नुक्कड़ नाटक के माध्यम से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का दिया गया संदेश

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हर क्षेत्र में महिलाएं लहरा रही हैं कामयाबी का परचम, बढ़ा रही है समाज का मान

किशनगंज /राजकुमार

समाज सुधार अभियान अंतर्गत दहेज प्रथा, बाल विवाह एवं लैंगिक संवेदीकरण विषयों पर जागरूकता का क्रम जारी है जिला प्रशासन किशनगंज एवं ICDS किशनगंज के सौजन्य से पूरे ज़िले में प्रखंड मुख्यालय अंतर्गत कला जत्था के कलाकारों द्वारा का नुक्कड़ नाटक के माध्यम से समाज में व्याप्त कुप्रथा जैसे दहेज प्रथा बाल विवाह भ्रूण हत्या आदि विषयों पर नुक्कड़ नाटक का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पर संबंधित प्रखंड के ग्रामीण एवं महिलाएँ बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही है।


मंगलवार को पोठिया एवं ठाकुरगंज परियोजना में आयोजित नुक्कड़ नाटक में दहेज़ नहीं लेने एवं देने का शपथ भी दिलाया गया। कार्यक्रम में बाल विकास परियोजना पदाधिकारी पोठिया एवं ठाकुरगंज श्रीमती ज़ीनत यास्मीन दोनों परियोजनाओं के महिला पर्यवेक्षिका सेविका सहायिका उपस्थित रही।हर क्षेत्र में महिलाएं लहरा रही हैं कामयाबी का परचम, बढ़ा रही है समाज का मान

बाल विकास परियोजना पदाधिकारी पोठिया एवं ठाकुरगंज श्रीमती ज़ीनत यास्मीन ने उक्त कार्यक्रम के अवसर में बताया कि हर क्षेत्र में महिलाएं कामयाबी और सफलता की परचम लहरा रही हैं,
जो सामुदायिक स्तर पर सकारात्मक बदलाव का परिणाम है। किन्तु, अभी और बदलाव की जरूरत है। इसलिए, मैं तमाम जिले वासियों से अपील करता हूँ कि बेटों की तरह बेटियों को भी आगे बढ़ाने के लिए सकारात्मक सहयोग करें।

हम किसी से कम नहीं दावे को मेहनत के बल पर सार्थक रूप दे रही महिलाएं :


इस अवसर पर आईसीडीएस की जिला कार्यक्रम पदाधिकारी सुमन कुमारी सिन्हा ने कहा, बदलते दौर में सामाजिक कुरीतियों को मात मिली है। जिसका जीता जागता उदाहरण यह है कि आज हर क्षेत्र में बेटों से बेटियाँ आगे निकल रही और हम किसी से कम नहीं के दावे को अपने मेहनत के बल पर सार्थक रूप दे रही हैं। सिर्फ, बेटियों को थोड़ी सी सपोर्ट मिल जाए तो बड़ी उड़ान निश्चित है। इसलिए, इस बदलते दौर में हर किसी को बेटे-बेटियाँ में फर्क वाली कुप्रथाओं को भूलने और सहयोग करने की जरूरत है।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ नारे को सार्थक रूप देने के लिए सकारात्मक सोच जरूरी :


आईसीडीएस के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी सुमन कुमारी सिन्हा ने कहा, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ को नारे को सार्थक रूप देने के लिए हर किसी को बेटे की तरह बेटियों के प्रति सकारात्मक सोच को स्थापित करने और बेटियों के प्रति पुराने ख्यालातों से बाहर आकर सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने की जरूरत है। हालाँकि, बीते जमाने की तरह सामाजिक स्तर पर बहुत बदलाव हुआ भी है, किन्तु अभी और सकारात्मक बदलाव की जरूरत है। जैसे-जैसे लोगों की मानसिकता बदल रही है वैसे-वैसे बेटियाँ आगे बढ़ रही हैं। हर क्षेत्र में बेटियाँ कामयाबी की मिसाल पेश कर नई कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। अब वो दिन दूर नहीं, जब हर क्षेत्र के शीर्ष कमान की जिम्मेदारी बेटियों के हाथ होगी।

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