गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान और निगरानी प्रणाली होगी मजबूत
• आशा-आंगनबाड़ी और एएनएम करती हैं कुपोषित बच्चों की पहचान
छपरा : कुपोषण मुक्त समाज की परिकल्पना को साकार करने का प्रयास किया जा रहा है। कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की पहचान की जा रही है। समुदाय स्तर पर आशा कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी सेविकाओं के द्वारा घर-घर जाकर कुपोषित बच्चों की पहचान की जाती है। इसके साथ हीं आरोग्य दिवस पर एएनएम के द्वारा कुपोषित बच्चों की पहचान की जाती है। इस अभियान की मॉनिटरिंग काफी महत्वपूर्ण होती है। ऐसे में प्रखंड स्वास्थ्य प्रबंधक, बीसीएम के द्वारा इसकी मॉनिटरिंग की जाती है। निगरानी प्रणाली को मजबूत करने के उद्देश्य से जिला स्वास्थ्य समिति के द्वारा एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें जिला स्वास्थ्य समिति के डीपीएम अरविन्द कुमार, डीपीसी रमेश चंद्र कुमार और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. ब्रजेश मिश्रा के द्वारा प्रशिक्षण दिया गया। इस बात की जानकारी दी गयी कि किस तरह से कुपोषित बच्चों की पहचान और इसकी निगरानी करनी है। 1 से 6 माह तक उम्र के अति गंभीर कुपोषित बच्चे , 6 माह से 59 माह तक के अति गंभीर कुपोषित बच्चों के उपचार करने के तरीकों की जानकारी दी गई। यही वह उम्र है जिसमें बच्चों को सही पोषण की अति आवश्यकता होती है। कुपोषित बच्चों में सुधार कैसे करेंगे? और कौन कौन सी सावधानियां बरतेंगे? इसके साथ कौन सी सेवा देकर उनके स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सकता है? आदि के बारे में जानकारी दी गई।
प्रत्येक माह वृद्धि चार्ट पर वजन अंकित करें:
डीपीएम अरविन्द कुमार ने कहा कि पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों का वजन वी.एच.एस.एन.डी. एवं अन्य संपर्कों के दौरान लिया जाना चाहिए। प्रत्येक माह वृद्धि चार्ट पर वजन की माप को अंकित किया जाना चाहिए। वृद्धि में विचलन ( स्थिर वजन या वजन में कमी) की पहचान बच्चों को कुपोषण से बचाने में मदद करता है। हम वजन, ऊँचाई /लंबाई की माप एवं बाइलैटरल पिटिंग इडीमा की जाँच सही तरीके से करें ताकि अति गंभीर कुपोषित बच्चों की पहचान की जा सके। गलत माप लेने से उपचार की आवश्यकता वाले अति गंभीर कुपोषण के शिकार बच्चे उपचार से वंचित रह सकते हैं।
लक्षणों की पहचान कर किए जाएंगे रेफर:
डीपीसी रमेश चंद्र कुमार ने सभी बीएचएम और बीसीएम से कहा कि आशा और आंगनबाड़ी सेविका व एएनएम को इस बात कि जानकारी दें कि बीमार, सुस्त दिखाई देने वाले, स्तनपान न करने वाले या भूख की कमी, दोनों पैरों में सूजन, सांस का तेज चलना, छाती का धंसना, लगातार उल्टी व दस्त होना, मिर्गी या चमकी आना, तेज बुखार, शरीर ठंडा पड़ना, खून की कमी, त्वचा पर घाव एवं ऊपरी बांह की गोलाई 11.5 सेंटीमीटर से कम आदि लक्षणों की जांच कर इन बच्चों को स्वास्थ्य केंद्र या पोषण पुर्नवास केंद्र रेफर करना है। अतिगंभीर कुपोषण के शिकार बच्चों के अभिभावकों को नियमित आयरन और फॉलिक एसिड की गोली, छह माही विटामिन ए सीरप एवं अल्बेंडाजोल टैबलेट की खुराक पर परामर्श भी देना है।
कुपोषित बच्चों में कई तरह की बीमारियों की आशंका:
अतिकुपोषित बच्चों के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी हो जाती है। इस वजह से शारीरिक रूप से कई तरह की परेशानियां खड़ी हो जाती है। बच्चे शारीरिक रूप से कमजोर और बीमार जैसे हो जाते हैँ। ऐसे बच्चों में डायरिया, निमोनिया, खून की कमी और अन्य कई तरह के संक्रमण की संभावना रहती है। सदर अस्पताल में पोषण पुनर्वास केन्द्र संचालित किया जा रहा है। इस केन्द्र को संचालित करने के पीछे विभाग की मंशा है कि वैसे बच्चे जो शारीरिक रूप से अतिकुपोषित हैं को खान पान की सुविधा के साथ बेहतर स्वास्थ्य सुविधा का लाभ दिया जाता है। उन्हें पोषण के साथ उपचार की सुविधा देकर बेहतर बनाने की कोशिश की जाती है। यहां बच्चे के साथ उनके एक अभिभावक को भी रहने और खाने की सुविधा प्रदान की जाती है।