज़रों से उतारा है हमें,
उसी पे मरते हैं जिसने मारा है हमें,
ये जानता हूँ वो मिल सकता नहीं,
मोहब्बत उसी से मगर दोबारा है हमें।
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कभी लिखा था काग़ज़ पे तेरा नाम अनजाने में ,
उससे बेहतर नज़्म , फिर कभी लिख नहीं पाया
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